इस फिल्म के बाद माराडोना ने कहा था निर्देशक ने मुझे सिखाया कि किसे कितनी इज़्ज़त दी जानी चाहिये

सुर्ख़ियों में बने रहना दिएगो मारादोना की फ़ितरत का हिस्सा रहा है. चाहे 1986 के फ़ुटबॉल विश्वकप के क्वार्टर फ़ाइनल में इंग्लैण्ड के खिलाफ़ ‘हैण्ड ऑफ़ गॉड’ वाला गोल हो, चाहे पेले को लेकर की गईं खराब टिप्पणियां हों या रिटायरमेन्ट के बाद ड्र्ग्स और नशे में गहरे उतर जाना हो, मारादोना चाहे-अनचाहे दुनिया भर के समाचारों पर छाये रहे हैं. वे निस्संदेह पिछली सदी के महानतम फ़ुटबॉलरों में थे. जो भी हो, उनके खेल के प्रशंसकों की तादाद गिनी नहीं जा सकती.

मारादोना पर बनी सर्बिया के लोकप्रिय फ़िल्मकार एमीर कुस्तुरिका की डॉक्यूमेन्ट्री 2008 के  कान फ़िल्म समारोह में दिखाई गई थी. डेढ़ घन्टे की इस फ़िल्म ने माराडोना की मेरी अपनी बनाई छवि को ध्वस्त करते हुए कई नई बातें बताईं.

अपने देश अर्जेन्टीना में मारादोना एक ‘कल्ट’ का नाम है, उनके चाहनेवालों ने उनके चर्च बना रखे हैं और खास तरह की प्रार्थनाएं भी. इन चाहनेवालों के कुछ हंसोड़ दृश्य फ़िल्म के शुरुआती हिस्से में हैं.

मारादोना के ड्र्ग्स के इस्तेमाल करने और उस जाल से सफलतापूर्वक बाहर आने की लम्बी जद्दोजहद की दास्तान भी इस में है. इसके अलावा वे एक प्यारभरे पिता भी हैं: उनकी दो पुत्रियों के साथ उनके संबंधों की ईमानदारी बहुत मार्मिक तरीके से फ़िल्म में देखने को मिलती है.

फ़िल्म के एक दृश्य में मारादोना फ़िदेल कास्त्रो का अपना टैटू दिखाते हैं और बहुत संजीदगी से कहते हैं कि वे प्रिन्स चार्ल्स से कभी हाथ नहीं मिलाएंगे और यह भी कि वे जॉर्ज बुश से बेपनाह नफ़रत करते हैं. अपनी बेबाकी के लिये ‘बदनाम’ मारादोना अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को “मानव कूड़े का हिस्सा” कहने में भी नहीं हिचकते. यह हिस्सा देखने के बाद मुझे अहसास हुआ कि दिएगो मारादोना असल में एक अलग मिजाज़ का चैम्पियन खिलाड़ी है जो इतनी शोहरत पा चुकने के बावजूद अपने विचारों को प्रकट करने में नहीं हिचकता. जाहिर है इस तरह के व्यक्तित्वों से आज का अमरीकी बाज़ारवाद डरता भी है और उनके बारे में कुप्रचार करने में बिल्कुल देरी नहीं करता.

मुझे यक़ीन है इस फ़िल्म के बाद सारे संसार में मारादोना को उनके विवादों की ही वजह से नहीं बल्कि राजनैतिक सजगता के लिये भी जाना जाने लगेगा और उनके प्रशंसकों की तादाद और भी बढ़ती चली जाएगी.

कान फ़िल्म समारोह में जब पत्रकारों ने उनसे बुश वाले दृश्य को लेकर सवालात किये तो मारादोना ने साफ़ साफ़ उत्तर दिया: “जब आपको दुनिया जानने लगती है तो आपको बुश या अमरीका के बारे में कुछ भी कहने की अनुमति नहीं होती. ऐसे और भी बहुत से निषिद्ध विषय होते हैं. जब यह फ़िल्म बन रही थी तो निर्देशक एमीर कुस्तुरिका ने मुझे सिखाया कि किसे कितनी इज़्ज़त दी जानी चाहिये. आप चाहे कितने ही मशहूर फ़ुटबॉलर या और कोई खिलाड़ी क्यों न हों, आपको एक हत्यारे व्यक्ति के बारे में अपने विचार व्यक्त करने का पूरा अधिकार है.”

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago