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आज के वक्त में बागेश्वर की डॉ. समीउन्नेसा जैसा होना आसान नहीं है

उत्तराखंड का एक छोटा सा जिला है बागेश्वर. यहां के कांडा तहसील में स्वास्थ्य केन्द्र में तैनात रही डॉक्टर समीउन्नेसा को लोग उनके समर्पण को गाहे-बगाहे हर हमेशा याद करते रहते हैं. उनके समर्पण भाव के चलते कई जन तो उन्हें मदर टेरेसा के बगल में भी खड़ा कर देते हैं. Dr Samiuniissan of Bageshwar by Keshav Bhatt

डॉक्टर के पद, अहं को किनारे कर, एक जुनून लिए वे हर वक्त सेवा में तैयार मिल जाने वाली जो हुई. दूर-दराज से आने वाले अनगिनत, मजबूर मरीजों को उन्होंने अपने आशियाने में ही शरण दे उनकी मेहमानों की तरह खातिरदारी भी की. अस्पताल में कम संसाधनों के बावजूद उन्होंने हजारों की तादाद में महिलाओं को निराश नहीं किया. लाईट न होने पर टार्च की रोशनी को ही सूरज की रोशनी मान वो ईलाज में दिन-रात डटी रहीं.

बहरहाल! डॉ. समीउन्नेसा अब उधमसिंह नगर चली गई हैं लेकिन उनका समर्पण बरबस हर कोई याद करते रहता है. वर्ष 2018 को प्रकटेश्वर मंदिर सभागार में नागरिक मंच के सातवें वार्षिक स्थापना समारोह में उन्हें अत्यधिक पिछड़े और दुर्गम क्षेत्र में महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षित प्रसव के लिए किए जा रहे कार्यों के लिए सम्मानित भी किया गया. लेकिन सम्मानों से दूर वे अब भी हर पल अपने मिशन में जुटी रहती हैं.

समीउन्नेसा की तरह ही कुछेक ऐसे हैं जो अपने पेशे से ईमानदारी से जुड़े हैं. बागेश्वर जिले से सटे अल्मोड़ा जिले के ताकुला स्वास्थ्य केन्द्र में चौदह सालों से एनएम के पद पर अपनी सेवा दे रही शहनाज खान भी अपनी टीम के सांथ हजारों प्रसव करा चुकी हैं, जिनमें से दस मामले ऐसे थे जिनका पहले सीजेरियन हुआ था और जिन्हें बागेश्वर से हायर सेंटर रेफर कर दिया गया था. Dr Samiuniissan of Bageshwar by Keshav Bhatt

होने को तो बागेश्वर में जिला अस्पताल के नाम पर एक हाथीनुमा बिल्डिंग है, लेकिन इसका हाल एक सरकारी अस्पताल की तरह जैसा होना चाहिए था वैसा ही है. अव्यवस्था, गंदगी, चिड़चिड़े स्टाफ के बाद बमुश्किल आपको यदि डॉक्टर के दर्शन हो गए तो अपने को धन्य समझो कि आपने मोक्ष रूपी द्वार के साक्षात दर्शन कर लिए. इस द्वार से कई खुशनसीब रहते हैं जो यहां से खुश हो वापस अपने घरों को लौटते हैं लेकिन कई बदनसीबों के नसीब में ठोकरें ही रहती हैं और वो रेफर कर दिए जाते हैं. Dr Samiuniissan of Bageshwar by Keshav Bhatt

आज के वक्त में डॉ. समीउन्नेसा हो या शहनाज, उनकी तरह कोई होना ही नहीं चाहता. हर कोई उन्हें बेवकूफ का तमगा देते हुए उनकी खिल्ली उड़ाने से चूकता नहीं है. क्योंकि इन खिल्ली उड़ाने वालों के मन में जिंदगी की दौड़ में पिछड़ जाने की चिंता है तो वो जनता के इस तरह के मसीहाओं को बेवकूफ और गरीबों को रास्ते के कीड़े जान उनसे बचते हुए आगे उंचाई को पाने की दौड़ में भागने की जुगत में लगा रहता है.

केशव भट्ट

केशव भट्ट का यह आलेख भी पढ़ें: हिमालय की कठिन चढ़ाई के दौरान बुजुर्गों द्वारा सूखी लाल मिर्च खाने का किस्सा

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