देवीधूरा में होने वाले बग्वाल के अगले दिन अपरान्ह धूमधाम के साथ देवी माँ का डोला उठता है.
इस अवसर पर ग्रामीण प्रातः काल से ही बड़ी संख्या में मंदिर परिसर पहुंचना शुरू कर देते हैं. नियत अनुष्ठानों और पूजा-पाठ के उपरान्त देवी की मूर्ति को एक लाल बक्से में धरे जाने के उपरान्त डोले का जुलूस निकलता है.
डोले में मंदिर के मुख्य पुजारी को बैठने का सम्मान मिलता है और समारोहपूर्वक यह जुलूस नज़दीक ही एक पहाड़ी की चोटी पर पहुँचता है. पहाड़ी की इस चोटी से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. कुमाऊनी जनमानस में हिमालय का स्थान अनेक धार्मिक और मिथकीय परम्पराओं के चलते बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यही कारण इस डोला परम्परा के मूल में है.
कुछ समय उक्त पहाड़ी पर रहने के उपरान्त देवी की मूर्ति को मंदिर में वापस लाकर उसकी प्रतिष्ठा की जाती है.
(यह रपट हमारे लिए राजकीय महाविद्यालय देवीधूरा में संस्कृत की असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत श्रीमती इंदिरा बिष्ट ने तैयार कर के भेजी है.)
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