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इतिहास रावत कौम का पहला हिस्सा – पंडित नैनसिंह रावत की डायरी

तिब्बत का पहला भौगोलिक अन्वेषण करने वाले उन्नीसवीं शताब्दी के महानतम अन्वेषकों में से एक माने जाने वाले मुनस्यारी की जोहार घाटी के मिलम गाँव के निवासी पंडित नैनसिंह रावत के बारे में एक लंबा लेख काफल ट्री पर पहले प्रकाशित हो चुका है. लिख का लिंक यह रहा – पंडित नैनसिंह रावत : घुमन्तू चरवाहे से महापंडित तक

आज से पढ़िए इन्हीं पंडित नैनसिंह रावत की डायरी.

भाग 1: इतिहास रावत कौम

मानना चाहिये कि हमारे पुरखा याने मिलम्वाल कौम का उत्पत्ति धारा नगर के क्षेत्री पवार बंशियों से है चुनाचे जब पंवार वंश बहुत बढ़ गया तो कितने ही पवार धारा नगर से आकर कहीं हरिद्वार के निकट मुतस्सिल बुटोल गढ़ में आ बसे द्य इस कारण बुटोले रावत कहलाये. फिर बुटोल गढ़ के भी कई बुटोला रावत आकर जिले गढ़वाल के परगनह बधाण मोजा ज्वाला और सालन में आ बसे. कुछ पुस्त बाद इनही बुटालों के खानदान में से धाम सिंह और हीरू रावत दो भाई ज्वाला गांव से बदरीनाथ की यात्रा को गये. बदरीनाथ में मलारी गांव के पास मुकाम भुजगढ़ पट्टी पेनखंडा जिले गढ़वाल में आ बसे . हीरू रावत ने तो मलारी ही में रहना इख्तियार किया जिसके औलाद मलारी के मढवाल…

(अग्रिम प्रसंग मूल प्रति पांडुलिपि के पृष्ठ भाग से नष्ट हो गया है.)

… (वाक्य के पृष्ठ भाग का अंश मूल प्रति में उपलब्ध नहीं हैं) और पहलवान था. राजा बोत छोगेल ने अपने सिपैसालारों में भरती किया. मरजी भगवान की कि धाम सिंह रावत ने लदाखियों को शिकस्त देकर इलाके ङरी कुरसुम से बाहर निकाला. इस नेक खिदमत’ के बदले राजा बोतछोगेल ने धाम सिंह रावत को उसके औकाल गुजारे के वास्ते (1) तौल (2) छौकल (३) अपनी रिआया दोयम दावा खिंगलुग व डोकठोल वगैरह मवाजात से लेने का सनद अता फरमरया. इस दस्तूरात वगैरह से धाम सिंह रावत का हजारहा रुपये साल की इसके पीछे धाम सिंह ने हूणदेश दावा में रहना मुनासिब न जानकर राजा बोतछोगेल के मरजी बमूजिब हिमालया इस पार इलाके कुमाऊं के परगनह जुहार मिलम गांव को बसा कर मिलम में रहने लगा.

गेलू और सामा कुवर दो भाई जिनकी अमलियत जिले गढ़वाल पट्टी बांगर बड़ेत गांव बतलाते हैं बराबर बदरीनाथ से धाम सिंह रावत के हमराह थे.

(1) हूण देश के जबान में थापदींग उस हस्त दस्तुरात को कहते है जिस शख्स ने सरकार की खैरख्वाह की हो वह शख्स जिस किसी गांव में जावे खाने की खुराक और बरदयाश रिआया से हूकूमत के साथ मिलता है. (2) हूणदेश में दस्तूर है कि जो कोई उहदेदार एक गांव से दूसरे गांव को या कितने ही गांव को सरकारी कार के वास्ते जावे तो उसको वे किराया सवारी का घोड़ा मिलता है उसी को तौल कहते हैं.

(3 ) छोकल ऐसी हक दसतूरी को कहते हैं कि किसी खैरख्वाह सरकार को रिआया से व्यौपार के माल में से महसूल मिला करता है.

थे उसके मरजी मुताबक जूहार के टोला गांव में बसे . जिनके अब टोलिये कोम कहलाते हैं .

कहते हैं कि उस जमाने में परगनाह मलला जुहार में आदमी बहुत कम थे. सिर्फ बुर्फू में तो बुर्फाल, जंगपांगी रहते थे, ल्वां में ल्वांल, रालम में रलम्वाल. ये तीन गांव आवाद थे.

लोग जंगली तिजारत बहुत कम करते थे. केवल जमीन की जौ और ओगल खाकर दिन काटते थे. अब की तरह शीतकाल में मुनस्सारी, सीरा, गंगोली, दानपुर वगैरह जगहों में चले नहीं जाते. बारहों महीने मल्ला जुहार में ही रहते जमीन खोद कर घर गढो में बना रहते. छत मकानों काबिलकुल मिट्टी से आच्छादित होते थे. अब की तरह भेड़, बकरी, घोड़े जुबू गऊ भी बहुतायत में नहीं रखते थे. जिस किसी का दस पांच भेड़ बकरे हुए तो जुहार से मुनसारी का हुणदेश जाने वक्त लंगड़ा जाने के डर से भेड़ व बकरों के पैरों के चमड़े के जूते देते. अकसर हूणदेश को कम जाते. लून और सोना लेकर हूणिये लोग जुहार ही में आते बदल अनाज लें जाते. जो शख्स मुनसारी तक जाता धान का बाल लेकर घर की औरतों को दिखलाता कहता कि में मतकोट का माल हो आया. लोग सीदे सादे बड़े भोले थे. ब्याह शादी अब की तरह छोटी लड़की से नहीं करते अक्सर गंवर्ण विवाह की रीत पर शादी करते. लड़की और लड़का जवान हो जाने पर आपस में गीत गाते जब बर कन्या दोनों हिल-मिल जाते तब पीछे शादी करते थे.

बुर्फ गांव के चरखमिया जंगपागी अपने तई नागबंशी बतलाते है. कहते हैं कि अब्बल में जांगपांगी बुर्फालों का बुजुर्ग के शख्स गलीपा काला नाग का था जिसके दो लड़के होकर आप मर गया. उसी की औरत दो लड़को समेत बुर्फू नदी के सिरहाने ग्वाड़ में रहती थी. इतिफाकन उत्तर की ओर पहाड़ से एक सर्प उस ग्वाड़ में आया. उसी नांग की दृष्टि संयोग से उस औरत से एक लड़का पैदा हुआ. चरखमिये जंगपांगी इसी नाग के लड़के से अपने पैदाइस गिनते है. बांकी बड़े दो लड़कों में और जंगपागी बुर्फालों की उत्पत्ति मानते है.

इसमें सन्देह नहीं कि बिक्रम के समय में तातार देश के शक ही लोगों ने इस देश पर भारी चढ़ाई की थी और बिक्रम ने उनसे भारी लड़ाई जीती. इसीलिसे बिक्रमशकारी कहलाया. ये शक लोग नाग की पूजा करते थे और नाग ही उनका चिन्ह था. कौन जाने यहीं यहां नाग वंशियों की जड़ हुए हो.

रामगढ़ का नागवंशी राजा अब तक अपनी मुहर में नाग का चिन्ह में नाग खुदवाता है मालूम होता है कि जिस समय यहां पर शक लोगों ने चढ़ाई की थी उसी समय में किसी शक ने अथवा किसी नाग वंशी ने गलीपा काला के औरत को रखा होगा जिससे कि चरखमिये जंगपांगियों की पैदाइस हुई होगी.

ऊपर लिख चुके हैं कि धाम सिंह रावत के जुहार आने से पहले जुहार में आवादी बहुत कम थी. मिलम गांव आवाद होने के पीछे बिलजू, मापा, मरतोली वगैरह और गांवों में भी आबादी हो गई.

मरतोलिये अपने तई काशी के भद्ट के औलाद बताते हैं. मैंने बद्रीनाथ के पंडाओं के गही में पुराना लिखा हुआ देखा कि पुरुषोत्तम भट्ट पाथी काशी से बद्रीनाथ यात्रा आया. तीन बरस तक जोशीमठ में नरसिंह देवता का पुजारी रहा. जोशीमठ में पुरुषोत्तम पाथी के नारायण और शिव भट्ट दो लड़के पैदा हुए. बड़ा भाई नारायण भट्ट जुहार मरतोली गांव में आकर बसा जिसके सन्तान मरतोली कौम कहलाये. छोटा भाई शिबू दानपुर में आ बसा जिसकी औलाद मल्ला दानपुर के चैड़ गांव में चैड़ियाल कौम अब तक मौजूद है.इसमें सन्देह नहीं कि शिव भट्ट का सम्बन्ध कई पहाड़ी कौम जाट लोगों के साथ लग जाने से ये लोग चैड़ियाल कहलाये. ये चैड़ियाल हरटोलिये और मरतोलिओं के बीच बोलचाल में कई लफज मिलती है. जैसा तीती, ताता, दादा, दादी को कहतें हैं. इसी तरह बहुत अलफाजें12 मिलती हुई है. मरतोलिये कौम के लोग अब तक जो नरसिंह देव की पूजा करते हैं कौन जाने मरतोलियों के कौम में नरसिंग का पूजा करना उसी समय से चला आता हो. ल्हसपाल अपने को गमशाला के गढ़वाल बताते हैं गमशालों की उत्पत्ति मछेन्द्रनाथ से मानते हैं.

धपवाल अपने तई पन्त के औलाद गिनते हैं.

मपवाल रिलकोटिये और बिलज्वाल अपने’को डोटी आछाम के कारकी बतलाते हैं. कहते हैं कि इन तीन गांव वालों के बुजुर्ग पेश्तर जमाने में डोटी आछाम देश में आकर परसारी गांव पट्टी पैनखंडा जिला गढ़वाल में आकर बसा था. परसारी में उसके औलाद बढ़ जाने के कारण उन्ही में से कोई बिलजू बैठे तो तो बिलज्वाल मापा गांव के मपवाल और रिलकोट के रिलकोटिये कौम कहलाये.

पहले लिख आयें हैं कि अगले जमाने में जुहार के लोग तिजारत कम करते सिर्फ थोड़े २ भेड़ बकरों में अनाज लाद कर हूण देश खिंगलुं दोंगपू वबैरह गावों में बेच आते. अनाज के बदले सोना और ऊन ले आते. परन्तु अपने व्योपार के अनाज में से दस पैमाने अनाज में से एक पैमाना जमाने हाकिम के महसूल में दे आते. हूणिये लोग नमक जुहार वालों को दे जाते. जुहार से अनांज भर ले जाते. रुपया मुल्क में बहुत कम था. सिर्फ . फेटांग $ का सोना लेनदेन में चलता.

धाम सिंह रावत ने जब देखा कि अनाज के व्योपार में दसवीं हिस्सा महसूल देने में जुहार वालों का बड़ा नुकसान है इसलिये राजा बोतछोगेल (1) दावा के महसूल मुवाफा करा लाया. यह महसूल माणा, नीती, दारमा बगैरह हर एक घाटे वाले अब तक दिये जाते हैं.

(जारी)

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