दाड़िम का पेड़ पहाड़ के सभी घरों में सामान्य रुप से देखा जा सकता है. दाड़िम का पेड़ यहां के लोक में कितना घुला मिला है उसे लोकगीतों से बखूबी समझा जा सकता है.
(Dadim ka Chook)
पेट चुकिलो चुक दाना ले, मुख चुकिलो दाड़िम ले.
संगकी मायालु छुटाई, किस्मत जालिम ले.
ऐसी ढ़ेरों न्यौली, छबीली पहाड़ में गई जाती हैं जिनमें दाड़िम और उसके स्वाद का जिक्र देखने को मिलता है. दाड़िम के दाने छोटे गोल, सफेद और लाल रंग के होते हैं. स्वाद में दाड़िम खट्टा-मीठा होता है. आज भी पहाड़ में दाड़िम के दानों में नमक मिलाकर खाना खूब पसंद करते हैं.
दाड़िम पहाड़ का एक महत्वपूर्ण फल है जिसके दानों के अतिरिक्त छिलकों का प्रयोग भी खूब देखने को मिलता है. पहाड़ों में दाड़िम के छिल्कों को सुखाकर खांसी की दवा भी बनाते हैं. अपने खट्टेपन के लिये तो दाड़िम खूब जाना जाता है.
पहाड़ में खट्टे के लिये चूक प्रयोग किया जाता है. चूक गाढ़े काले रंग का ऐसा द्रव है जो हर पहाड़ी रसोई में मिलता है. पहाड़ में भांग इत्यादि की चटनी में चूक का प्रयोग ही किया जाता है. यह फलों के रस से बनाया जाने वाला एक द्रव है. चूक की छोटी सी दो-चार बूंद भी खटाई के लिये काफ़ी होती है.
(Dadim ka Chook)
चूक बनाने के लिये दाड़िम को छिलकर उसके दानों का रस निकाला जाता है. उसके बाद किसी पतले कपड़े में उस रस को छानते हैं. अगर रसदार दाड़िम हों तो एक किलो दाड़िम से करीब एक पाव तक का रस मिल जाता है. अब इसे आग में घंटों पकाया जाता है. दाड़िम के रस का रंग काला और गाढ़ा होने तक इसे पकाया जाता है और ठंडा होने के लिये रख दिया जाता है. सालों साल इसका प्रयोग खटाई में किया जाता है. लम्बे समय तक प्रयोग में लाने के लिये इसे शीशे की बोतल में रखा जाता है.
बाज़ार में चूक हमेशा से ही महंगे दामों में मिलता है. अच्छी गुणवत्ता वाले एक लीटर दाड़िम के चूक के लिये आपको अपनी जेब से हज़ार रूपये तक ढीले करने पड़ सकते हैं.
(Dadim ka Chook)
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