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आइफ़िल टावर से क्रिकेट कमेंट्री

कैसी-कैसी क्रिकेट कमेंट्री  – एलन मैकगिल्वरे

-अशोक पांडे

साल 1938. ऑस्ट्रेलिया. सर्दियों की एक निद्राहीन रात. विक्टोरिया, क्वींसलैंड और न्यू साऊथ वेल्स में तमाम घर रोशन थे, चिमनियों से धुआँ निकल रहा था और क्रिकेट सिट-अप पार्टियां चल रही थीं.

वायरलैस पर एलन मैकगिल्वरे की सुपरिचित आवाज़ गूंजना शुरू हुई: “सूरज ने बादलों से झांकना शुरू कर दिया है और मैदान रोशन होने लगा है. फ्लीटवुड की गेंद. हैमंड ने आगे बढ़कर गेंद पर हैसेट की बगल से बेहतरीन ड्राइव लगाया है. हैसेट गेंद के पीछे हैं और बेहतरीन फील्डिंग. इस बीच बल्लेबाजों ने दो रन बना लिए.” ध्यान लगाकर सुन रहे मुग्ध मुदित श्रोताओं को बल्ले पर टकराती गेंद के सख्त चमड़े की ‘टक’ सुनाई देती है और तालियों की बिखरी सी आवाज़ भी. उनमें से कुछ खुद अपनी कापी-पेन्सिल लिए लगातार स्कोर लिख रहे हैं.

एलन मैकगिल्वरे कहते जाते हैं: “हैमंड मूव्स डाउन द विकेट एंड हिट्स पास्ट द बोलर. माई वर्ड. दैट कैरीड! दैट वॉज़ ऑलमोस्ट इन द हैंड्स ऑफ़ फ्लीटवुड स्मिथ, बात वेंट जस्ट पास्ट हिम, ऑलदो ही पुट अ हैण्ड आउट, ही डिन्ट गेट नियर इट एंड इट रेस्ड पास्ट हिम फॉर फोर. बट इट वॉज़ सर्टेनली पास्ट हिम राउंड अबाउट नी हाई.”

इस बार रेडियो पर ‘टक’ की आवाज़ ज़्यादा ज़ोरदार सुनाई देती है. आउट करने का मौका चूक जाने के कारण भीड़ से एक दबी सी आह की आवाज़ निकलती सुनाई देती है, उसके बाद ज़ोरदार तालियाँ. समूचे ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों लोग अपना माथा पीटते हुए गालियां बकने लगते हैं.

इस सब के दौरान एलन मैकगिल्वरे सिडनी की मार्केट स्ट्रीट में स्थित ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कोर्पोरेशन (ABC) के स्टूडियो में झुके बैठे हैं. पिछली दो गेंदों का वर्णन इंग्लैण्ड एक मैदान से भेजे गए दो तारों का नतीजा है जहां एक टेस्ट मैच जारी है. तारों की भाषा यह थी : BRIGHTENING FLEETWOOD-SMITH HAMMOND FULL FIRSTLY TWO HASSETT SECONDLY FULL FOUR STRAIGHT UNCHANCE BOWLER THIRDLY NO BALL FULL TWO OFFDRIVEN … वगैरह.

अपनी आत्मकथा ‘द गेम इज़ नॉट द सेम’ में एलन मैकगिल्वरे याद करते हुए कहते हैं: “एरिक शोल को एक ख़ास कोड के अनुसार तार भेजने के काम से भेजा गया था. हमारे स्टूडियो के बाहर पांच या छः डीकोडरों की टीम तारों को पठनीय सूरत देने का काम करती थी जिनकी मदद से कमेंटेटर अपना काम जारी रख सकते थे. शब्दों से चित्र खींचने के लिए जो कुछ आवश्यक होता था वह सब इन तारों में हुआ करता था. … शोल हमें मौसम के बारे में बताया करते, भीड़ के बारे में और यहाँ तक कि मैदान तक पहुँचने के रास्ते में कैसा ट्रैफिक है यह तक. जब भी फील्ड बदलती एक नया तार पहुँचता. हर ओवर की समाप्ति पर सारी गेंदों का विस्तृत वर्णन हुआ करता था.”

तेज़ शोर, हल्की तालियों, भीड़ की खीझ की पर्तिक्रिया वगैरह की रिकॉर्डिंग्स के संग्रह का उपयुक्त इस्तेमाल साउंड इफेक्ट देने वाले टेक्नीशियन द्वारा किया जाता था. बल्ले के गेंद पर प्रहार करने की आवाज़ के लिए कमेंट्री डेस्क पर रखे लकड़ी के एक गोल टुकड़े पर कमेंटेटर द्वारा पेन्सिल की चोट करने से निकाली जाती थी. स्ट्रोक की ताकत के हिसाब से यह चोट हल्की-भारी हुआ करती.

यह था सिंथेटिक ब्रॉडकास्टिंग का संसार – संचार तकनीकी में शोर्टवेव रेडियो द्वारा क्रांति लाये जाने से पहले का संसार.

अगर तार के आने में इस बात से व्यवधान पड़ता था कि रपट भेज रहे “कमेंटेटर” ने जल्दी कर दी हो तो ख़ाली जगहों को भरने के लिए लाइव नुस्खे के तौर पर स्टूडियो में बैठे कमेंटेटर बहसें करना शुरू कर देते. विशेषज्ञ की हैसियत रखने वाले विक रिचर्डसन संभवतः कहते “ही रीयली शुड बी मूविंग फॉरवर्ड टू दोज़ डिलीवरीज़.” मैकगिल्वरे का उत्तर होता “वैल! आई डोंट नो अबाउट दैट विक, द बोलिंग इज़ प्रेटी टाईट एंड आई थिंक स बैट्समैन आर क्वाईट राईट इन बीइंग कॉशस.” इस पूरे दरम्यान उन्हें ज़रा भी पता नहीं होता था कि खेल में दरअसल हो क्या रहा है.

सिंथेटिक कमेंट्री का यह पहला वाक़या था. जब डगलस जार्डिन की टीम 1932-33 की कुख्यात बॉडीलाइन सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया गयी थी, पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर एलन फेयरफैक्स को फ्रांसीसी पेशेवर स्टेशन ‘पोस्ट पेरिसियन’ ने आइफ़िल टावर के एक स्टूडियो में बैठकर टेलीग्राम-केबल्स की सतत सप्लाई के आधार पर खेल का चित्र खींचने का अनुबंध दिया. इन ब्रॉडकास्ट्स को इंग्लैण्ड में प्रसारित किया गया जहां लोगों ने इन्हें हाथोंहाथ लिया. अपनी किताब ‘टेस्ट मैच स्पेशल’ में जॉन आर्लट लिखते हैं: “क्रिकेट के उनके ज्ञान ने फेयरफैक्स को यह क्षमता दी कि वे सिर्फ जानकारियों के आधार पर खेल का जीवंत वर्णन कर सकें. वे वर्तमान काल यानी प्रेजेंट का इस्तेमाल करते थे और उनका लहज़ा ऑस्ट्रेलियाई था जिसकी वजह से उनकी कमेंट्री ख़ासी वास्तविक लगा करती थी.”

1938 तक हालांकि शॉर्टवेव कवरेज कर पाना संभव हो गया था पर ब्रेकडाउन्स होना आम बात थी. सो ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कोर्पोरेशन (ABC) के चार्ल्स मोज़ेज़ ने मैकगिल्वरे, मेल नॉरिस, जॉन चांस, हॉल हुकर और विशेषज्ञों मॉन्टी नोबल और विक रिचर्डसन को लेकर एक टीम तैयार जिसे एरिक शोल के केबल्स की मदद से रनिंग कमेंट्री की रिर्वर्स इंजीनियरिंग करना होती थी. इस टीम को यह कृत्रिम अहसास दिलाने के लिए कि वे क्रीड़ास्थल पर हैं, उन्हें सुबह की चाय रात के साढ़े नौ बजे और लंच रात साढ़े दस बजे दिया जाता था.

एक बार केबल की एक गलती की वजह से ख़ासा गड़बड़झाला हुआ. डिस्पैच आया कि MC आउट हो गए हैं. क्रीज़ पर उस समय स्टेन मैकैब और एर्नी मैकोर्मिक खेल रहे थे. यानी दोनों MC. अब बहुत पेचीदा हालात हुए.

मैकगिल्वरे ने रिचर्डसन से पूछा “किसे आउट बताऊँ?”

पूर्व कप्तान ने आत्मविश्वास से कहा “स्टेन को. उसकी सेंचुरी हो गयी है और अब वो ऐसे ही हर गेंद पर बल्ला चला रहा होगा.”
सो घर-घर में मैकगिल्वरे की आवाज़ ने गूंजना शुरू किया: “मैकैब स्टेप्स इनटू द डिवाइन. ही’ज़ लॉफ्टेड इट … एंड ही इज़ आउट. एंड व्हट अ ग्लोरियस इनिंग्स इट वॉज़.” इसके बाद वे भावनात्मक आवेग में यह बखान करते गए कि किस तरह पैविलियन में लौटते मैकैब का स्वागत किया जा रहा है, खड़े होकर दर्शक तालियाँ बजा रहे हैं वगैरह वगैरह. साउंड इफेक्ट देने वाले टेक्नीशियन ने भी चांदी काट ली इस दौरान.

अगले केबल ने बतलाया कि दरअसल मैकोर्मिक आउट हुए हैं. ऑस्ट्रेलिया के लिए यह अच्छी बात थी क्योंकि मैकैब ने इसके बाद 232 रन बनाए और उनकी पारी देखकर डॉन ब्रैडमैन ने अपने खिलाड़ियों से ड्रेसिंग रूम की बालकनी में आ कर इस अद्भुत पारी का दीदार करने बुलवा लिया था.

यह बात दीगर है कि मैकगिल्वरे ने संसार को दिखा दिया कि वे सिंथेटिक ब्रॉडकास्टिंग के साथ क्या कर सकने में सक्षम थे. जब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब टेस्ट क्रिकेट दोबारा शुरू हुई तो वे ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की आवाज़ बन गए. विक रिचर्डसन और आर्थर गिलीगन के साथ मिलकर उन्होंने बेहद लोकप्रिय टीम बनाई.

मैकगिल्वरे न्यू साउथ वेल्स के साथ ठीकठाक क्रिकेटर रहे थे और उन्होंने एक दफा एक बेनिफिट मैच मैच में ब्रैडमैन के साथ 177 रनों की भागीदारी की थी (मैकगिल्वरे का स्कोर 42 रहा था).

हालाँकि दूसरे विश्वयुद्ध के पहले की पुरातन रेकॉर्डिंग्स में उनकी आवाज़ उतनी दमदार नहीं सुनाई देती पर अब उन्होंने गहरी और प्रवाहमान आवाज़ विकसित कर ली थी. वे ऑस्ट्रेलिया के सबसे चहेते कमेंटेटर बन गये और उन्होंने दुनिया भर में कोई 200 टेस्ट मैचों में कमेंट्री की.

कई दशकों बाद व्यावसायिक टेलीविज़न से प्रतिस्पर्धा कर रहे ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कोर्पोरेशन ने उन्हें एक लोकप्रिय विज्ञापन में मार्केट किया जिसके बैकग्राउंड में चलती जिंगल थी – “द गेम इज़ नॉट द सेम विदाउट मैकगिल्वरे.” इस कैचफ्रेज़ का पहला हिस्सा उनकी आत्मकथा का शीर्षक बना जो बाद के वर्षों में उनके द्वारा लिखी गयी कई मनोरंजक किताबों में से एक थी.

वे परम्परावादी थे और टेस्ट मैच स्पेशल की ढीलीढाली और आरामपसंद भाषाशैली में कभी ढल न सके और यही वजह रही कि कुछ सहकर्मी उनके साथ काम करने को मुश्किल मानते थे. मिसाल के तौर पर जॉन आर्लट और उनके बीच बहुत ज्यादा सामंजस्य नहीं बन पाता था. ट्रेवर बेली ने एक जगह लिखा था : “मैकगिल्वरे बहुत अच्छे कमेंटेटर थे और एक बढ़िया क्रिकेटर थे, और यह चल नहीं सका.”

यह अलग बात है कि टेस्ट मैच स्पेशल के खलीफा जब-तब उनके साथ हल्की फुल्की मज़ाक कर उन्हें शर्मिंदा कर दिया करते. ब्रायन जॉनस्टन ने एक बार जान बूझ कर अपने एक सवाल की टाइमिंग ऐसी की कि उन्हें तब जवाब देने पर मजबूर होना पड़ा जब उनके मुंह में केक ठुंसा हुआ था.
एक और वाक़या था जब ब्रायन जॉनस्टन ने उनसे मासूमियत में एक सवाल पूछा जब वे “ऑफ़ द एयर” कुर्सी में गहरी नींद ले रहे थे. आमतौर पर अपनी कमेंट्री के बीस मिनट समाप्त हो जाने पर वे बॉक्स में रहना पसंद नहीं करते थे.

मैकगिल्वरे को संभवतः एक बात का पछतावा रहा. दिसम्बर 1960 में ब्रिसबेन में वेस्ट इंडीज़ से मैच चल रहा था. मैकगिल्वरे को लगा कि मैच जल्दी ख़त्म हो जाएगा और ऑस्ट्रेलिया शर्तिया मैच जीत जायेगी. उन्होंने अपनी कमेंट्री का समय इस तरह निर्धारित कराया कि वे सिडनी वापस जाने के लिए जल्दी फ्लाईट पकड़ सकें. जब वे हवाई अड्डे पहुंचे उन्हें खबर लगी कि मैच इतिहास के पहले टाई में समाप्त हुआ है. मैकगिल्वरे जैसे कमेंटेटर के परफेक्शन के लिहाज़ से वह एक आदर्श मैच था. मगर अफ़सोस.

ब्रैडमैन की अजेय टीम के साथ इंग्लैण्ड की तमाम एशेज़ सिरीज़ में जाने के अलावा वे दक्षिण अफ्रीका और वेस्ट इंडीज़ के कई दौरों पर गए. और वे जहां-जहां गए उन्हें लोगों की इज्ज़त और प्यार मिलता रहा.

उनका आख़िरी ब्रॉडकास्ट सिडनी में 1987 में हुआ, जिसके बाद प्रधानमंत्री बॉब हॉक ने उनके सम्मान में एक भाषण दिया और सारे स्टेडियम ने खड़े होकर उनका सम्मान किया.

1996 में जब 86 की आयु में उनका देहांत हुआ, विज़डन ने लिखा : “अधिक उम्र के बावजूद उन्होंने खेल में दिलचस्पी लेना नहीं छोड़ा था … होबार्ट में 1993 को एक मैच-पूर्व डिनर में औपचारिकताओं के पूरा होने के बाद उन्होंने एक हाथ में स्कॉच और दूसरे में सिगार से लैस होकर लगभग भोर होने तक बाक़ी मेहमानों के साथ लतीफे वगैरह साझे करने बंद नहीं किये थे.”

– अशोक पांडे

पिछली कड़ी 1927 में हुई थी पहली बार क्रिकेट की रनिंग कमेंट्री

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Girish Lohani

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