तकरीबन सात साल का हरीश आज सुबह से ही अपनी धुन में इधर-उधर नाचता फिर रहा था. अपनी धुन में मगन हरीश अचानक देखता है कि घर में एक आदमी आया है और दरवाजे पर खड़ा है. पर उस मेहमान को अंदर नहीं बैठाया गया है, जिस तरह अमूमन घर में आए बाकी सभी मेहमानों को बैठाया जाता है. इस शख्स को बाहर आंगन में ही कुछ देर खड़े रह कर इन्तजार करना पड़ा, जब तक कि उसके पिताजी अपने हाथों दो कुर्सियाँ लिए बाहर के आँगन में नहीं पहुँच गए. हरीश के पिता उस अजनबी के साथ आँगन के एक कोने में कुर्सी पर बैठ गए और माँ दूसरे कोने पर मुंह बनाकर खड़ी हो गयी. (Column by Upasana Vaishnav)
हरीश के लिए यह सब नया था, वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर माजरा क्या है. यह आदमी कौन है और क्यों आया है? बालसुलभ जिज्ञासा में यह बच्चा अभी वहीं खड़ा ही था कि देखता है कि थोड़ी ही देर में उसकी माँ अंदर से चाय लेकर आ रही है. इस आदमी को जिस गिलास में चाय दी गई है वह उनसे कुछ अलग है जिनमें बाकी सभी मेहमानों को दी जाती है. अरे हां! यह तो वही गिलास है जिसे घर के सभी बर्तनों से अलग रखा जाता है. एक बार इसी गिलास में पानी पीने पर माँ ने उसके कान उमेठ कर गिलास हाथ से छीन लिया और बहुत फटकारा भी. उसे लगा यह बर्तन कुछ बहुत ही खास मेहमानों के लिए रखा गया होगा. लेकिन यह आदमी इतना खास क्यों है जो इसे उस गिलास में चाय दी जा रही है.
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हरीश थोड़ी देर ठहरकर खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहता है— जाने दो, मेरे पास अब यह सब सोचने का समय है कहाँ? मेरा दाखिला तो गाँव के नए प्राइमरी स्कूल में हो गया है. फिर कल मेरा स्कूल में पहला दिन भी है.
अगले दिन हरीश स्कूल गया. सवेरे प्रार्थना के बाद सभी बच्चों ने अपनी-अपनी कक्षाओं में अलग-अलग तरह के विषय पढ़े. फिर आयी मध्याह्न भोजन की बारी. हरीश भोजनालय में पहुँचने पर देखता है कि वहाँ तीन चटाइयाँ बिछी हैं. एक दाएं कोने पर, एक बाएं कोने पर और एक इन दोनों के बीच.
हरीश को दायीं तरफ की चटाई में बैठने की जगह दिखी और वह वहाँ बैठ गया. वह अपनी बारी का इंतजार करने लगा कि कब उसे भात मिलेगा उस दाल के साथ जिसकी लजीज खुशबू पूरे भोजनालय में पसरी हुई है. थोड़े सब्र के बाद सभी बच्चों को उनका खाना मिल गया और वे अपनी-अपनी थाली पर टूट पड़े.
स्कूल की छुट्टी की घंटी बजी और हरीश भी सभी बच्चों के साथ मुस्कुराते हुए घर की ओर चल पड़ा. घर लौटकर उसने घर वालों को मजे से अपने पहले दिन के किस्से सुनाए. अब वह खुशी-खुशी रोज़ स्कूल जाता और घर आकर माँ को अपने पूरे दिन की कहानी सुनाता.
आज फिर हरीश स्कूल में आया है और मध्याह्न में वह देखता है कि भोजनालय में तो बहुत ही कम बच्चे बैठे हैं. चटाइयों में बहुत सारी जगह खाली है. हरीश बायीं तरफ की चटाई पर बैठ गया.
तभी भोजन माता उसके पास आई और उसे उठकर दूसरी चटाई पर बैठने को कहा और उसे आइंदा भी कभी उस चटाई पर न बैठने की हिदायत दी. हरीश को इस सबकी वजह समझ नहीं आई तो उसने भोजन माता से इस बारे में पूछा. लेकिन वह उसकी बात का जवाब दिए बगैर वहाँ से चली गयी. तभी साथ बैठे बड़ी उम्र के लड़के ने उसे बताया कि “अरे! पागल, उस चटाई पर नीची जात वाले बच्चे बैठते हैं. बाकी दोनों चटाइयों में हम जैसे बड़ी जात वाले बच्चे बैठते हैं.” हरीश ठीक से तो कुछ समझ नहीं पाया पर लेकिन उसने फिर कभी इस बारे में कोई सवाल भी नहीं किया.
एक साल बाद हरीश अब अगली कक्षा में पहुँच चुका है और देख रहा है कि उसके ही गाँव की नई दाखिल हुई एक लड़की उसके साथ आकर बैठ गई. इस बार ये बच्चा भोजन माता को बुलाकर कहता है—
ये लड़की यहाँ कैसे बैठ गई है? भोजन माता द्वारा शांत कराने के बाद उसने कहा “इसे उधर भेजिए, ये तो शिल्पकार है न!”
इस एक साल के दरम्यान हरीश को उसके सभी मासूम सवालों के शातिर जवाब भी मिल चुके थे. वह जान चुका था कि उस दिन घर में जो आदमी आया था वह इतना ‘ख़ास’ क्यों था. उसे घर में आने वाली बाकी मेहमानों की ही तरह घर के अंदर स्वागत-सत्कार करते हुए क्यों नहीं बैठाया गया. घर के रोज़ाना इस्तेमाल किये जाने वाले बर्तनों से अलग रखे गए ‘उस’ ख़ास गिलास में उसे चाय क्यों गई थी. माँ इतनी मामूली सी बात पर उस पर इतना क्यों भड़क गयी थी. (Column by Upasana Vaishnav)
रामनगर की रहने वाली उपासना वैष्णव देहरादून में पत्रकारिता की छात्रा हैं. उपासना एक अच्छी अभिनेत्री होने के साथ ही अपने भावों को शब्द भी देती हैं.
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