सुन्दर चन्द ठाकुर

अच्छी आदतें कैसे अपनाएं, बुरी से निजात कैसे पाएं

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आज हम हैबिट्स के बारे में बात करेंगे कि कैसे हम अच्छी हैबिट्स के जरिए खुद को ग्रोथ के रास्ते पर आगे बढ़ा सकते हैं. यह विषय मेरे दिल के बहुत करीब है क्योंकि मैं मानता हूं कि हमारे डेवलेपमेंट के लिए अच्छी हेल्दी आदतें सबसे बुनियादी और सबसे बड़ी जरूरत हैं. अगले 15 मिनट में हम हैबिट्स की पावर, नई हेल्दी हैबिट्स को कैसे अपनाया जाए, खराब आदतों को कैसे छोड़ा जाए इन सब पर बात करेंगे. तो तैयार हो जाएं. कमर कस लें. एक रिक्वेस्ट है कि विडियो को पूरा देखें और मैं जो भी होमवर्क दूं उसे भी पूरा जरूर करें क्योंकि तभी आप सेल्फ ग्रोथ के रास्ते पर मेरे साथ-साथ आगे बढ़ पाएंगे.

हैबिट्स की पावर को समझें

दोस्तो क्या कभी सोचा है कि आदतें कैसे बनती हैं, क्यों वे बनकर छूटती नहीं और आप कैसे अच्छी आदतें डालकर बुरी आदतों से छुटकारा भी पा सकते हैं. सबसे पहले तो समझा जाए कि आदतें होती क्या हैं. वे छोटे-छोटे फैसले और ऐक्शन जिन्हें हम रुटीन लाइफ में रोज लेते हैं उन्हें ही हम आदतें कहते हैं. आदतें हमारी दिनचर्या बनाती हैं, हमारे बिहेवियर को प्रभावित करती हैं और अंतत: हमारी पहचान हमारी identity बनाती हैं कि हम हैं कौन. In a way Habits are building blocks of our life. आपको शायद इसका पता न हो कि आदतें हमेशा एक लूप में आती हैं. इस लूप के तीन हिस्से होते हैं – 1. Cue/Trigger 2. Routine/Behaviour 3. Reward. हम जिसे आदत कहते हैं असल में वह तो बिहेवियर है और उसके होने के लिए कोई न कोई क्यू या ट्रिगर होना जरूरी है और बिना रिवॉर्ड के भी कोई बिहेवियर नहीं होता. इसे हम ठीक से थोड़ा आगे समझेंगे.  

कैसे बनती हैं आदतें

आदतें हमारे दैनिक जीवन के वे काम हैं जिन्हें करने में हम अपने दिमाग को ज्यादा खर्च नहीं करते. वे एक तरह से ऑटोमेटड यानी स्वचालित ऐक्शन बन जाते हैं. हमारा दिमाग कुछ इस तरह विकसित हुआ है कि वह हमेशा एनर्जी बचाने की कोशिश करता है. और हमेशा दर्द से दूर भागता है. वह एनर्जी बचाने की कोशिश करता है क्योंकि पूरे शरीर के वजन के महज 2 पर्सेंट वजन वाले हमारे दिमाग को अपने काम ठीक से करने के लिए हमारी पूरी एनर्जी की 20 पर्सेंट एनर्जी चाहिए होती है. क्या किया जाए. उसे काम ही इतने करने पड़ते हैं. इसलिए वह अपनी एनर्जी बहुत बचाकर खर्च करता है. किसी काम को आदत बनाने से उस काम में एनर्जी नहीं लगानी पड़ती. जैसे जब आप ड्राइविंग सीखते हैं तो वह बहुत एनर्जी खर्च करने का काम होता है. आपको स्ट्रेस और एंजाइटी भी होती है. लेकिन सीख लेने के बाद जब ड्राइविंग आपकी आदत बन जाता है, तो दिमाग उसमें रत्ती भर भी एनर्जी खर्च नहीं करता. बल्कि आप ड्राइविंग के साथ दूसरे काम भी करते रहते हैं. आदत की हमारे जीवन में सबसे बड़ी भूमिका यही होती है कि वह हमारे दिमाग की एनर्जी को बचाती है और हमारे रोज किए जाने वाले कामों को ऑटोमैटिक बना देती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि एक दिन में आप अपने लगभग सारे ही काम आदत के तहत ही करते हैं. बस आपको ही इसका खयाल नहीं रहता. जरा खयाल करना कि आप रोज सुबह किस करवट उठते हैं, पैंट पहनते हुए कौन-सा पैर पहले डालते हैं, कमीज में कौन-सा हाथ पहले डालते हैं, सुबह उठकर कैसे ब्रश करते हैं, कितना पेस्ट निकालते हैं, नहाते कैसे हैं, पहले साबुन कहां लगाते हैं, कितनी देर नहाते हैं, खाना खाते हुए सबसे पहले मुंह में क्या डालते हैं – आपके जाने-अनजाने आपके माइंड ने ये सभी काम कब ऑटोमेटेड बना दिए आपको शायद पता ही न चला होगा. याद रखें कि हमारे माइंड को efficiency बहुत पसंद है और आदतें रोजाना के जीवन के मुश्किल कामों को आसानी से पूरा करने में हमें efficient बनाती हैं.

क्या होता है हैबिट लूप

हैबिट लूप एक मॉडल है जो बताता है कि हमारी हैबिट्स बनती कैसे हैं और हम उन्हें क्यों बनाए रखते हैं. इस मॉडल के तीन हिस्से हैं: संकेत (Cue), रूटीन (Routine/Behaviour), और पुरस्कार (Reward).

संकेत यानी Cue जिसे ट्रिगर भी कह सकते हैं, यह हैबिट की शुरुआत करवाने वाला प्रेरक है. यह कोई भी खास स्थिति, समय, आदत या इमोशन हो सकता है जो हमें हैबिट को शुरू करने के लिए प्रेरित करता है.

Routine/Behaviour यह हैबिट के तहत मुख्य क्रिया रहती है. यह वह कार्रवाई है जिसके लिए ट्रिगर ने हमें उकसाया होता है. खाना खाने के बाद सिगरेट पीना या सूरज ढलते हुए दिन की आखिरी कॉफी पीना. यहां खाना खाना और सूरज का ढलना ट्रिगर हो जाएगा. और हमारा सिगरेट फूंकना और कॉफी पीना रूटीन या बिहेवियर हो जाएगा. यह रूटीन हमारे मानसिक मॉडल का एक हिस्सा बन जाता है और ऑटोमेटेड हो जाता है.

Reward भी हैबिट लूप का एक अहम हिस्सा है क्योंकि यही उसे रिपीट करने को हमें प्रोत्साहित करता है. हर हैबिट का उद्देश्य रिवॉर्ड लेना ही होता है. रिवॉर्ड में ही हम एक तरह की संतुष्टि, आनंद, या संतोष महसूस करते हैं, जो हमें रूटीन या बिहेवियर को बार-बार दोहराने के लिए प्रेरित करता है.

न्यूरोप्लास्टिसिटी और हैबिट फॉर्मेशन

हमारा दिमाग बहुत जल्दी स्थितियों के मुताबिक adapt कर लेता है. खुद को reorganize करने की दिमाग की इस सामर्थ्य को न्यूरोप्लास्टिसिटी कहा जाता है. इससे होता यह है कि जो भी हम नए काम करते हैं उन्हें जितना दोहराते जाते हैं दिमाग में उनके न्यूरल सर्किट उतने ही मजबूत होते जाते हैं और वे हमारी आदत बनते जाते हैं. आज से 13 साल पहले जब मैं पहली बार दस किलोमीटर दौड़ा था तो दो दिनों तक काफ मसल में दर्द से मेरा बेहाल रहा था. पर आज मैं 25-30 किलोमीटर दौड़ने के बाद भी सामान्य दिनों की तरह सारे काम करता हूं क्योंकि मुझे दौड़ने की आदत हो गई है. मेरे दिमाग में इस बिहेवियर का न्यूरल सर्किट बहुत मजबूत हो चुका है. आप जिस काम को जितनी बार करते हो, जितना उसे रिपीट करते हो, उस काम को करने का दिमाग में न्यूरल सर्किट उतना ही मजबूत हो जाता है. एक छोटा बच्चा जब पहली बार चम्मच से खाने की कोशिश करता है, तो उससे ठीक से खाया नहीं जाता. खाना मुंह में जाने की बजाय कपड़ों पर गिर जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उसके दिमाग में चम्मच उठाकर मुंह तक ले जाने के बिहेवियर का कोई न्यूरल सर्किट नहीं बना था. सर्किट बने बिना कोई भी काम मुश्किल लगता है.

कैसे बनाएं नई आदतें

चलिए अब आपको नई आदतों को बनाने के लिए जरूरी कदम बताए जाएं. दोस्तो मैंने सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठने से लेकर मेडिटेशन करने, भगवद गीता पढ़ने, मोटिवेशनल किताबें पढ़ने और लिखने, रनिंग और योगा करने, सुबह शंख बजाने, प्राणायाम का रोज अभ्यास करने से लेकर न जाने कितनी दूसरी आदतों से अपनी दिनचर्या को सजाया-संवारा हुआ है. मैं ऑफिस जाते हुए ट्रेवलिंग में लगने वाले एक घंटे के दौरान भी कई उपयोगी काम कर लेता हूं क्योंकि मैंने उन कामों की भी आदत डाल ली है. जिन्होंने आदत नहीं डाली है उन्हें मैं मोबाइल पर गेम्स खेलते हुए समय नामक गोल्ड को मिट्टी में मिलाते देखता हूं. अगर आप भी अपने जीवन को ट्रांसफॉर्म करना चाहते हैं, तो आपको हेल्दी आदतों का सहारा लेना ही होगा. इसलिए नई आदतों को कैसे बनाया जाए इस पर अब मैं जो भी बताने वाला हूं कृपया उसे बहुत ध्यान से सुनें और उसके नोट्स भी बना लें ताकि जब भी कोई कंफ्यूजन हो आप नोट्स रेफर कर सकें.

Start Small and Specific

जब आदतों को बनाने की बात आती है तो अपने लक्ष्य को लेकर आपको बहुत specific होने के जरूरत है कि आपको ठीक-ठीक क्या आदत चाहिए और जोश में एकदम रातों रात सब बदलने की कोशिश नहीं करें. कई लोग जो नए साल पर बड़े-बड़े संकल्प लेते हैं वे कुछ ही दिन में ठंडे पड़ जाते हैं क्योंकि जोश में वे भारी भरकम संकल्प कर लेते हैं. आप देखेंगे कि 2 जनवरी को जिम में पैर रखने की जगह नहीं होती. लेकिन 15 जनवरी के आते-आते सारी भीड़ छंट जाती है. जो लोग 2 जनवरी को आकर एक ही दिन में डोले-सोले, चेस्ट-शॉल्डर, लेग्स, एब्स सब मारकर गए वे तीन दिन तो दर्द के मारे नहीं आते और फिर अगले कुछ दिनों में बार-बार दर्द से परेशान होने से उनका मोटिवेशन धीरे-धीरे खुद ही खत्म हो जाता है. इसलिए कोई भी नई आदत को शुरू करते हुए खयाल रखें कि शुरू में बहुत intensity न बढ़ा दें. ऐसा काम रखिए अपने लिए जिसे आप सहजता से पूरा कर सकें.  

Consistency is the Key

एक बात याद रखें कि आदत बनाने में consistency की सबसे बड़ी भूमिका है. आदत खराब हो या अच्छी. पांच दिन लगातार सिगरेट पी लो, तो छठे दिन आपके पैर खुद ही सिगरेट की दुकान की ओर चल पड़ेंगे. पांच दिन पांच किलोमीटर दौड़ लो, तो छठे दिन अपने आप जूते पहन के निकल लोगे. अमेरिका में एक एक्सपेरिमेंट हुआ था. एक आदमी को बर्गर बहुत नापसंद था. बहुत ज्यादा नापसंद. एक बार उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया. उसे खाने को बर्गर दिया गया. उसने सूंघा. एक कौर मुंह में लिया और थूक दिया. अगले दिन उसे फिर से बर्गर दिया गया. उसने किसी तरह मुंह बनाकर क्वार्टर बर्गर खाया. तीसरे दिन उसने हिम्मत करके पूरा बर्गर खा लिया. हालांकि इस दौरान वह मुंह बिचकाए रहा. चौथे दिन उसने सहज ही बर्गर खा लिया और पांचवें दिन वह बर्गर दिए जाने का इंतजार कर रहा था. तो देखिए किस तरह लगातार करने से तकलीफ भरा लगने वाला काम भी हम खुशी-खुशी करने लगते हैं क्योंकि शरीर को आदत होने लगती है.

Add new habits to old ones

आदतों को अगर इंडिपेंडेंट शुरू करेंगे तो आपको consistency बनाने में परेशानी हो सकती. इसलिए बेहतर यह होता है कि नई हैबिट को किसी पुरानी हैबिट के साथ जोड़कर शुरू करो. जैसे मैं नहाने के बाद ध्यान करता हूं. ध्यान करते हुए प्राणायाम कर लेता हूं. प्राणायाम के बाद मैं ग्रेटिट्यूड एक्सप्रेस करने वाली पांच बातें लिख लेता हूं. यहां नहाने की आदत से मैंने चार आदतें और जोड़ दीं. Atomic Habits के लेखक जेम्स क्लियर इसे stacking the habits कहते हैं. वह आपका मॉर्निग रूटीन हो या रात सोने के समय का रूटीन जब हम नई आदत को पुरानी आदत से जोड़ते हैं तो उसे बनाए रखने की संभावना बढ़ जाती है.

Utilize Triggers and Cues

नई आदत के लिए जिस consistency की जरूरत है वह सिर्फ विल पावर से लाने की कोशिश करेंगे, तो कभी जब विल पावर कमजोर पड़ेगी, तो आदत टूट जाएगी. इसलिए बेहतर है कि आप ट्रिगर और क्यू का इस्तेमाल करो. बहुत से लोग मेडिटेटिव म्यूजिक सुनते हैं तो ही उनका मेडिटेशन करने का मन करता है. तो इसमें कोई बुराई नहीं. रोज मेडिटेटिव संगीत लगाकर सुनो. कुछ लोग अगरबत्ती की खुशबू के बाद पूजा करने का मन बनाते हैं. आप जिस बिहेवियर को अपना लक्ष्य बना रहे हो उसे सहज ही अपनाने के लिए आप जरूरी ट्रिगर ढूंढ सकते हो. मैं सुबह लॉंग रनिंग की प्रैक्टिस पर निकलने से पहले आधा कप ब्लैक कॉफी पीता हूं क्योंकि वह मुझे इंस्टेंट बूस्ट करती है. ट्रिगर विजुअल भी हो सकते हैं, कोई खास समय भी हो सकता है या जैसा मैंने ऊपर बताया कि आप अपनी किसी existing habit को भी ट्रिगर बना सकते हो.

Create a Reward System

अब तक आप यह तो समझ ही गए होंगे कि हर आदत बिना रिवॉर्ड के पूरी नहीं होती. बुरी आदतों के रिवॉर्ड बड़े लुभावने लगते हैं, लेकिन अच्छी आदतों के रिवॉर्ड उनसे भी ज्यादा लुभावने होते हैं. आजमाकर देखो. हर नई आदत को पुख्ता करने यानी मजबूत करने के लिए रिवॉर्ड तय करो. अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए खुद को रिवॉर्ड देना जरूरी है क्योंकि तभी तो आप नई आदतों को sustain कर पाएंगे. आप अगर रोज अपने लिए जरूरी कामों की लिस्ट बनाते हो और रात को चेक करते हो कि कौन-कौन से काम किए और पूरे किए गए काम के आगे टिक लगाते हो तो यह टिक लगाना भी आपके लिए रिवॉर्ड का काम करता है.

How to break bad habits

दोस्तो, बुरी आदतों को छोड़ने के लिए भी हमें हैबिट लूप के हिस्सों पर ध्यान देना होगा. हैबिट लूप के तीन हिस्सों में हैबिट को शुरू करने के लिए पहला हिस्सा बहुत crucial है. ट्रिगर. आपको अपनी हर बुरी आदत के ट्रिगर को पहचानना होगा. मैं एक समय बहुत सिगरेट पिया करता था. मुझे स्मोकिंग छोड़ने में दो-तीन साल लग गए. शुरू-शुरू में बहुत जूझना पड़ा. 30 साल पुरानी आदत थी. कई बार मैं जोर लगाकर दो-तीन महीने सिगरेट नहीं पीता था. पर फिर कोई न कोई पुराना दोस्त टकरा जाता जिसके साथ मैंने कभी सिगरेट पी हुई थी. वह जिद करता तो मैं पी लेता. दोस्त का मिलना मेरी हैबिट के लिए ट्रिगर का काम करता था. मैंने कुछ समय के लिए दोस्तों से मिलना ही बंद कर दिया. अब मैं स्मोक फ्री हूं. स्मोकिंग की तरह ही हर हैबिट के कोई न कोई ट्रिगर होंगे. आप उन्हें पहचानिए और उन्हें हटाइए जीवन से. ट्रिगर हटेगा तो उसके पीछे बिहेवियर भी अपने आप चला जाएगा.  

हैबिट क्योंकि हमारी जिंदगी में बहुत स्पेस घेर लेती है इसलिए जब एक बुरी हैबिट को आप छोड़ते हैं, तो दूसरी किसी पॉजिटिव हैबिट से रिप्लेस करें. ऐसा करेंगे तो आपके लिए आदत छोड़ना आसान रहेगा. मसलन आप अगर सुबह की दूध की चाय छोड़ना चाहते हैं, चाय पीने वाले समय में आप पौधों में पानी देने या कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट सीखने या गार्डन में वॉक के लिए जाने जैसी कोई नई आदत शुरू कर सकते हैं ताकि लाइफ में वैक्यूम न बने. अगर आपके स्ट्रेस से कोई बुरी आदत जुड़ी है, सिगरेट पीने, चॉकलेट खाने जैसी, तो आप स्ट्रेस के साथ लंबी गहरी सांस लेना शुरू कर सकते हैं. यह एक पॉजिटिव और हेल्दी आदत होगी. आदत छोड़ते हुए ज्यादा अच्छा रहता है उसे धीरे-धीरे छोड़ा जाए. दस सिगरेट से पांच और पांच से दो. फिर एक और शूSSS गायब.

आप अपनी कोई बुरी आदत छोड़ने की पब्लिक घोषणा भी कर सकते हैं. सोशल मीडिया में डाल दो एक लाइन – मैं संकल्प लेता हूं कि दीवाली के दिन से दारू पीनी बंद. ओह ओके ओके. दीवाली होली को बख्श देते हैं. नए साल से बंद. अच्छा चलो 2 जनवरी से बंद क्योंकि नएसाल में आप कहां छोड़ेंगे. अब ठीक? घर वालों और दोस्तों को भी बोल सकते हो ताकि वे तुम्हारी मदद करें. पर दोस्त अगर कमीने हैं तो उन्हें कुछ न कहना ही अच्छा. जिसे छोड़ने की बात करोगे, कमीने वही चीज लेकर घर पहुंच जाएंगे.

सुन्दर चन्द ठाकुर

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

इसे भी पढ़ें: खरगोश और कछुए की कहानी में आगे क्या हुआ

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