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खीम दा की खिमली और प्रधानी का चुनाव

उत्तराखंड में प्रधानी के चुनाव अब जाकर आए हैं लेकिन खीम दा को प्रधानी का बुखार पिछले साल से ही चढ़ने लगा था. वैसे तो खीम दा ने जिंदगी में कोई बड़ा तीर नही मारा ठैरा लेकिन लोगों द्वारा चने के झाड़ में चढ़ाए जाने के कारण वह प्रधानी के लिए खुद को योग्य समझने वाला हुआ. घर में बीबी-बच्चों से भरे-पूरे परिवार का मुखिया खीम दा वैसे तो निठल्ला ही घूमने वाला ठैरा लेकिन पुस्तैनी जमीन जायजाद इतनी हुई कि उसका गुजर बसर आराम से हो जाने वाला हुआ. खीम दा के निठल्लेपन व घुमक्कड़ी के किस्से पहाड़ों में दूर गाँव तक फैले ठैरे. उसने दसवीं पास करने के लिए पांच बार अपने हुनर की परीक्षा दी लेकिन हर बार फजीहत ही हाथ लगी. जुअे और अत्तर में तो खीम दा का कोई हाथ ही नहीं पकड़ पाने वाला हुआ पूरे गाँव  में. ईमानदारी कहोगे तो ऐसी कि खीम दा ने जिससे भी उधार लिया फिर उसके एहसान के सिवाय कभी कुछ न चुकाया. जुझारू ऐसा कि घर वाले उसके निठल्लेपन से सुबह-शाम जूझते रहते.

एक दिन घूमते-घामते खीम दा लच्छू फौजी की दुकान में हर शाम को जमने वाली महफिल में पहुँचा. उस महफिल की शान ठैरे दमची, नशेड़ी व फैकमफैकी में अव्वल खीम दा जैसे ही गाँव  के निठल्ले, बेरोजगार लौंडे. खीम दा वैसे तो गाँव  के रईस परिवार का मुखिया हुआ लेकिन उसमें खुद रईसी वाली कोई बात नही हुई. खीम दा को आता देख पिरम्या तुरंत कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया और बोला-आओ भावी प्रधान ज्यु आओ. इतनी देर में बाकी दमचियों ने भी चिलम साइड में रखकर खीम दा को सलाम ठोका. पिरम्या वही इंसान हुआ जिसने खीम दा को सबसे ज्यादा प्रधानी के सातवें आसमान में चढ़ाया ठैरा. वह बोला-खीम दा इस बार तो कोई विरोध में भी नहीं खड़ा हो रा बल. आप निर्विरोध ही जीत जाओगे. बाकी नशेड़ियों ने पिरम्या की बात का भरपूर समर्थन करते हुए खीम दा की दावेदारी को पुख़्ता कर दिया. खीम दा मारे खुशी के नौ-नौ बल्लियां उछलने लगा और तुरंत लच्छू फौजी से बोला कि लौंडों को मेरी तरफ से सिगरेट का एक पैकेट दे देना और पैसे खाते में लिख देना.

खीम दा की अपने गाँव  में कोई बड़ी इज्जत नहीं ठैरी. वो तो उसके बूबू और बाज्यू एक टाइम पर ठेकेदार ठैरे तब. गाँव  के लोग खीम दा को पुस्तैनी जायजाद में पलने वाला निठल्ला कहने वाले हुए. एक दिन तो परूली ने कह भी दिया खीम दा कब तक बाज्यू के पुस्तैनी टुकड़ों में पलते रहोगे? काम धंधा क्यों नहीं करते? खीम दा टॉर में बोला-अरे परूली एक बार प्रधान बनने दे फिर देखना इस गाँव को कैसा चमकाता हूँ. हँसी तो परूली को बहुत आई लेकिन वो मन ही मन हँस के बोली-ठीक छ खीम दा जस कूछा (ठीक है खीम दा जैसा कहते हो). गाँव  में कहने को तो 40 घर हुए लेकिन परिवार 20-22 ही बचे ठैरे. नशेड़ी व बेरोजगार लौंडों के अलावा खीम दा में किसी को भी गाँव  का प्रधान नजर नहीं आने वाला हुआ. चुनाव से कुछ महीने पहले खीम दा की गाँव  में घुमक्कड़ी बढ़ने लगी. खीम दा लंबी-लंबी फैंकता और लोग लपेटते रहते और उसके जाने के बाद बुजुर्ग जोर-जोर से ठहाके लगाते और कहते-खीम जै हिसाबेलि फेरी रूछ ते खन प्रधाने जाग प्रधानमंत्री बनून चैं (खीम जिस हिसाब से घूमता-फिरता रहता है इसे प्रधान की जगह प्रधानमंत्री बनाना चाहिये).

प्रधानी के चुनावी माहौल में एक दिन पिरम्या और तिल्लू खीम दा के घर आए और बोले-दा देखो चुनावों की घोषणा कभी भी हो सकती है इसलिए आपको तैयारी शुरू कर देनी चाहिये. तिल्लू 2 साल दिल्ली काम कर के आया था तो सोशल मीडिया प्रचार की अहमियत समझता था. उसने कहा खीम दा आप फेसबुक में तो हो ही. ऐसा करो वहॉं प्रचार शुरू कर दो. तिल्लू ने खीम दा का हाथ जोड़े एक बढ़िया पोस्टर बनाया और नीचे लिखा-प्रधान पद के लिए आपके क्षेत्र से पढ़े-लिखे, ईमानदार, जुझारू व नौजवान प्रत्याशी खीम को वोट देकर भारी मतों से विजयी बनाएँ. खीम दा की पढ़ाई-लिखाई, ईमानदारी व जुझारूपन किसी से छुपा तो ठैरा नहीं गाँव  में. पोस्टर देखते ही पाण्डे मास्साब की हँसी छूट गई. वो बोले गजब टाइम आ गया यार अब खीम जैसे आवारा भी प्रधानी के ख्वाब देखने लगे हैं.

चुनावों की घोषणा हुई लेकिन खीम दा के अरमानों में पानी फिर गया क्योंकि उसके गाँव  की प्रधानी की सीट इस बार महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई. खीम दा का तो जैसे सपना ही टूट गया. वह अत्तर और दारू पीकर इस गम को भुलाने की कोशिश करने लगा. पिरम्या और तिल्लू इस गम भुलाई कार्यक्रम में खीम दा का भरपूर साथ दे रहे थे. अचानक तिल्लू के दिमाग में आइडिया आया और वो बोला-खीम दा आप चुनाव नहीं लड़ सकते तो क्या हुआ भौजी तो लड़ सकती है. जीत जाएँगी तब भी राज आपका ही होगा. चेहरा भौजी का राज खीम दा का. पिरम्या ने तुरंत एक बड़ा पैग बनाकर तिल्लू को लपकाया और बोला-वाह तिल्लू तू तो गजब दिमागदार ठैरा यार. क्या उपाय सुझा दिया तूने, मजा आ गया.

खीम दा सोच में पड़ गया कि अपनी खिमली को इसके लिए राजी कैसे करे. खिमली का असल नाम तो राधा हुआ लेकिन खीम दा की वजह से लोग उसे खिमली ही बुलाने वाले ठैरे. जैसे तैसे कर के खीम दा ने खिमली को चुनाव के लिए मना लिया. खिमली पढ़ी लिखी नहीं थी ना ही उसका चुनाव लड़ने का मन था. पति की जबरदस्ती उसे चुनाव में घसीट लाई. पोस्टर छपे-प्रधान पद के लिए आपके क्षेत्र से पढ़ी-लिखी, ईमानदार व जुझारू प्रत्याशी राधा को वोट देकर भारी मतों से विजयी बनाएँ. नीचे कोने में खीम दा ने अपनी भी एक फोटो लगवाई और पोस्टर में राधा की फोटो के नीचे लिखवा दिया-धर्मपत्नी श्री खीम दा. खिमली के खिलाफ ही पूर्व प्रधान लोकमणि की बहू ममता भी चुनाव मैदान में उतार दी गई.

प्रचार शुरू हुआ. पोस्टरों के अलावा राधा और ममता कही भी चुनाव प्रचार में नजर नहीं आए. एक तरफ लोकमणि अपनी चुनावी सभाएँ करते तो दूसरी तरफ खीम दा. अजीब विडंबना लोगों में कि जो चुनाव प्रत्याशी हैं वो मैदान में ही नहीं आ रही. बुजुर्ग हरदत्त ज्यू ने एक दिन पूछ ही लिया क्यों रे खीम चुनाव तू लड़ रहा है कि ब्वारी (बहू)? यही सवाल हरदत्त ज्यू ने लोकमणि से भी पूछा. चुनाव जब ब्वारी लड़ रही है तो चुनाव प्रचार में अपने मुद्दे भी वही रखेगी. लोकमणि बोले-हरदा बुजुर्ग हो के हद्द बात कर रहे हो. पराए मर्दों के सामने ब्वारी कैसे आएगी? और वो चुनाव प्रचार करेगी तो घर कौन संभालेगा? हरदत्त बोले-जब ऐसी ही बात थी तो प्रत्याशी बनाया ही क्यों? सिर्फ इसलिए कि चेहरा ब्वारी का होगा और मलाई तुम खाओगे? लोकमणि तू तो पिछली बार प्रधान था ना तो तूने ऐसा कौन सा उपाड़ कर दिया गाँव  में? एक कच्ची सड़क तक तो बनवा नही पाया. प्रधानी के सारे पैसे खाकर हल्द्वानी में जमीन खरीदी सो अलग. ब्वारी जीत भी जाएगी तो तेरे लक्षण तो वही रहेंगे ना. और तू खीम तूने तो आजतक बस तफरी मारी ठैरी. ब्वारी जीतेगी तो तू अपने इन दमची दोस्तों के साथ गाँव  का नाश ही मारेगा. ब्वारी के नाम पर तुम दोनों को जिता भी दें तो इसमें गाँव  का क्या भला होगा?

हरदत्त ज्यू की बातों का गाँव के लोगों ने पुरज़ोर समर्थन किया जिससे लोकमणि और खीम दा अब असमंजस में हैं कि आखिर किया क्या जाए? उन्होंने दारू, मुर्गे का ऑर्डर भी कब का दे दिया है. उधर हरदत्त ज्यू और गाँव के अन्य बुजुर्ग किसी पढ़ी-लिखी महिला के पक्ष में हैं जो गाँव का प्रतिनिधित्व कर सके. कुछ लोग पाण्डे मास्साब की पढ़ी-लिखी बेटी को उम्मीदवार बनाये जाने की मॉंग कर रहे हैं. पाण्डे मास्साब की राजनीति में ज्यादा रूचि नहीं है लेकिन वो भी चाहते हैं कि प्रधान ऐसी महिला बने जो गाँव  को तरक्की के रास्ते पर ले जा सके. क्या होगा गाँव के लोगों का फैसला? कौन बनेगा गाँव  का प्रधान? जानने के लिए अपनी नजरें बहू व पत्नी के कंधे में बंदूक रख गोली चलाने वाले लोकमणी और खीम दा जैसे लोगों पर बनाए रखिये और पाण्डे मास्साब की पढ़ी-लिखी बेटी में प्रधानी की संभावनाएँ तलाशने की कोशिश के तहत आगामी पंचायती चुनाव में अपने वोट का सही इस्तेमाल कीजिये.

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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Sudhir Kumar

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