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बीबीसी की तिलिस्मी आवाज़ वाली रेडियो सेवा का अंत

जरा अतीत की बिसरी गलियों में जाइए और भारत का वह दौर याद करने की कोशिश कीजिए, जब घर-घर में टीवी की स्क्रीन नहीं आए थे. लोग देश-दुनिया की ख़बरें सुनने के लिए रेडियो का सहारा लिया करते थे और बीबीसी रेडियो तब ख़बरों की दुनिया का उनका सबसे बड़ा साथी हुआ करता था और उनका सबसे भरोसेमंद भी. पर पिछले दिनों जब पता चला कि 31 जनवरी 2020 को बीबीसी की चिर-परिचित शॉट वेब हिंदी सेवा का अंत हो गया और ख़बरों की आवाज़ों के लगभग 80 साल का सफ़र खत्म हो गया तो जेहन में ओंकारनाथ श्रीवास्तव, राजेश जोश, रेहान फ़ज़ल की रिपोर्ट, अचला शर्मा की प्रस्तुति, मार्क टली, एक-एक कर सभी की आवाज़ें तैरने लगीं. (Closure of BBC Radio Service)

सचमुच दुनिया में आई हर चीज का पुराना होना, और बूढ़ा होकर खत्म हो जाना तय है, कुछ चीजें पहले, तो कुछ बाद में खत्म होती हैं, पर होती जरूर हैं. बीबीसी हिंदी सेवा का जाना भी ऐसा ही है जो आपको नॉस्टैल्जिया से भर जाता है.   

मुझे याद है रात के पौने नौ बजने से पहले सर्द रात में चूल्हे पर मां रोटियां पका-पकाकर हमारी थालियों में डाला करती थीं, हम बच्चे लकड़ी के चूल्हे के पास रात के खाने पर जुट जाया करते थे. थाली तो पिताजी की भी लग जाती थी, पर हाथ में उनके नैशनल पैनासोनिक की रेडियो सेट हुआ करती. रेडियो ट्यूनर को बड़ी बारीकी से ट्यून करने और बड़े जतन के बाद आवाज़ के साफ हो जाने पर वे सामने लगी किसी छोटी से तिपाई या मोढ़े पर रेडियो रख देते और शरीर को जरा झुका कर अपने कान उसी रेडियो की ओर लगा दिया करते थे. यह उनके रात के रेडियो समाचार सुनने का समय हुआ करता था.

और तभी सुनाई पड़ती थी वह जानी-पहचानी तिलिस्मी आवाज़ और धुन- “आजकल, टिंग, टिनिंग, टिनिंग टिनिंग…नमस्कार. ओंकारनाथ श्रीवास्तव की ओर से.”

फिर देश-दुनिया की ख़बरें बताई जाने लगतीं. उसी दौर पर हमने “उग्रवादी”, “चरमपंथी”, “पृथकतावादी” जैसे चुभने वाले शब्द सुने थे. उन दिनों मतलब नहीं जानता था, पर ऐसा लगता था कि ये लोग तेजी से आकर किसी भीड़-भाड़ भरी जगहों में लोगों पर गोलियां बरसाकर भाग जाते थे. क्यों और किसलिए यह सालों के बाद पता चला. देश की पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या का प्रसारण हो या कश्मीर के हजरतबल दरगाह पर उग्रवादी घटना हो, बीबीसी द्वारा पढ़ी जाने वाली ख़बरें जानकारी न होकर, एक विश्लेषणात्मक आयाम ले लेती थी.

डिजिटल दौर ने कड़ी टक्कर

31 जनवरी को साढ़े सात बजे अंतिम प्रसारण के बाद बीबीसी की शॉट वेब हिंदी सेवा बंद हो गई. ठीक वैसे ही जैसे वक्त के दौर में तार और टेलीग्राम जैसे माध्यम पिछ्ड़ गए, बाद में पत्र और चिट्ठियां गायब हो गईं और अब तेजी से फैलते इस डिजिटल दौर ने बीबीसी जैसी रेडियो सेवा को बंद होने को मजबूर कर दिया.

दरअसल पिछले साल भारत में बीबीसी शॉर्टवेव रेडियो के श्रोताओं में भारी गिरावट आई क्योंकि वे रेडियो से डिजिटल और टीवी माध्यमों की ओर कूच कर गए. रेडियो श्रोताओं की लगातार गिरती संख्या को देखते हुए बीबीसी ने हिंदी में शॉर्टवेव रेडियो प्रसारण समाप्त करने का फैसला किया है.

बीबीसी का भारत में पहला प्रसारण 11 मई 1940 को दस मिनट के न्यूज बुलेटिन के साथ हुआ था.

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मूल रूप से बेंगलूरु के रहने वाले सुमित सिंह का दिमाग अनुवाद में रमता है तो दिल हिमालय के प्रेम में पगा है. दुनिया भर के अनुवादकों के साथ अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के वैश्विक प्लेटफार्म  www.translinguaglobal.com का संचालन करते हैं. फिलहाल हिमालय के सम्मोहन में उत्तराखण्ड की निरंतर यात्रा कर रहे हैं और मजखाली, रानीखेत में रहते हैं.   

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Sudhir Kumar

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