जब दीप जले आना
जब शाम ढले आना
संदेश मिलन का भूल न जाना
मेरा प्यार न बिसराना
जब दीप जले आना…
नित साँझ सवेरे मिलते हैं
उन्हें देख के तारे खिलते हैं
लेते हैं विदा एक दूजे से
कहते हैं चले आना
जब दीप जले आना…
नी रे ग, रे ग म ,ग रे स स नी
प प म, रे ग, स नी स गर प प म प
मैं पलकन डगर बुहारूँगा
तेरी राह निहारुँगा
मेरी प्रीत का काजल तुम अपने नैनों में मले आना
जब दीप जले आना…
जहाँ पहली बार मिले थे हम
जिस जगह से संग चले थे हम
नदिया के किनारे आज उसी
अमवा के तले आना
जब दीप जले आना…
येसुदास को हिंदी सिनेमा में पहली बार चितचोर (1976) के गानों से प्रसिद्धि मिली. रवींद्र जैन को उनकी गायकी इतनी पसंद आई कि, एक बार उन्होंने अपनी भावना को यूँ व्यक्त किया, “अगर कभी मेरी आँखों की रोशनी लौटती है, तो सबसे पहले मैं जिस इंसान को देखना चाहूँगा, वो है येसुदास.”
स़ंगीतकार बप्पी लहरी को यकीन है कि येसुदास के स्वर को ईश्वरीय स्पर्श मिला हुआ है.
जानकारों का मानना है कि उनके स्वरों से स्वर लहरी जैसा सुर निकलता है. कर्नाटक संगीत में दक्ष येसुदास ने हिंदी, दक्षिण की लगभग सभी भाषाओं, बांग्ला से लेकर किर्गिज और रूसी भाषा तक में गीत गाए.
इस फिल्म में उन्होंने ‘तू जो मेरे सुर में मुस्कुरा ले…’ और ‘आज से पहले, आज से ज्यादा… जैसे खूबसूरत गीत गाए. ‘गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा..गीत तो दशकों तक लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा.
‘जब दीप जले आना…’ गीत की खूबसूरती इसलिए ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि इसमें राग गायन और सुगम संगीत का अद्भुत सम्मिश्रण सुनाई पड़ता है. येसुदास ने इसे गाया भी इस अंदाज में है, मानों उनका स्वर सीधे गंधर्व लोक से उतर रहा हो.
गीत के बोल इतने खूबसूरत हैं कि इसमें प्रियतमा से मिलन की मनुहार है. टाइमिंग है. टाइमिंग भी प्रकृति के बिंबों को लेकर बुनी गई है. इस गीत में प्रेमी की उत्कंठ प्रतीक्षा झलकती है- मैं पलकन डगर बुहारुंगा. तेरी राह निहारुंगा… साथ ही उच्च स्तरीय मानवीकरण भी है- ‘मेरे प्रीत का काजल तुम अपने नैनों में मले आना… आखिरी अंतरा में स्थल-संकेत भी है- ‘जिस जगह से संग चले थे हम… नदिया के किनारे, आज उसी अमवा के तले आना…
उन्हें इतने स्टेट सिंगर अवॉर्ड्स मिले कि, आखिर उन्हें अवार्ड्स कमेटी से खुद अनुरोध करना पड़ा कि, अब बस करो. नई पीढ़ी के गायकों को भी मौका मिलना चाहिए. उन्हें आठ बार(सबसे ज्यादा) बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का नेशनल फिल्म फेयर अवार्ड मिला. हिंदी सिनेमा में उन्हें ‘चितचोर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का अवार्ड मिला.
यह गीत जितनी खूबसूरती से गाया गया है, फिल्मांकन भी उससे कमतर नहीं दीखता.
गीत के फिल्मांकन में चीड़ के पेड़ों को चीरती हुई सूर्य की किरणें मन को मोह लेती हैं. उस समय की दीदियों की तरह गीता (जरीना बहाव) के साथ पड़ोसी बच्चा (राजू श्रेष्ठा) हरदम मौजूद मिलता है.
ओवरसीयर तब अच्छा-खासा रिश्ता माना जाता था. फिल्म में ओवरसीयर की महिंद्रा डीआई जीप कई दृश्यों में आती है. ड्राइविंग सीट की तरफ से विनोद (अमोल पालेकर) का पैर बटोरकर जीप में सवार होना एकदम नेचुरल सा लगता है. फिल्म में यह जीप ‘आज से पहले, आज से ज्यादा…’ गीत में भी दिखाई पड़ती है.
दूसरा जो उस दौर का कॉमन फीचर था, इस गीत में दिखाया गया है, वह है हारमोनियम का प्रयोग. गीत के एकाधिक दृश्यों में विनोद, गीता को हारमोनियम सिखाते हुए दिखाई पड़ता है.
पालथी मारकर जीमना नॉस्टैल्जिक बना देता है. येसुदास के गीतों में अक्सर सरगम का प्रयोग देखने को मिलता है. इस गीत में भी बड़ी खूबसूरती से सारेगामा प्रस्तुति देखने को मिलती है.
गीत के अंतिम अंतरा में डुएट में हेमलता की हाई पिच आवाज सुनने को मिलती है. युगल गीत में इस जोड़ी ने बड़े ही खूबसूरत गीत गाए.
गीत के आखिरी अंतरे में सांध्यकालीन सूर्य दिखाई देता है. पर्वतों की चोटियों के मध्य डूबता हुआ सूर्य बड़ा मोहक सा दिखाई पड़ता है.
ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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