चार्ल्स शेरिंग की किताब ‘वेस्टर्न तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉर्डरलैंड’ साल 1906 में लन्दन के एडवर्ड आर्नल्ड प्रकाशन ने छापी थी. ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा में कार्य कर चुके चार्ल्स शेरिंग अल्मोड़ा के डिप्टी कमिश्नर रहे थे. (Charles Sherring Book on Western Tibet)
किताब के शीर्षक की बाईलाइन है – ‘द सेक्रेड कंट्री ऑफ़ हिन्दूज एंड बुद्धिस्ट्स विद एन अकाउंट ऑफ़ द गवर्नमेंट, रिलीजन एंड द कस्टम्स ऑफ़ इट्स पीपल’. (Charles Sherring Book on Western Tibet)
यह किताब वर्तमान पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील की व्यांस घाटी से होकर तकलाकोट में चलने वाले तिब्बत-भारत व्यापार के रास्ते भर के विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती ही है, इसमें तत्कालीन तिब्बत के पश्चिमी इलाकों की शासन प्रणाली का भी बायरा उपलब्ध कराया गया है.
पुस्तक की शुरुआत में असकोट में रहने वाले वनराजियों पर एक महत्वपूर्ण अध्याय है जिसमें अनेक दुर्लभ तस्वीरें भी प्रकाशित हैं.
अपने धार्मिक महात्म्य की वजह से पवित्र माने जाने वाले पूरे इलाके पर एक और अध्याय है जबकि रं सभ्यता और उसकी सांस्कृतिक, धार्मिक परम्पराओं को विस्तार में वर्णित करते पांच अध्याय हैं.
ये पांच अध्याय हमको आज से एक शताब्दी पूर्व से भी पहले के समय में इस अर्ध-घुमंतू रं समुदाय के जीवन की बारीकियों को बहुत विस्तार से परिचित करवाते हैं.
रं घाटियों से तिब्बत व्यापार के मार्ग का ब्यौरा देने के बाद शेरिंग हमें तकलाकोट और ग्यानिमा मंडियों के दृश्य तो दिखलाते ही हैं, वहां के आधिकारिक नियम-क़ानून वगैरह से भी परिचित करवाते चलते हैं. तिब्बत के धर्म और शासन के बारे में भी एक अलग अध्याय है.
पवित्र कैलाश-मानसरोवर को देवताओं का वास बताते हुए ‘ द अबोड ऑफ़ गॉड्स’ शीर्षक अध्याय में अनेक दुर्लभ जानकारियाँ मिलती हैं. पुस्तक में एक अध्याय चार्ल्स शेरिंग के दोस्त टी.जी. लॉन्गस्टाफ द्वारा लिखा गया है जिसमें तिब्बत के कैलाश इलाके में अवस्थित गुरला मान्धाता पर्वत पर चढ़ाई करने के एक एक्स्पेडीशन का वर्णन है.
विषयवस्तु में इतना विस्तार होने के बावजूद इस पुस्तक को आज सबसे अधिक ख्याति उसमें वर्णित उस समय के रं समाज की जीवनशैली और धार्मिक-सामाजिक मान्यताओं की बारीकियों की वजह से मिली है. इस समाज की अनूठी परम्पराओं पर शोध करने वाला हर शोधार्थी सबसे पहले जिन किताबों की शरण में जाता है, उनमें शेरिंग की ‘वेस्टर्न तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉर्डरलैंड’ का नाम काफी ऊपर आता है.
उत्तराखंड के इतिहास को समग्रता से समझने में भी यह पुस्तक बहुत महतवपूर्ण मानी जाती है. फिलहाल इस किताब को भारत में एशियन एजूकेशनल सर्विसेज प्रकाशक ने छापा है और यह आसानी से ऑनलाइन मिल जाती है.
इस किताब से कुछ दुर्लभ फोटो पेश हैं –
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