उत्तराखण्ड के चंदवंशीय शासकों ने राज-काज व प्रशासनिक कार्यों में सलाह लेने के लिए समिति बनायी हुई थी. इन समितियों में चार प्रमुख कबीलों/आलों (धडों) के प्रतिनिधि हुआ करते थे. इन समितियों के प्रतिनिधि बूड़े (सयाने) कहलाते थे. उस समय इन समितियों में शामिल किये जाने वाले बूड़े थे—कार्की, तड़ागी, बोरा, चौधरी.
इन्हीं चार आलों की वजह से यह क्षेत्र चाराल (चार+आल,पट्टी) के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
चाराल के इन चार बूड़ों के अतिरिक्त बिसुंग के पांच थोकों—महर, फर्त्याल, देव, ढेक और करायत में से 2 थोकों महर और फर्त्याल का भी चयन किया गया था और उन्हें बड़ी पगड़ी (प्रतिष्ठा) दी गयी थी जो कि अन्य बूड़ों को दी गयी थी.
प्रशासनिक व्यवस्था के लिए सम्पूर्ण राज्य को 12 गर्खों में बांटा गया था. प्रत्येक गरखे में स्थानीय थोकदारों की एक सभा होती थी. इसके सदस्यों को भी बुड़ा कहा जाता था. चम्पावत में सिम्टी ग्राम पंचायत का बूड़ाखेत गाँव आज भी इस व्यवस्था का स्मारक बना हुआ है.
जोहार, दारमा में भी इन्हें बूड़ा ही कहा जाता है, किंतु पाली परगने में इन्हें सयाना कहा जाता था.
अन्य क्षेत्रों में इन्हें थोकदार कहा जाता था. ये युद्ध एवं शांति दोनों ही स्थितियों में राजसभा में एकत्र होकर राजा को उपयुक्त सम्मति देते थे. इनके अधिकार व कर्तव्य तय होते थे. ये राज्य द्वारा नियत अपने क्षेत्र के सर्वेसर्वा हुआ करते थे. आवश्यकता पड़ने पर इन क्षेत्रों को बेच भी सकते थे. गाँवों में जाने पर इन्हें अपने तथा अपने तथा अपने साथियों के लिए ग्रामीणों द्वारा आतिथ्य प्राप्त करने का भी अधिकार था.
सयाना को सभी पर्व-त्यौहारों के मौके पर उपहार तथा फसल का हिस्सा मिला करता था. उन्हें राजा के ‘मांगा’ (आवश्यकता पड़ने पर प्रजा से धन माँगना) ‘कर’ के रूप में नियत धन प्राप्त करने का भी अधिकार था. इस कर को ‘डाला’ कहा जाता था. इनका कर्तव्य था कि अपने क्षेत्र की जनता से कर संग्रह कर राजकोष में जमा करें.
ये लोग विशेषाधिकार के तौर पर अपने पास ढोल-नगाड़े, नक्कारे व निशान रखने का अधिकार था.
काली कुमाऊँ के बूड़ों की स्थिति पाली पछाऊं के सयानों से श्रेष्ठ थी.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी.डी. शर्मा के आधार पर)
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लेख अच्छा है। पँर एक सुझाव भी है कि किसी लेख को पोस्ट करने पहले उसका प्रूफ रीडिंग भिनकीय करें। मैन कई बार देकह है कि लेख में कुछ वाक्य या पैराग्राफ़ दोबारा दोबारा छप दिए जाते हैं। जैसे इस लेख में ही देख लीजिये।
पहले लेख खत्म होते ही दोबारा शुरू से वही दोबारा लिख पेस्ट कर दिया गया है।
जैसे ये लेख का अंतिम वाक्य था:
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ये लोग विशेषाधिकार के तौर पर अपने पास ढोल-नगाड़े, नक्कारे व निशान रखने का अधिकार था.
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लेकिन इसके बाद दोबारा लेख की शुरुवात हो गई है:
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उत्तराखण्ड के चंदवंशीय शासकों ने राज-काज व प्रशासनिक कार्यों में सलाह लेने के लिए समिति बनायी हुई थी. इन समितियों में चार प्रमुख कबीलों/आलों (धडों) के प्रतिनिधि हुआ करते थे. इन समितियों के प्रतिनिधि बूड़े (सयाने) कहलाते थे. उस समय इन समितियों में शामिल किये जाने वाले बूड़े थे—कार्की, तड़ागी, बोरा, चौधरी.
इन्हीं चार आलों......
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कृपया इसपर ध्यान दें। इन कमियों के कारण आपके ये सराहनीय काम का स्तर गिरता है।
गुणवत्ता बनाये रखने के लिए प्रूफ रीडिंग और एडिटिंग पँर भी ध्यान देना पड़ेगा।