सिनेमा

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 2

(पिछली क़िस्त से आगे) सिनेमा की टिकटों के लिए खिड़की खुलने से काफी पहले ही लम्बी क़तार लग जाया करती…

6 years ago

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 1

जिस तरह पुराने हीरो अब हीरो नहीं रहे, एक दम ज़ीरो हो गए हैं या दादा-नाना बनकर खंखार रहे हैं,…

6 years ago

चलो दिलदार चलो – एक म्यूजिक डायरेक्टर थे गुलाम मोहम्मद

साहिर लुधियानवी ने लिखा था - “ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती”. ताज़िन्दगी आदमी इस मुगालते में जीता है कि…

6 years ago