संस्कृति

हिलजात्रा: ग्रामीण कृषक समाज की जीवंत झांकी

जेठ-आषाढ़ की तप्त गर्मी और हाड़ तोड़ देने वाली धान की रोपाई के बाद सावन के घुमड़ते मेघ पहाड़ों के…

5 years ago

उत्तराखंड में मनाये जाने वाले सातों-आठों पर्व की कहानी

उत्तराखंड में सातों-आठों बहुत महत्व का त्यौहार माना जाता है. इन दो दिनों में गाँव की सभी युवतियां और महिलाएं…

5 years ago

जन्मदिन विशेष: नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखण्ड के प्रतिनिधि लोकगायक

12 अगस्त 1949 को पौड़ी में जन्मे नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखण्ड के उन गिने-चुने व्यक्तित्वों में से हैं जो कुमाऊँ…

5 years ago

मध्य देशों से कुमाऊं-गढ़वाल के घरों में कैसे पहुंची नाक की नथुली

उत्तराखंड में महिलाओं के आभूषण किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं. इन्हीं आभूषणों में एक नाक की नथ या…

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खुदेड़ : नराई से जन्मा पहाड़ी लोकगीत

करीब दस एक साल पहले तक गढ़वाल के गांवों में मोछंग की धुन के साथ दर्द भरी आवाज में गीत…

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गढ़वाल के राजा मान शाह और सुरजू डंगवाल की लोककथा

एक समय की बात है, बहादुर शाह नाम का व्यक्ति गढ़वाल में राज करता था. उसके राज्य की राजधानी श्रीनगर…

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महंत कहते हैं क्यूंकालेश्वर नहीं कंकालेश्वर है पौड़ी के इस विख्यात मंदिर का असली नाम

पौड़ी गढ़वाल में स्थित विख्यात कंकालेश्वर मंदिर को पर्यटन विभाग क्यूंकालेश्वर मंदिर के नाम से प्रचारित करता है अलबत्ता वहां…

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झोड़ा : प्रेम और श्रृंगार से भरा नृत्यगान

अल्मोड़ा-रानीखेत-सोमेश्वर-द्वाराहाट क्षेत्र में झोड़ा एक लोकप्रिय नृत्यगान शैली है. झोड़ा चांचरी का ही परवर्ती रूप लगता है. झोड़ा हिंदी के…

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घर की देहली पर बनाये जाने वाले ऐपण

ऐपण कुमाऊनी आलेखन परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह कुमाऊँ के लोकजीवन व धार्मिक आयोजनों का महत्वपूर्ण पक्ष है.…

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रंगवाली पिछौड़ा : कुमाऊनी महिलाओं की पहचान

उत्तराखंड का परम्परागत परिधान आदर्शतः वहां के वासिंदों की जीवन शैली के साथ ही वहां की प्रजातीय समुदाय की विशिष्ट…

5 years ago