कॉलम

शमशेर सिंह बिष्ट की कलम से उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का एक जीवंत दस्तावेज

पर्वतसेनानी शमशेर सिंह बिष्ट ने यह लेख उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के बीस वर्ष पूरे होने पर लिखा था. तब इसे…

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सूरज की मिस्ड काल – 3

(पिछली कड़ी – सूरज की मिस्ड काल भाग- 2) गुलाबी जाड़े की एक सुबह सुबह उठकर चाय मुंह धो लिये हैं.…

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बेरीनाग टू बंबई वाया बरेली भाग- 2

पिछली कड़ी से आगे... अमिताभ बच्चन या विनोद खन्ना ? 15 अगस्त 1971 को मेरी माँ के मन में ये…

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पहाड़ के एक प्रखर वक्ता का जाना

वह ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन…

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चालाक गीदड़ और शिबजी की कथा

जिन दिनों खेतों में हल लगाने का काम होता घर के सब बड़े लोग बच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं…

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अथ टार्च, लालटेन, लम्फू और ग्यस कथा

तब टार्च, लालटेन व लैम्फू के बिना अधूरा था जीवन -जगमोहन रौतेला आजकल तो भाबर में अब शहर तो छोड़िए…

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काल से होड़ लेता था कवि विष्णु खरे

पहल के ताज़ा अंक में अपनी डायरी की शुरुआत में विष्णु खरे की कविता, ‘एक कम’ की आख़िरी चार लाइनों…

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बार-बार अपनी जड़ों की ओर क्यों उगते हैं बंबई के डेढ़ यार

अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – तीसरी क़िस्त कठोपनिषद की तीसरी वल्ली (अध्याय) का पहला मंत्र है: ऊर्ध्व्मूलोSवक्शाख एशोSश्वत्थः…

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बाली उमर का सिनेमा प्रेम और सच बोलने का कीड़ा

लड़के, पढ़ने के लिए देहात से शहर जाते थे. आसपास के इलाकों में अव्वल तो कोई इंटर कॉलेज नहीं था.…

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शऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है – 15

पहला दखल वो एक नम सुबह थी. ये बताना मुश्किल है कि कल रात की ओस ने देवदार की गहरी…

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