बटरोही

आजादी के बाद पहाड़ों में खलनायक ही क्यों जन्म ले रहे हैंआजादी के बाद पहाड़ों में खलनायक ही क्यों जन्म ले रहे हैं

आजादी के बाद पहाड़ों में खलनायक ही क्यों जन्म ले रहे हैं

हमारी धरती में नायकों की कभी कमी नहीं रही. चाहे जितने गिना लीजिए. आजादी से पहले भी, और बाद में…

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जिन्दगी में तीन सम्बन्ध कभी नहीं मिटतेजिन्दगी में तीन सम्बन्ध कभी नहीं मिटते

जिन्दगी में तीन सम्बन्ध कभी नहीं मिटते

17 जुलाई, 1969 को ठीक पचास साल पहले, आज ही के दिन. Tara Chandra Tripathi Memoir by Batrohi डिग्री कॉलेज…

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‘साह’ जाति-नाम पर कुछ नोट्स‘साह’ जाति-नाम पर कुछ नोट्स

‘साह’ जाति-नाम पर कुछ नोट्स

राजीव लोचन साह की ओर शायद मैं आकर्षित नहीं होता अगर वह उसी सरनेम वाला नहीं होता, जो मेरी बुआ…

5 years ago
बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदाबच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

जब से मैंने शेरदा की किताब ‘मेरि लटि पटि’ अपनी यूनिवर्सिटी में एमए की पाठ्यपुस्तक निर्धारित की, एकाएक पढ़े-लिखे सभ्य…

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देशभर में बच्चों के प्यारे देवेन दा आज से जीवन के 77वें साल में प्रवेश कर रहे हैंदेशभर में बच्चों के प्यारे देवेन दा आज से जीवन के 77वें साल में प्रवेश कर रहे हैं

देशभर में बच्चों के प्यारे देवेन दा आज से जीवन के 77वें साल में प्रवेश कर रहे हैं

देवेन मेवाड़ी की किताबों में उनकी सर्टिफिकेट जन्मतिथि 7 मार्च 1944 दर्ज है अलबत्ता उनकी माताजी के हिसाब से देवी…

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शैलेश मटियानी से पहली मुलाकातशैलेश मटियानी से पहली मुलाकात

शैलेश मटियानी से पहली मुलाकात

यह किताब मैंने 2001 में मटियानीजी की मृत्यु के फ़ौरन बाद लिखनी शुरू की थी और इसके न जाने कितने…

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लॉक डाउन के दिनों में सुल्ताना डाकू और जिम कॉर्बेट की धरती पर बने अपने फार्म हाउस मेंलॉक डाउन के दिनों में सुल्ताना डाकू और जिम कॉर्बेट की धरती पर बने अपने फार्म हाउस में

लॉक डाउन के दिनों में सुल्ताना डाकू और जिम कॉर्बेट की धरती पर बने अपने फार्म हाउस में

आजकल मैं अपने गाँव फतेहपुर में हूँ. हल्द्वानी से सात किलोमीटर दूर कालाढूंगी रोड में नया उभरता हुआ एक क़स्बा…

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तनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्टतनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्ट

तनावहीन चेहरे वाला एक लेखक : पंकज बिष्ट

पहली मुलाक़ात में ही मैंने महसूस किया था कि हम दोनों के बीच कई चीजें समान होते हुए भी वह…

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‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’

‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’

औपनिवेशिक मूल्यों की तलछट पर बिछा एक लाचार समाज भारत को आज़ादी तो 1947 में मिल चुकी थी; मगर आज…

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काले कव्वा : एक दिन की बादशाहतकाले कव्वा : एक दिन की बादशाहत

काले कव्वा : एक दिन की बादशाहत

मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले ‘घुघते’ आदि पकवान बनाकर दूसरी सुबह बच्चों के द्वारा कव्वों को खिलाये जाते…

5 years ago