कला साहित्य

बसंत हमारी आत्मा का गीत और मन के सुरों की वीणा है

जनवरी का महीना था ज़मीन से उठता कुहासा मेरे घर के आसपास विस्तीर्ण फैले हुए गन्ने के खेतों पर एक वितान…

2 years ago

जोशीमठ के पहाड़

इतने सीधे खड़े रहते हैंकि अब गिरे कि तबगिरते नहीं बर्फ़ गिरती है उन परअंधेरे मे ये बर्फ़ नहीं दिखतीपहाड़…

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दहलीज: निर्मल वर्मा की कहानी

पिछली रात रूनी को लगा कि इतने बरसों बाद कोई पुराना सपना धीमे क़दमों से उसके पास चला आया है,…

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सौत: मुंशी प्रेमचंद की कहानी

जब रजिया के दो-तीन बच्चे होकर मर गए और उम्र ढल चली, तो रामू का प्रेम उससे कुछ कम होने…

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एक अधूरी प्रेमकथा : इला प्रसाद की कहानी

मन घूमता है बार-बार उन्हीं खंडहर हो गए मकानों में, रोता-तड़पता, शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, पैबंद लगाने की…

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कुमाऊनी कहानी : जाग

पिरमूका दस्तनि स्वेर हाली. चारै दिन में पट्टै रै गयी. भ्यार भितेर जाण में घुनन में हाथ धरनयी. दास बिगाड़नि…

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लोक कथा : सौतेली माँ

एक दिन एक ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को अपने बिना खाना खाने से मना किया ताकि कहीं ऐसा न हो…

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पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की कहानी जल्लाद

प्रातः आठ साढ़े आठ बजे का समय था. रात को किसी पारसी कम्पनी का कोई रद्दी तमाशा अपने पैसे वसूल…

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ज्ञानरंजन की कहानी ‘अनुभव’

1970 की गर्मियों का प्रारंभ था. गंगा के मैदान में गर्मियों के बारे में सभी जानते हैं. यहाँ पर मौसम…

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जो परदेश रहता है उसी की इज़्ज़त होती है

पहाड़ से मैदान की ओर जाने पर लगता है जैसे सीढ़ी से उतरते हुए चौक में आ रहे हों. कोटद्वार…

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