ललित मोहन रयाल

मुठ्ठी भर कंचे

तब गाँव क्या था, श्याम-श्वेत सिनेमा के दौर का सा गाँव लगता था. चौतरफा खेत-ही-खेत थे, गन्ने-सरसों की फसलों से…

5 years ago

विषय से ज्यादा कठिन शिक्षक

गणित से लड़के दूर- दूर भागते थे. इस पर अफसोस इस बात का था कि, भविष्य के बेहतर मौके, केवल…

5 years ago

मैं ही मैं हूँ, मैं ही सूर्य हूँ, मैं ही मनु…

कॉलेज के दिन थे. रंगीन रुमाल मे इत्र के फाहे रखने की उम्र थी. तो दूसरी तरफ परंपरा-विद्रोह की अवस्था.…

6 years ago

गुर्जी अगर सँभलोगे नहीं तो ऐसे गिर पड़ोगे – हलवाहे राम और लेक्चरार साब की नशीली दास्तान

दोनों में अटूट दोस्ती थी. कुछ ऐसी कि, लंबे समय तक इस दोस्ती ने खूब सुर्खियाँ बटोरी. दोनों के घर…

6 years ago

परीक्षा माने – ‘पर इच्छा’

दो दोस्त थे. दोनों में काफी घनिष्ठता थी. दाँत काटी दोस्ती समझ लीजिए. ये बात, इस नजरिए से बखूबी साबित…

6 years ago

‘मिसाइल मैन’ वाली हेयर स्टाइल

कुछ रोज पहले की बात है. मैं, बाल कटवाने गया था. नापित के यहाँ बाल कटवाने में नंबर लगाना पड़ता…

6 years ago

विशाल हृदय वाले गुरूजी और हिरन का आखेट

हेडमास्टर साहब, मस्तमौला आदमी थे. टेंशन बिल्कुल नहीं पालते थे. बरसात के दिनों को छोड़कर, सालभर कक्षाएँ बाहर लगती थीं.…

6 years ago

आकाशमुखी लेखन का एंड्रॉयड युग

कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद, स्कूल-इंस्पेक्टर थे. वे अक्सर देहातों में दौरों पर रहते थे. आवागमन के साधन तब बहुत सीमित होते…

6 years ago

बाली उमर का सिनेमा प्रेम और सच बोलने का कीड़ा

लड़के, पढ़ने के लिए देहात से शहर जाते थे. आसपास के इलाकों में अव्वल तो कोई इंटर कॉलेज नहीं था.…

6 years ago

मलूक दादा का अगला दांव

उत्तिष्ठ अर्थात् उठो, न कि उठाओ क्षीण कटि, क्षीण स्वभाव. वैसे उनकी संपूर्ण ही काया क्षीण थी. सुतवाँ शरीर.साहस और…

6 years ago