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ब्रह्मपुर: पर्वतीय उत्तराखण्ड की ऐतिहासिक राजधानी

ब्रह्मपुर चौथी व छठी-सातवीं शताब्दी के मध्य में उत्तराखण्ड के पर्वतीय राज्य की राजधानी हुआ करती थी. इतिहासकारों के अनुसार गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तरी भारत में पैदा हुए छोटे-छोटे राज्यों में से ब्रह्मपुर भी एक था.

ब्रह्मपुर का वर्णन सातवीं शताब्दी के चीनी यात्री युवान-च्वांग के यात्रा वृतांतों में भी मिलता है. इसके अलावा इसी काल के वर्मन शासकों के तालेश्वर ताम्रपत्रों में पर्वताकार राज्य के रूप में ब्रह्मपुर का जिक्र है. वाराहमिहिर की बृहतसंहिता व मार्कंडेय पुराण में भी इस पर्वतीय राज्य का उल्लेख है.

कत्यूरी जागरों में भी ब्रह्मपुर का उल्लेख, ‘असं बांका वासन बांका, बांका ब्रह्म लखनपुर बांका’, है.

अपितु ब्रह्मपुर नगर की भौगौलिक पहचान के सम्बन्ध में इतिहासकार व पुरातत्ववेत्ता एकमत नहीं हैं. कनिंघम ह्वेनसांग के यात्रा वृत्त के आधार पर इसे पश्चिमी रामगंगा के तट पर स्थित लखनपुर (वैराटपट्टन) अथवा कत्यूरों की रंगीली बैराठ पर बताते हैं. पावेल पाइस इसे कत्यूर घाटी में स्थित बताते हैं. एटकिन्सन तथा राहुल सांकृत्यायन इसे भागीरथी घाटी के बाड़ाहाट में होना बताते हैं. इस सम्बन्ध में कई अन्य मत भी प्रचलन में हैं.

सातवीं शताब्दी में ह्वेनसांग द्वारा वर्णित ब्रह्मपुर का विवरण इस प्रकार है— ह्वेनसांग सन 634 ई. में थानेश्वर से सुघन (सहारनपुर) होता हुआ गंगा पार कर बिजनौर के मंडावर पहुंचा. वहां से मयूर (मोरध्वज) एवं मायापुर (हरिद्वार) होता हुआ वह ब्रह्मपुर पहुंचा. ह्वेनसांग के अनुसार मायापुर से ब्रह्मपुर की दूरी 300 ली अर्थात 80 किमी के लगभग थी.

ह्वेनसांग के अनुसार राजधानी क्षेत्र छोटा है लेकिन आबादी घनी और समृद्ध है. जमीन उपजाऊ होने के कारण फसलों का बोना-काटना नियमित चला करता है. इसके अलावा यहाँ तांबा और बिल्लौर का उत्पादन भी होता है. जलवायु ठंडी है और लोग रूखे स्वभाव के. कुछ लोग पढने-लिखने वाले भी हैं मगर ज्यादातर व्यवसायी ही हैं. बौद्ध तथा हिन्दू दोनों धर्मों के अनुयायी यहाँ रहते हैं. यहाँ 5 बौद्ध मठ और दर्जन भर हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं. सभी आपस में मिल-जुलकर रहते हैं.

(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)     

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Sudhir Kumar

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