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काली कुमाऊं के वीर भ्यूंराज की मार्मिक कथा

घटना कुमाऊं के अंतिम चंद राजा मोहन चंद के काल (सन् 1777 से 1788 ई.) की है. इस समय कुमाऊं पूर्णतया जर्जर और छिन्न-भिन्न हो चुका था. इस अन्तिम राजा बनने की लालसा वाले शासक ने कुमाऊं के बिछिन्न सूत्रों को पुनः जोड़ने का अन्तिम असफल प्रयास किया था. कुमाऊं को भीतरी और पड़ोसी महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों और राजनैतिक ताकतों ने बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था.
(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

राजा मोहन चन्द ने चंद राजाओं के परम्परागत सैनिक सहाय को, स्वामिभक्त लड़ाकू सामन्तों को एकत्रित कर फिर कुमाऊं की गद्दी में बैठने के जोड़-तोड़ किए. कुमाऊं में चंदराज्य के तमाम स्वामिभक्त लड़ाकू वीर परिवारों में खेती खान के ‘बांज’ गाँव के ‘सया’ बंजवाल (देऊपा) का परिवार भी था.

सया के दो वीर पुत्र थे, भ्यूंराज और सुरुता. मोहनचंद अपने पड़ोसी राजा के आक्रमणों से तंग आ चुका था, उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए सया ‘बजवाल’ को युद्ध में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया. इसी पर आधारित गाथा नीचे दी जा रही है:

नानी डाली बाँजै बोटी टिप निक्वाल.
बांजे का खल माथ को छै दिख्वाल

राजा मोहन चंद का दूत सया बंजवाल को आवाज देता है, छोटे बांज के पेड़ की शाखा से बांज के बीज तोड़ लो अर्थात बांज का बीज उगता तो है, पर उसका फल खाया नहीं जाता. संकेत यह है कि शायद तुम्हारे घर में भी ऐसा वृक्ष फला है, जो खाने योग्य नहीं रहा. (सन्तान का ऐश्वर्य सुख, भोग तुम्हें नहीं है) अब बांज खुल कर कहता है, अरे ओ ! बांज गांव के आँगन में दिखाई पड़ने वाले तुम कौन हो ?

जेठ आषाड़ को दे चुकोलो.
बाजें का खल माथ को छै सुकीलो.

जेठ आषाड़ का दही खट्टा होता है, अर्थात् खट्ठा तो होता है फिर भी लोग उसे चाव से लेते हैं. संकेत है कि युद्ध का समाचार सुनने में बड़ा रोमांचकारी है पर वीर लोग उसे छोड़ते नहीं है. बांज गाँव के आंगन में सफेद वस्त्र पहना हुआ कौन खड़ा है ?

तीर ब्वेछ मलसो, कनीस ब्वेछ सौं.
पार देख्याल को छै बांज का गौं

खेत के सभी छोरों को अर्थात् भीतरी व बाहरी किनारों में ऐसे अन्न बोये गये हैं जो बीच के उपजाऊ भाग की खेती से भिन्न होते हैं. ताकि खेत के हर भाग में कुछ न कुछ पैदा हो सके. संकेत है कि राजा ने अपने कटक को चारों ओर से हर प्रकार से सजा रखा है. बाँज के गाँव के पार दिखाई पड़ने वाले तुम कौन हो? सया बंजवाल सुनकर उत्तर देता है:

सीड़ि साड़ी पिछौड़ी का मिलाया ठोक,
को रे छै तू क्या रे कौं छै धविया लोक.

जैसे ओढ़नी के हर किनारे को आपस में जोड़कर बनाया जाता है उसी प्रकार अपनी बात को कहने वाले तू आवाज लगाने वाला व्यक्ति कौन है?

नानी डाली बांजै बोटी टिप निक्वाल,
तुमु खन पाति औगै सया बंजवाल.

इस का उत्तर : बांज पेड़ की डाल अभी छोटी ही है, उसके बीज तोड़ लो अर्थात् तुम्हारे लड़के अभी छोटे ही हैं, उनका फल परिपक्व नहीं हुआ. तुम उसे तोड़ डालो. तुम्हारे लिए राजा का पत्र आया हुआ है.

लुबा को तसाली माथ भुटियो भांग्गो,
कि आये कटक पालो कि दिये मांग्गो.

लोहे के तसले में भांग भूनी गई है, भांग का बीज भुन जाने के बाद उगते ही शक्ति से हीन हो जाता है. लोहा गरम हो रहा है, वीर पुरुष भांग के बीजों की भांति उसमें भूने जाएंगे. अतः या तो अपनी बारी या पाली का कटक लेकर आओ या राजा को मांगा अर्थात् युद्ध में न आ पाने के बदले, कर अदा करो.

नागनाथ जोग्यानी को टूटौ फरुवा,
तै पातौ मादर दि औ भौ न रुवा.

नागनाथ की जोग्यानी का फरुवा टूट गया है, बेटा नरुवा ! तू पाती सया को दे आया, दूत का यह संदेश सुनकर सया बंजवाल अपनी पत्नी से कहता है:

अगरयाड़ी कखरयाड़ी फुली गैछ झै,
कटक की पालि ऐगे सुरता को मै.

आगे पीछ ‘झै’ फूल गई है, (झै एक फूल जिसका फूलना विनाश का सूचक होता है.) हे सुरता की माँ ! युद्ध के लिए कटक भेजने की हमारी बारी आ गई है. पत्नी उत्तर देती है:

बाराकोट बाटा माथ पिड़ालू गावा;
के चेला कटक लैंछ सुरता बाबा.

(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

बाराकोट के रास्ते में पिड़ालू (घुईयां) की कलियों की भांति सुकुमार अपने बेटों में किसको हे सुरता के बाप ! कटक लेकर लडने भेजोगे? सया का उत्तर है:

अगरयाड़ी कखरयाड़ी फुलि जालीको,
मै बुड़ो कटक जांछूं सुरता की मैं.

है सुरता की मां. मैं बूढ़ा ही कटक लेकर जाता है. बच्चों को भेजने से तो हमारे घर के मांगन और पिछवाड़े में ‘झे’ फूलने लगेगी. अर्थात् पर उजड़ जाएगा. बाप की बातें सुनकर दोनों वीर बेटे मां-बाप को समझाते हैं.

सालै का रूख माथ भेरि लागौ मौ,
हम जान कटक में, तुम घरै रौ.

साल के पेड़ के ऊपर मधुमक्खी अपना छता लगाती है तो क्या लोग उसे तोड़ते नहीं है. युद्ध भी ऐसा ही है, बापजी आप घर ही रहें, हम कटक में जाते हैं. बड़ा लड़का भ्यूराज बोला:

साल में की सलै रूखी झड़ पिरोल,
ध्वे मेरि लुगड़ी ध्वेदे कैंजा पिरोज.

हे मेरी मौसी पिरोजा! मेरे कपड़ों को धो दे. यह कहकर वह जोशी जी से घर से प्रस्थान करने की शुभघड़ी पूछने गया

तताया का दूद मै है निकलो गाज,
ज्वेशी खोला बाटा लागो बांको भ्यूराज.

गर्म किए हुए दूध से जैसे झाग निकलता है, उसी प्रकार उमंग से भरा भ्यूराज, जोशी खोला ज्योतिषी के घर की ओर चल दिया.

काली राती सेती गै को भरि बेला घ्यू,
बैठ-बैठ बैठी जा हो जजमान ज्यू.

काली, राती, सफेद गायों का कटोरे में घी भरकर जोशी ने अपने यजमान को बैठने को कहा:

काली राती सेती गै को भरि बेला घ्यू,
कि काम ले घोडि दौड़े जजमान ज्यू.

(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

काली, राती सफेद गाय का घी कटोरे में भरकर देते हुए जोशी जी ने पूछा, यजमान जी ! किस काम से आपने मेरे घर तक घोड़ी दौड़ाई है?

काली राती सेती गै को भरि बेला घ्यू,
कटकै को दिन हेरा बड़ा ज्वेशी ज्यू.

जोशी जी कटक में जाने का दिन देखकर बताएं:

धार मै की सलै रूखी कै ले हलकै,
पैली रोत देखि ज्वेशी मुजी हलफै.

पहाड़ की धार में खड़े चीड के पेड़ को किसने हिला दिया अर्थात् जैसे पहाड़ के सबसे ऊपरी भाग में खड़े चीड़ के पेड़ का हिलना आंधी आने का सूचक होता है. जोशी जी सोचने लगे कि निश्चय ही कुछ घटने वाला है. अतः उन्होंने पहले ही चिन्तित होकर सिर को झुका दिया. इस पर भ्यूंराज फिर पूछता है:

काली राती सेती गै को भरि बेला घ्यू,
सांचो बात बते दिया बड़ा ज्वेशीज्यू.

जोशी जी आपने कटोरे में भरकर घी तो पीने को दिया पर सच-सच बात बतलाने में क्यों बिलम्ब कर रहे हैं? जोशी जी उत्तर देते हैं :

नागनाथ जोग्यानी ले मांगछी भीक,
तुमौ त अपैठ हुंछ सुरता ठीक.

नागनाथ मन्दिर की जोग्यानी (भिक्षुणी) ने भिक्षा मांगी है. अर्थात तुम्हारे प्राणों की रक्षा सम्भव नहीं है. हे भ्यूंराज. तुमको कटक में जाने का अपैट है. अपैट के कारण तुम्हारा युद्ध में जाना शुभ नहीं है. पर सुरुता के लिए ठीक है. सुरुता और भ्यूंराज कटक में जाने के लिए तैयार होते हैं:

निंगाली पेटारी माय लुवा लाखर,
घोड़ि जीन कसि दे हो मनु चाकर.

हे मनु चाकर! निगाली की पिटारी में लोहा-लाखर रख दे और घोड़े की जीन कस कर तैयार कर दे. घोड़ा तैयार करके दोनों भाई युद्ध स्थल के लिए प्रस्थान करते हैं. उनके प्रस्थान के समय उनकी मां प्रार्थना करती है.

द्वी माना मासै कि हाल छी पूरी,
कटक में दान भये तु कालाधुरी.

हे कालाधुरी के इष्ट देव (सिद्ध नरसिंह) युद्ध में आप मेरे लड़कों के दाहीने (कृपालु) हों. दो माना उड़द की पूड़ी वीरों को परोसी गई है. पुराने समय में वीरों को युद्ध का निमंत्रण देने के लिए उड़द की पूड़ियां भेजी जाती थी.

द्वी माना मासै कि हाल छी पूरी,
याँ कि घोड़ि धाप लागो देवी कि धुरी

दो मांना उड़द की पूड़ियों से उनको न्यौता गया था. उनकी घोड़ी ने अपने गांव से सीधी छलांग देवीधुरा में लगाई.

तताया का दूध में है निकलो गाज,
सोल सै को गोलीदार बांको भ्यूंराज.

(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

खौलते हुए दूध में आग निकलता है. सोलह सौ सिपाहियों का गोलीदार (नायक) बांका भ्यूराज भी उत्साह से भरा था. युद्ध शुरू हुआ. भ्यूंराज के छोटे भाई ने देखा कि राजा का पक्ष दुर्बल पड़ रहा है:

मारा-फरत्याल डेरा पडि गै भाज,
हाम लगै भाजि जान दादा भ्यूंराज.

बड़े भाई भ्यूंराज, मारा-फरत्यालों (काली कुमाऊँ की दो प्रमुख लड़ाकू जातियाँ) के डेरों में भगदड़ मच गई है. हम लोग भी भाग निकलते हैं.

तड़ागी – कार्को डेरा पड़ि गै भाज,
हिट हिट भाजि जानूं दादा भ्यूंराज,

बड़े भाई (दादा) भ्यूंराज! तड़ागी कार्की (ये भी काली कुमाऊँ की जुझारुं जातियां हैं) के डेरों में भगदड़ मच गई है. चलो, भाग निकलें. भ्यूंराज अपने छोटे भाई को समझाता है:

आखिर अयानूं है गे भौ सुरुता,
बाबा ज्यू को नौंजालो भौ सुरुता.
सबौ खन रोकि दीनूं भौ सुरुता,
कटक जितना हाम भी सुरूता
.

भाई सुरूता! तुम अभी अबोध हो, भाग निकलने से पिताजी का नाम मिट जाएगा, हम सभी भागने वालों को रोकेंगे और शत्रु के कटक को जीत लेंगे.

गरग्याली तो स्यारी को फरक्यो पात,
भ्यूराजै की मुड़ि माथ लागी गै कात  

(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

गरग्याली और तुस्यारी का पत्ता उलट दिया गया. भ्यूराज के सिर पर ‘कात’ (भाले का तीखा फाल) लग गई, भ्यूराज घायल हो गया, उसका शरीर गरग्याली, तुस्यारी के पत्तों की भाँति सफेद पड़ गया.

चौभीडा रघाडी लीजा भौ सुरुता,
चार वात बतै जांछू भौ सुरुता.

रामिया झोगली दिये भौ सुरुता,
इजु बाज्यू समझाए भौ सुरुता  

भ्यूंराज कहता है, हे भाई सुरुता मुझे चार भीड़ों (सीढ़ियाँ) से नीचे खींचकर ले जा. मरते-मरते चार बात तुमको बता जाता हं. रामिया (बच्चा या पत्नी स्पष्ट नहीं) को कपड़ा देना, माता-पिता को समझाते रहना. यह कहकर भ्यूंराज वीरगति को प्राप्त हो गया.

गंग ज्यू है लोडि लायूं लोडी फुटी गै,
सुरता-भ्यूंराजै कि जोड़ि टुटी गै.

गंगा जी से लोड़ी (पत्थर के गोल-गोल खंड) लाया. लोड़ी फूट गई, सुरुता और भ्यूंराज इन दो भाइयों का जोड़ा भी टूट गया.

गंगा ज्यू है लोड़ि लायूं लोडी फुटी गै,
बोरयानी भाना को चरे खुचि गै.

गंगा जी से लाया गया लोढ़ा फूट गया लोढ़े की भांति गठीला भ्यूराज नष्ट हो गया, ‘भाना’ बोरयानी (स्त्री का नाम) का मंगल सूत्र खुल गया (उसका सुहाग लुट गया), भ्यूंराज की घोड़ी युद्ध भूमि से लोट आई, मां उसे देखकर विलाप करती है :

भ्यूराज कि घोड़ी ऐगै, भ्यूंराज का छ,
एकलो सुरता आयो भ्यूंराज कांछ.

भ्यूराज को घोड़ी आ गई है, भ्यूंराज कहाँ है? अकेला सुरुता आया, भ्यूंराज कहाँ है?

तेरो राज भांगो फूलो मुहनी चन्द,
मेरो बांको मरै गौ छ मुहनी चन्द.

तेरे राज्य में हे राजा मोहन चद भांग फूल जाय (उजड़ जाय). तूने मेरे बांके जवान लड़के को मरवा दिया.

द्वी माना मासैकि हाल छी पूरी,
कित मेरो भ्यूराज देवी की धूरी.
द्वी माना मांसैकि हालिया रोट,
कित मेगे भ्यूराज मोरे का कोट

दो ‘माना’ उड़द की पूड़ियों से युद्ध के लिए मेरे बेटे को न्यौता गया था. (फिर उसे विश्वास नहीं होता, सोचती है) मेरा बेटा कहीं ‘मारा’ (लड़ाकू जाति) की गढ़ी बिसुं में (‘मारा’ की गढ़ी जो भ्यूंराज के मामा थे) में तो नहीं है?

देवीधुरा थान माय बड़ी मूरत,
आव कां देखनूं भियां तेरि सूरत.

(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

देवीधुरा के मदिर की बड़ी मूर्ति की भांति अब तुम पूजनीय हो गए हो, अब तुम्हारी सूरत कहाँ देखूगी?

घिंगारू की लठो माथ लुवा को बन्द,
इजु बबा समझालो मुहनीचंद

घिंगारू की लाठी के सिरे पर जैसे लोहा मढ़ा जाता है उसी प्रकार भ्यूंराज के माता-पिता को राजा मोहन चन्द समझाता है. अर्थात् धिंगारू की लाठी को टिकाऊ रखने के लिए जैसे उसकी नोक को लोहे से मढ़ा जाता है, उसी प्रकार राजा भी उनको धैर्य देने लगा. मोहन चन्द समझाते हुए वायदा करता है.

पशुपती थान माय ठुलो चमर,
तेरो भिया करि जौनूं बड़ो अमर.

पशुपति शिव के मंदिर में बड़ा चवर डुलाया जाता है, तेरे भियां को भी मैं अमर कर दूंगा अर्थात् पशुपति की सेवा में जैसे चंवर डुलाया जाता है, तेरा भ्यू राज उसी प्रकार पूजनीय होगा.

कडबाद कटारी कटारी लागो खै,
सालमै का तीन गौं की माथ तेरी भै.
कडबाद कटारी फटारी लागो खै,
सुरता भ्यूराजै कि काथा पूरि भै.

कटार को खै (जंग) लगने से बचाने के लिए उसे म्यान में रखा जाता है, तुम्हारे पुत्र की वीरता के पुरस्कार स्वरूप (मोहन चंद कहता है) सालम के तीन गांवों की जागीर देता हूँ, इस प्रकार भ्यूंराज और सुरता की कथा पूरी होती है.
(Bhyunraj Veer of Kali Kumaon)

डॉ. राम सिंह

डॉ. राम सिंह का यह पुरवासी पत्रिका के 1992 के अंक से साभार लिया गया है. डॉ. राम सिंह द्वारा यह लेख इसी वर्ष दिवंगत हुये अपने बड़े बेटे भारतबंधु (भरत) की स्मृति में लिखा गया था.

इसे भी पढ़ें: डॉ. राम सिंह की स्मृति: अपने कर्म एवं विचारों में एक अद्वितीय बौद्धिक श्रमिक

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