समाज

लाखामंडल का भवानी पर्वत जहाँ पार्वती ने तपस्या की थी

लाखामंडल उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले की ग्राम सभा है. यह क्षेत्र जौनसार बावर के रूप में भी अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान रखता है. लगभग 1000 की आबादी वाले इस गाँव में उत्तराखण्ड के सभी पर्वतीय क्षेत्रों की तरह बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. लाखामंडल में 12वीं तक की शिक्षा की तो व्यवस्था है लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है.

यमुना किनारे बसे लाखामंडल के यह हाल इसके बावजूद है कि यह एक ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्त्व का गाँव है. इस गाँव के इर्द-गिर्द पुरातत्विक महत्त्व के कई अवशेष मौजूद हैं, जिनके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां छिपी हैं.

भवानी पर्वत और भवानी गुफा

लाखामंडल गाँव का मस्तक है भवानी पर्वत. कहते हैं कि यहाँ माता भवानी ने अपने पुत्र कार्तिकेय को बल प्रदान करने के लिए तपस्या की थी. ताकि कार्तिकेय ताड़कासुर का वध कर सके.

कहा जाता है कि ताड़कासुर ने अपनी तपस्या से शिवजी को प्रसन्न कर अमरत्व का वरदान मांगा. महादेव ने कहा कि यह असंभव है. तब ताड़कासुर ने यह वरदान मांगा कि मेरी मृत्यु शिव पुत्र के ही हाथों हो. शिव ने उसे यह वरदान दे दिया.इसके बाद उसने दुर्दांत होकर देवताओं को अपनी सेवा में लगा लोया.

 शिव थे बैरागी. अतः देवताओं ने कामदेव और रति की मदद से पार्वती को माध्यम बनाकर शिव को गृहस्थ जीवन के लिए आकृष्ट करने की कोशिश की. शिव के क्रोधित होकर कामदेव को जला दिया. लेकिन पार्वती ने हार नहीं मानी. पार्वती ने शिव को अपने रूप से सम्मोहित करने के बजाय जप-तप का रास्ता चुना.

आखिरकार शिव पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वती से विवाह किया. इस वाह से कार्तिकेय (स्कन्द) का जन्म हुआ. देवताओं ने कार्तिकेय को अपना सेनापति बनाया और देव-असुर संग्राम छेड़ दिया. अतः बालक कार्तिकेय ने गुजरात में ताड़कासुर का संहार किया.

किवदंती है कि ताड़कासुर का वध किये जाते समय कार्तिकेय बच्चे थे. वह बलशाली ताड़कासुर का वध कर सके इस गरज से पार्वती के भवानी रूप ने हिमालय में यमुना नदी के किनारे तपस्या की.

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि आज जहाँ भवानी गुफा है कभी यमुना इसके बगल से होकर बहती थी. आज यह इस जगह से आधा किमी निचे बहा करती है. भवानी पर्वत पर ढेर सारी गुफाएँ भी हैं. इन गुफाओं को देखकर भी यही लगता है कि ये पानी के बहाव से बनी होंगी.

लाखामंडल के भवानी पर्वत पर ग्रामीणों द्वारा एक मंदिर का भी निर्माण किया गया है. इस मंदिर में पिछले तीन सालों से तिल के तेल से अखंड जोत जी जलाई जा रही है.

भवानी पर्वत की रहस्यमयी गुफाओं के अलावा लाखामंडल में पांडवकालीन शिव मंदिर भी है.            

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Share
Published by
Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago