बेरीनाग की चाय किसी दौर में इंग्लैंड के चाय शौकीनों की पसंदीदा चाय थी इस कारण उसकी अत्यधिक मांग बनी रहती थी. उस दौर में बेरीनाग चाय लंदन के चाय घरों में एक अत्यधिक मांग वाली चाय थी. यह चाय नब्बे के दशक तक लंदन टी हाउस में अत्यधिक मांग वाली चाय थी. अफसोस की बात है कि आज पुरानी पीढ़ी को छोड़कर इस ब्रांड को भुला दिया गया है. मैने भी बचपन में इस चाय का खूब जायका लिया है.
(Bering Tea)
चाय दुनिया में सर्वाधिक लोकप्रिय पेय में से एक है और दुनिया के लगभग हर कोने में आसानी से उपलब्ध है. उत्तराखण्ड में चाय की खेती का इतिहास 150 वर्ष पुराना है. उत्तराखण्ड में चाय की खेती यूरोपियनों के आने के बाद ही शुरू हुई. सन 1824 में ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर ने कुमाऊं क्षेत्र में चाय की सम्भावना व्यक्त करते हुए कहा था कि यहां की जमीन पर चाय के पौधे प्राकृतिक रूप में उगते हैं लेकिन काम में नहीं लाए जाते हैं. हेबर ने कहा था कि कुमाऊं की मिट्टी का तापमान तथा अन्य मौसमी दशाएं चीन के चाय बागानों से काफी मेल रखती हैं.
वानस्पतिक उद्यान सहारनपुर के अधीक्षक डा. रोयले उत्तराखण्ड में चाय की सफल खेती से पूर्णतः सहमत थे. चूंकि ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों को कुमाऊं में निजी संपत्ति रखने की अनुमति नहीं थी इसलिए कुछ ब्रिटिश लोगों द्वारा उन्हें उत्तराखंड में निजी संपत्ति देने की मांग उठाई गई. सन 1827 में डा. रोयाले ने सरकार से अनुरोध किया कि कुमाऊं की विशाल भूमि जहां कोई खेती नहीं हो रही है चाय बागानों के लिए यूरोपीय लोगों को दी जानी चाहिए. तत्पश्चात सन 1834 में भारत में एक चाय समिति का गठन किया गया और सन 1837 में ब्रिटिश संसद ने अंग्रेजों को भारत में निजी संपत्ति रखने की अनुमति देने वाला एक विधेयक पारित कर दिया.
(Bering Tea)
कुमाऊं और गढ़वाल के आयुक्त लार्ड बैटन ने आदेश जारी किया कि कुमाऊं और गढ़वाल की उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों के साथ पहाड़ी की चोटी अंग्रेजों को मुफ्त में दी जा सकती है. यह उन्हें वहां रहने और चाय की बागवानी करने की सहूलियत देगा क्योंकि वहां कुछ चाय के पौधे प्राकृतिक रूप से उगते हैं. सन 1850 के दशक के दौरान बेरीनाग में एक चाय बागान स्थापित किया गया था. तब बेरीनाग चाय कंपनी के प्रबंधक ने चीनी ईंट चाय के निर्माण का रहस्य खोजा और उनकी चाय को चीनी किस्म से कहीं बेहतर माना गया.
बेरीनाग चाय पूरी तरह से ऑक्सीडाइज्ड नहीं होती है. यह चाय अपने अद्वितीय स्वाद, सुगंध और रंग के लिए मशहूर है जोकि असम के बागानों को कड़ी चुनौती देती है. इसका वुडी स्वाद अन्य चाय के समान नही होता है यही कारण है कि इस चाय को चाय का शैम्पेन भी माना जाता है.
ब्रिटिश दौर में उत्तराखंड के सभी उद्यानों में बेरीनाग और चौकोरी उद्यान के चाय की गुणवत्ता और स्वाद सर्वाधिक लोकप्रिय थी. चौकोरी और बेरीनाग उद्यानों को बाद में ठाकुर दान सिंह बिष्ट ने खरीद लिया था. उनकी चाय को भोटिया व्यापारियों ने ल्हासा के रास्ते पश्चिमी तिब्बत में निर्यात किया और तिब्बतियों ने महसूस किया कि तिब्बत में चीन से आयातित चाय से बेरीनाग की चाय कहीं बेहतर मानी थी.
उस दौर में बेरीनाग की चाय के जायके की प्रसिद्धी दूर-दूर तक फैलने लगी. अपने देश भारत में बेरीनाग की चाय लोकप्रिय हो गई थी इसके अतिरिक्त ब्रिटेन व चीन में भी बेरीनाग की चाय का डंका बजने लग गया था.
बेरीनाग चाय कैमेलिया के एक जंगली पौधे की पत्तियों से बनाया गया था जो हिमालय के कई इलाकों में पाया जाता है. अब यह केवल बेरिनाग और चौकोडी में उगाया जाता है जो ब्रिटिशर्स द्वारा स्थापित अपने चाय बागानों के लिए प्रसिद्ध है. अस्सी के दशक के अंत तक कई पश्चिमी देशों में अपने अद्वितीय स्वाद और रंग के कारण बेरीनाग चाय की बहुत मांग थी.
दोस्तो भारत दुनिया के बड़े चाय उत्पादकों में से एक है हालांकि इसकी 70 प्रतिशत से अधिक चाय की खपत भारत में ही हो जाती है. आज चाय उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी चीन के बाद शीर्ष पर है तत्पश्चात श्रीलंका, केन्या व टर्की आते हैं. ग्रीन टी व ब्लैक टी दोनो ही कैमेलिया साइनेंसिस नाम के पौधे से मिलते हैं फर्क इनके प्रोसेसिंग और पत्तियों के संग्रह का होता है. ग्रीन टी के लिए कोमल नए पत्तियों को संग्रह करके बनाया जाता है जबकि ब्लैक टी के वास्ते पत्तियां पौधे के किसी भाग से चुनकर लिया जाता है. साथ ही ग्रीन टी उत्पादन के दौरान किसी भी तरह से इसे आक्सीकृत नहीं किया जाता है. पत्तियों को केवल चाय के पौधे से तोड़ा जाता है और मुरझाने और आक्सीकरण को रोकने के लिए गर्म किया जाता है.
(Bering Tea)
मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले डा. नागेश कुमार शाह वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं. डा. नागेश कुमार शाह आई.सी.ए.आर में प्रधान वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुये हैं. अब तक बीस से अधिक कहानियां लिख चुके डा. नागेश कुमार शाह के एक सौ पचास से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र व लेख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं.
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बेहद शानदार और रोचक से भरपूर लेख।