‘इसे क्या हुआ है इतना गुमसुम क्यों है’ चौकी इंचार्ज साहब ने दस मिनट बाद ही पूछ लिया. (Bayan Iqbaliya)
‘सर जबसे चीला बैराज से लौटा है… दो घण्टे से ऐसे ही बैठा है.’
इंचार्ज को समझ आ गया वही मामला है. किसी पत्रकार का भी फोन आया था उसी समय. मज़ाक कर रहा था. अब तो आप भी एक मजनूं पिंजरा भी बनवा लो, मरीन ड्राइव भी बन गई है चन्द्रभागा के किनारे आशिक़ी के लिए. बाकी चीला बराज और जंगल हैं ही. बड़े काबिल दरोगा भी मिल गए हैं. शिकार खुदे चला आएगा.
‘हुंह काबिल दरोगा…’ इंचार्ज मन ही मन मुस्कराया ‘बाबू साहब लोगों को समझाना पड़ेगा.’
‘आये दिल पर मत ले होता है… इस महकमे में कुछ भी होता है. हमारा तो काम ही यही है दूसरों के फ़टे में टांग अड़ाना. वैसे हुआ क्या ज़्यादा पीट दिया क्या?’
‘सर मैं तो गुड फेथ में कर रहा था चेकिंग बैरियर पर… एक बाइक पर लड़का और लड़की बहुत तेज़ी से बैराज पर गए. मैंने …सर पीछा किया उनका क्योंकि मामला संदिग्ध लग रहा था. कोशियाना बैंड के पहले मिल गए वो… मैने सर… संदीप और मैं थे सर… हमने बहुत…’
‘सर वो भागे न होते तो…’ संदीप उस घटना से तत्काल बाहर निकल चुका था, जैसा कि निकला जाता है.
‘नहीं सर वो भागे नहीं थे उन्हें सिटी हॉस्पिटल हरिद्वार पहुंचना था.’
‘तो प्रॉब्लम क्या है… तुम लोगों ने ज़रा हड़का दिया होगा’
‘सर हमने बहुत अपमानित कर दिया…’
‘क्या करें सर भागना नहीं चाहिए था उनको… मीडिया के लोग भी थे एक्सीडेंट की वजह से हमारी चेकिंग कवर कर रहे थे’ संदीप पुराना चावल था. उसे मालूम था कब, कहाँ, कितना महकना है
‘हमने उन्हें सर…’
‘देख भई ये सब लगा रहता है, तू कब तक… अब तो कुछ भी नहीं करते हम. पुराने लोगों से पूछो… थूक कर चटवा देते थे, बीच चौराहे पर उठक बैठक लगवा दी… ऐसे कपल को जबरदस्ती फेरे लगवा दिए… अब कर तू शादी… ऐसा.’
‘सर हमने भी कुछ ऐसा… बहुत अपमानित कर दिया उन्हें.’
‘ओए कोई नहीं यार… मस्त रह… मज़े कर हो जाता है कभी-कभी.’
‘लेकिन सर वो भाई बहन थे… सगे!’
…छत से लटका हुआ बल्ब धप्प से बुझ गया!!
जौनपुर में जन्मे अमित श्रीवास्तव उत्तराखण्ड कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता), पहला दख़ल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास).
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