कथा

चालक बनढ़ाडु की कहानी- कुमाऊनी लोककथा

एकबार एक चालाक बनढ़ाडु दूध के बर्तन में मुंडी डालकर दूध पी रहा था. अचानक घर के मालिक के आने की आवाज़ सुनकर बनढ़ाडु ने हड़बड़ी में मुंडी बाहर निकालनी चाही पर वह तो बर्तन के अंदर ही फस गयी थी. बनढ़ाडु ने खूब जोर आजमाइश की पर मुंडी निकल न सकी अलबत्ता बर्तन जरुर टूट गया. इससे पहले की घर का मालिक उसके पीछे पड़ता बनढ़ाडु नौ दो ग्यारह हो चुका था.
(Bandhadu Kumaoni Folklore)

बनढ़ाडु अभी कुछ दूर ही निकला था तो उसने देखा उसकी गर्दन पर बर्तन का ऊपरी हिस्सा फसा रह गया. बनढ़ाडु के लिए अब शिकार करना आसान न था. एक पेड़ के नीचे गहन मुद्रा बनाकर बनढ़ाडु बैठ गया. तभी एक तीतर आया और बनढ़ाडु को इस हालत में देखकर पूछने लगा- क्यों भाई यह क्या हालत है?

बनढ़ाडु ने अपनी गंभीर मुद्रा न तोड़ी. आँखों में बिना कोई भाव लाये बोला- सोच रहा हूँ गया और काशी हो आऊं. कोई साथी मिल जाता तो जल्द ही निकल जाता. बनढ़ाडु की आँखों में समुद्र सी गहराई थी. उसने कहना जारी रखा- क्या तुम साथी बनोगे मेरे?

तीतर बेचारा सकपका गया तुंरत बोला- नहीं, नहीं. तुम तो मुझे रस्ते में ही खा जाओगे. बनढ़ाडु के व्यवहार में अब ज्ञानी साधु जैसी निश्छलता थी. उसने गहरे और गंभीर शब्दों में कहा- क्या तुम्हें मेरे गले में धारण किया हुआ रुद्राक्ष नहीं दीख रहा. क्या कोई रुद्राक्ष धारण कर भी ऐसा घोर पाप कर सकता है.

तीतर ने देखा बनढ़ाडु के गले में कुछ तो गोल-गोल है. बेचा तीतर बनढ़ाडु के झांसे में आ गया और उसके साथ हो चला. तीतर तो तीतर एक बनढ़ाडु के साथ हुआ तो उसके पीछे और भी तीतर हो लिये. अँधेरा होने को आया था आगे-आगे बनढ़ाडु पीछे-पीछे तीतर और तीतर.
(Bandhadu Kumaoni Folklore)

जंगल के बीचोबीच एक गुफा के आगे रूककर बनढ़ाडु बोला- अँधेरा बहुत हो चुका है. आज यहीं आराम करेंगे. तुम सभी भीतर जाकर आराम करो मैं तुम्हारी रक्षा के लिये बाहर पहरेदारी करूंगा. मेरे साथ के लिये बारी-बारी से एक तीतर आते रहना. तीतरों ने बनढ़ाडु की बात मान ली. पहला तीतर बनढ़ाडु के साथ पहरेदारी के लिए आया.

बनढ़ाडु ने मौका देख उस तीतर को साफ़ कर दिया. पहले तीतर को मारते हुये दूसरे तीतर ने देख लिया. इससे पहले बनढ़ाडु बाकी तीतरों पर हाथ साफ़ करता सारे तीतर उड़ गये. गुफा में बचे दो कुछ चूहे. इससे पहले की बनढ़ाडु चूहों पर हाथ साफ करता चूहे ईधर-उधर हो लिये. इतनी रात गये गुफ़ा में सटर-पटर सुन एक बाघ गुफ़ा में आ गया. रात गये बनढ़ाडु से स्वाद और क्या मिलता उसे बनाया उसने उसी का निवाला.
(Bandhadu Kumaoni Folklore)

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