कला साहित्य

बकरे का सौदा जो सोने के दिखावे में बदल गया : लोककथा

आहा, तो बड़ी पुरानी बात होगी. एक कस्बे में खूब बड़ा सेठ रहा करता था. एक दिन उसकी सेठानी को बकरे का ताज़ा मांस खाने की इच्छा हुई. सेठ की नई-नई शादी हुई थी वह अपनी पत्नी को आज भी आकर्षित करना चाहता था सो उसने पड़ोस के एक गांव में जाने का निश्चय किया ताकि बढ़िया बकरा ला सके.
(Bakre ka Sauda Folklore Uttarakhand)

गांव में एक बकरे वाला रहता था जो किसी को घास न डालता. सेठ जब बकरा बेचने वाले की दुकान में आया तो उसने सोचा की बकरे वाला उसे ख़ास तव्वजो देगा पर बकरे वाला तो बकरे वाला. उसने उसे पानी भी न पूछा. पानी तो क्या बकरे वाले ने उसे बैठने तक को न कहा. सेठ बकरे वाले के इस व्यवहार से तुनक गया.

सेठ ने बकरे वाले से कहा- सुन तो रे बकरे वाले, जरा एक गठीला बकरा दिखा. बकरे वाले ने उसे तिरछी नज़रों से देखा और गर्दन घुमाता हुआ बोला- दिखा तो दूंगा पर पहले कह देता हूँ बकरा उधार न दूंगा. सेठ की तो जैसे किसी ने मूंछ आधी कर दी हो. गुस्से से उसने कहा- अरे दिखा तो सही.
(Bakre ka Sauda Folklore Uttarakhand)

बकरे वाला सेठ को उस जगह ले गया जहां बकरे रखे थे. सेठ ने देखा- वाह एक से एक बकरे, बढ़िया गठीले बकरे. अब वह बकरे वाले को अपनी हैसियत भी दिखाना चाहता था. सेठ ने एक गठीले बकरे की ओर ईशारा किया और अपने हाथ की अँगुली में पहनी सोने की अंगूठी को घुमाते हुये बकरे वाले से कहा- हां भई बकरे वाले, बता कितने जो पैसे हुये इस बकरे के?

बकरे वाला समझा गया कि सेठ अपना सोना दिखाकर उस पर धौंस जमाना चाहता है. उसने भी अपनी पूरी बत्तीसी खोलते हुये पूरे पच्चीस रूपये कुछ इस तरह बोला कि उसका सोने का दांत दिख जाये. इन दोनों को एक आदमी बड़ी दूर से देख रहा था. सोने के दिखावे का यह माजरा समझने में उसे मिनट न लगा सो वह भी इसमें शामिल हो गया और उनके पास चला गया.

कानों में पहने अपने सोने के कुंडलों को गर्दन हिलाते हुये कहने लगा- अरे नहीं नहीं पच्चीस रूपये तो बहुत ज्यादा है. दोनों ने उसके कानों का सोना देखा और बकरे का सौदा सोने के दिखावे में बदल गया.
(Bakre ka Sauda Folklore Uttarakhand)

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