कॉलम

शऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है – 5

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता)

(पिछली क़िस्त से आगे)
 

भागीरथी में त्रि-शूल

नदी नालों की भौगोलिक उत्पत्ति को चुनौती देते हुए एक राजा भागीरथ हुए. उन्होंने भगवान शिव की सहायता लेते हुए गंगा को धरती पर उतारने का काम किया. भागीरथ ने अपने तप के बल से गंगा को स्वर्ग से नीचे बुलाया और शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में बांधा और आहिस्ते से धरती पर रख दिया. बड़ा काम था. एटीआई के भागीरथी में भी ऐसे तप वाले और आहिस्ते वाले बड़े काम होते थे. मेरा जन्म बड़े कामों के लिए नहीं हुआ है इसलिए भागीरथी में मेरी आवाजाही कम ही रही. वहाँ जाने की कार्यवाही रिक्शा स्टैंड पर ठेले वाली चाय का लोभ संवरण और `पुलिस- अधिकारी- को- फिजीकली- फिट- होना- चाहिए’ के बीच के रोज के ट्रेड ऑफ से निर्धारित होती थी. ठेले की चाय लजीज थी, अमित का साथ बेहतरीन था इसलिए अक्सर पारा उधर को ही लुढ़कता था. इसीलिये लगभग बिला नागा 5.30 से 6 के बीच हम दोनों खुद को माल रोड की तरफ लुढ़कता पाते थे.

किसी नागा वाले दिन जब चाय की चुस्की पर शरीर की चुस्ती हावी हुई मैं भागीरथी के अंदर खोपचे में बने जिम के निरीक्षण को जा पहुंचा. वहाँ पहली बार किसी लड़की को साक्षात सर के पीछे हाथ लगाए बाकायदा सिटअप करते देखा. ये दृश्य आँखों को छू कर सन्न से निकल गया जैसे नीरज बेलवाल की शटल कानो को छू कर सन्न से निकल जाती थी. मेरे मन में हमेशा ये मलाल रहेगा कि कभी नीरज के साथ बैडमिंटन का मैंच नहीं खेल पाया. उसे हराने का सुख नहीं भोगा. कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं जिनके सर पैर के बारे में आप कुछ नहीं कह सकते. खैर!

इसके पहले स्त्री जाति को व्यायाम के नाम पर बस टहलकदमी करते ही देखा था. यह श्वेता चौबे थीं. कमरे में इससे ज्यादा उल्लेखनीय बात एक और थी. वहाँ दो शख्श और थे. एक वो जिन्होंने कालान्तर में श्वेता-पति के रूप में ख्याति अर्जित कर अपने भाग्य को सराहा और दूसरों से डाह मोल लिया और जो `जब प्यार करे मणिया तो देखे केवल तन’ इतनी मासूमियत से गाते थे कि कतई अश्लील नहीं लगता था. वो साइकिलनुमा किसी चीज को चला रहे थे, जो वास्तव में चल नहीं रही थी, अपने स्थान पर स्थिर थी. जो चीज चल रही थी उसका नेट रिजल्ट काफी बाद में निकला. तो जो लोग ऐसा मानते हैं कि मणि और श्वेता के विवाह बंधन का धागा बाद के पंजाब प्रवास में निकला वो अपना सामान्य ज्ञान थोड़ा सुधार लें.

दूसरे शख्स को साइकिल चलाने की ज़रूरत नहीं पड़ी, वैसे इसे साइकिल की ही खुशकिस्मती समझा जाए क्योंकि पंकज भट्ट अगर साइकिल पर बैठते तो साइकिल उठती नहीं उठ जाती. इन्होने साइकिल नहीं चलाई दोस्तों को चला दिया. पंजाब, ग्रे हाउंड्स, एनपीए या उसके बाद तक पीटी के पहले परेड के बाद, क्लास के दौरान, घोड़े के ऊपर, चिनअप के नीचे, पटेलजी की मूर्ती के आगे, बास्केट बाल नेट के पीछे, मजार के बाहर, फव्वारे के अंदर, जाने कहाँ कहाँ, कब कब, कैसे कैसे, रुक रुक कर, चल चल कर इन्होने किसी से मोबाइल पर बात की और सब ये समझते रहे कि किसी दिल्ली की डाक्टर (दिल्ली मतलब दिल्ली शहर `दिल की डाक्टर’ से इसका मिलान न कराएं) से बात हो रही है. हमारा सामान्य ज्ञान लेकिन उसी दिन सुधर गया था जब चौखम्बा में पहली और आख़िरी बार हेमा बिष्ट को प्लेट में वही सब्जी, जो पंकज की प्लेट में थी, डालकर पंकज के बगल में बैठते और पंकज को `ज्यादा-टेंशन-मत-लो-मैं-सब-देख-लूंगा‘ की कवायद में वहाँ से उठते देखा था.

इसी तरह के सुधार की जरूरत कहीं और भी है. चौखम्बा के बाहर का लाउंज है. तीसरे और चौथे आधारभूत कार्यक्रम के बहुत से प्रशिक्षार्थी बैठे हैं. गाने भुनभुनाने- गुनगुनाने जैसी कोई चीज चल निकली है और लोगों के लेटेंट टैलेंट को निकालने का परोपकारी कार्य हो रहा है. किसी ने कहा तृप्ति बहुत अच्छा गाती है. लोगों की निगाहें तृप्ति की तरफ उठती हैं. `सुनाओ…सुनाओ…यार कोई गाना…अरे वो गजल सुनाओ…’ तृप्ति ना नुकुर की परिपाटी को बखूबी निभाती हैं, `नहीं नहीं हम नहीं गाते…’. लगभग मना हो जाता है लोग दूसरे टैलेंट हंट पर निकल पड़ते कि इतने में एक आवाज तैरती हुई आती है `सुना दीजिए न…’ और तृप्ति `होशवालों को खबर क्या’ शुरू कर देती हैं. ये फरमाइश भेजने वाले थे अमिताभ. तो जो लोग इस जोड़ी को भी बाद में डेवेलप हुआ मानते हैं अपना सामान्य ज्ञान सुधार लें.

तो हम भागीरथी में थे. ( एक और जोड़ी के पनपने की शुरुआती ऊष्मा की आधिकारिक जानकारी मुझे है लेकिन उसके लिए किसी शायराना इत्तिफाक का इन्तजार है.) एक बेहद छितराई हुई सी याद और है भागीरथी की. बैडमिंटन कोर्ट खाली न होने की दशा में, और ऐसी दशा लगभग रोज रहती थी, मैं पूल टेबल की अंध कोठरी की दिशा में बढ़ गया. पूल टेबल आपमें संभ्रांत बन जाने की भावना पैदा कर देता है. जिसने भी गीत सेठी को स्नूकर या बिलियर्ड्स खेलते देखा है (बिलियर्ड्स और स्नूकर अलग-अलग खेल हैं इसकी जानकारी बहुत बाद में हो पाई), वो जानते हैं कि गीत बास्केट पहनकर खेलते हैं जिसका कहीं कोट भी होता होगा. ये सूटेड बूटेड गेम है. तो हम जैसे लोग पूल टेबल पर खेलने के लिए नहीं संभ्रांत होने की फीलिंग लेने आते थे.

आज ये फीलिंग आश्चर्य किंवा हास्य रस में थी. दृश्य कुछ ऐसा था कि चार पांच प्रशिक्षु एक दूर के कोने की गेंद हिट करने का प्रशिक्षण ले रहे थे और मुह बाए आँख छितराए बिष्टजी को देख रहे थे जो टेबल के ईशान कोण पर थे. बस थे ही नहीं भरपूर थे. एक टांग जमीन पर तो दूसरी टेबल को बीच से चीरती हुई दूसरी तरफ़, कमर के ऊपर का पूरा भाग टेबल पर, गर्दन उठी हुई, दोनों हाथ आगे स्टिक के साथ और नजरें सामने टारगेट पर. मुझे नहीं मालूम कि पुराणों में शिवजी के त्रिशूल को क्या नाम दिया गया था लेकिन डिजाइन की प्रेरणा शायद यहीं से ली गयी थी.

एक बारगी तो मुझे लगा कि शायद इस खेल में किसी समय अगली पार्टी को दंडवत प्रणाम करने का कोई क्षण आता हो, वो तो बाद में पता चला कि बाल हिट करने का ये एटीआई फिट तरीका था, जिसकी नक़ल कर अमित ने फिल्लौर में भूटानियों को हराया था और मैंने वो दृश्य याद कर पीटी की कवायद याद कर ली थी…`देख के इधर पीटी पोजीशन… काम…दोनों हाथ कमर पर… दोनों पैर खुले हुए फासला एक फीट…सीना फूला हुआ…नजरे 100 गज सामने…1-2-1…!

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Girish Lohani

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