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ऐड़ी देवता : ऊंचे शिखरों पर शिकार खेलने वाला देवता

उत्तराखंड के लोक देवताओं में एक प्रचलित नाम ऐड़ी या ऐड़ा देवता का है. कुमाऊं में अनेक चोटियों के शिखर पर ऐड़ी देवता के मंदिर देखने को मिलते हैं. ऐड़ी देवता के रुप रंग व्यवहार आदि के संबंध में अनेक कहानियां कुमाऊं अंचल में लोकप्रिय हैं.

कहा जाता है कि ऐड़ी देवता रात के समय घने जगलों के शिखरों पर घूमता है. शिकार के शौक़ीन ऐड़ी देवता कुत्तों के साथ घुमते हैं जिनके गले में घंटी बजी होती है. ऐड़ी देवता के चार हाथ होते हैं जिनमें वह धनुष बाण, तलवार, त्रिशूल, लोहे के डंडे इत्यादि पकड़े रहते हैं. आंचरी और चांचरी नाम की दो चुड़ेलें ऐड़ी देवता की अंग रक्षक होती हैं. ऐड़ी देवता की पालकी उनके दो सेवक साऊ और भाऊ उठाते हैं. ऐड़ी देवता भूत और परियों के साथ घुमते हैं.

ऐड़ी देवता के विषय में माना जाता है कि जो भी उसके कुत्तों का भौंकना सुन लेता है अवश्य कष्ट पाता है. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वैबसाइट में ऐड़ी देवता के विषय में लिखा है कि

यदि किसी पर ऐड़ी की नज़र पड़ गई, तो वह मर जाता है. उन लोगों के साथ ऐसा कम होता है जो अस्र-शस्रों से सुसज्जित रहते हैं. ऐड़ी का थूक जिस पर पड़ गया, तो विष बन जाता है. इसकी दवा ‘झाड़-फूँक’ है. ऐड़ी को सामने-सामने देखने से मनुष्य तुरंत मर जाता है, या उसकी आँखों की ज्योति चली जाती है, या उसे कुत्ते फाड़ डालते हैं, या परियाँ (आँचरी, कींचरी) उसके कलेजे को साफ कर देती है. अगर ऐड़ी को देखकर कोई बच जावे, तो वह धनी हो जाता है.

कुमाऊंनी में कहावत लोकप्रिय है ‘डालामुणि से जाणो, जाला मुणि नी सेणो’ जिसका हिंदी अनुवाद है पेड़ के नीचे सो जाना लेकिन कभी आले के नीचे न सोना. आले का अर्थ घरों में धुंआ निकलने वाली चिमनी से है. कहा जाता है कि जब ऐड़ी देवता ऊंचे शिखरों पर शिकार खेलते हैं तो कभी कभी उनका तीर मकान के आले में घुस जाता है जिसे वह लगता है उसकी कमर टूट जाती है, शरीर सूख जाता है और हाथ पैर कांपने लगते हैं.

ऐड़ी देवता की जागरों में कहा जाता है कि ऐड़ी देवता का वास्तविक नाम त्युणा था. अल्हड़ किस्म का यह शिकारी अपने भाई ब्यूणा के साथ हर दिन पहाड़ों के शिखरों पर शिकार खेलने जाता था.

एक दिन जब दोनों भाई शिकार को निकल रहे थे तो उनकी मां ने उन्हें रोका और कहा कि उसने एक भयानक सपना देखा है और उसे किसी अनिष्ट की आशंका है इसलिए तुम शिकार पर मत जाओ. ब्यूणा ने तो मां की बात मान ली लेकिन त्यूणा जिद्दी होने के कारण अपने कुत्तों कठुवा और झपुआ को साथ लेकर शिकार पर चल दिया.

पिपलीकोट,कातियाचांठा और कटारीबघान के जंगलों में त्यूणा घुमा पर उसे शिकार न मिला अंत में थक कर कटारीघान के एक शिखर पर पेड़ के नीचे लेट गया. उसने अपने दोनों पैरों में अपने कुत्तों को रस्सी से बांध दिया. थकान के कारण त्यूणा की आंख लग गयी.

कुछ देर में वहां एक काकड़ आ गया. काकड़ को देख उसे घेरने की मंशा से दोनों कुत्ते अलग-अलग दिशाओं की ओर भागे जिसके कारण त्यूणा के दोनों पैर टूट गये और उसकी मृत्यु हो गयी. इसीकारण ऐड़ी देवता डोली में बैठकर शिकार करते हैं.

चम्पावत के ब्यानधुर स्थित ऐड़ी देवता के मंदिर में आज भी अनेक लोहे के बाण और त्रिशूल चढ़ाये जाते हैं. यहां ऐड़ी देवता को अर्जुन का अवतार और उसके बड़े भाई को युधिष्ठिर का अवतार माना जाता है.

ऐड़ी देवता के मंदिर ऊपर से खुले हुये होते हैं इनके ऊपर किसी प्रकार की छत नहीं होती है. ऐड़ी देवता के मंदिरों में निःसंतान, संतान की कामना लिये आते हैं, उनसे न्याय की कामना या पशुओं की रक्षा की कामना भी की जाती है. कामना पूरी होने पर लोग ऐड़ी देवता के मंदिर में लोहे धनुष, दंड या त्रिशूल चढ़ाते हैं.

– काफल ट्री डेस्क

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Girish Lohani

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  • Ye jaankari bilkul glt h ki ऐड़ी का नाम त्युना या त्युंदर है।ye dno alg2 devta h त्युना ब्यूना दो वीर हैं जबकी ऐड़ी राजा बाईस भाई थे।अत: यह लेख एवं इसके जैसे जो भी लेख है लोगों तक गलत जानकारी पहुचां रहे हैं ।

  • ऐड़़ी राजा धनुर्विद्या में महारत प्राप्त थे, उनका धनुश सौ मन और बाण अस्सी मन के होते थे। धनुष की कमान छह मुट्ठी और डोर नौ मुट्ठी की होती थी, उनके धनुष छूटे बाण बाईस प्रकार की व्याधियों का निवारण करने में सक्षम थे। इन बाणों के नाम थे, लूला बाण, लंगड़ा बाण, खाना बाण, चिड़कना बाण, हौलपट वाण, धूलपट नाण, तात (गरम) बाण स्यला(शीतल) बाण, आदि। ऐड़ी राजाओं की राजधानी चौदह लाख डोटी भी और उनके राजमहल में प्रतिदिन बाइस बीसी डोटियालों की बारह कचहरियां लगती थी। ये राजा, जानकार को दस पैसे का और अनजान को पांच पैसे का दण्ड देते थे, दंड से अछूता कोई न था।
    केसिया डोटियाल ऐड़ी राजकुल का पुरोहित था, जो अपने यजमान राजाओं की ख्याति और ठाट-बाट से ईर्ष्या करने लगा था, ये ऐड़ी राजा कमजोर गरीब को भूखा नहीं छोड़ते थे व अमीर मजबूत को अकड़ में नहीं रहने देते थे । केसिया बामण मन-ही-मन सोचता था कि कैसे ही ऐड़ी राजा से मुक्ति मिल जाती तो मैं अपना राज चलाता, कचहरी छूटते ही केसिया बामण घर तो चला गया लेकिन उसे रात की नींद और दिन की भूख हराम हो गयी, सोचने लगा की अब कल बड़े दिन (उत्तरायणी) का त्यौहार आ रहा है, उस दिन में सब भाई इकट्ठे होंगे और इसी अच्छे मौके पर उन्हें कोई मद सुंघा दिया जाता या जहर दे दिया जाता तो ठीक रहता, केसिया बामणन का दिल कपट रुपी विष से भर गया, वह ठीक-ठाक वस्त्र पहनकर राजमहल पहुंच गया।
    राजमहल में बाईस बौराणियां छत्तीस हांडियों में छत्तीस प्रकार का ज्योनार (व्यंजन) बनाने में जुटी थी। जब केसिया डोटियाल राजमहल पहुंचा तो उस समय बाईस भाई ऐड़ी कचहरी में बैठे थे। केसिया बामण ने बाईस भाई राजाओं की कुशल पूछी, उन्हें दरी में बैठाया गया और उपले की आग की तंबाकू दी गयी। ऐड़ी राजाओं ने बाईस बौराणियों को जो नौखोली महल में थी आवाज लगाई कि तुम बाह्रर हो या भीतर! उन्होने बौराणियों को बताया कि आज हमारे गुरु महराज आए हैं अत: आज का त्योहर बड़ा सफल होगा, इनको सात प्रकार के गर्म तथा सात प्रकार के शीतल पानी से स्नान कराओ। केसिया डोटियाल ने "हर-हर महादेव" मन्त्रोचारण के साथ स्नान किया और तैयार हो गये। एक साफ सुधरी चौकी में बैठकर संध्या पूजा करने लगे, बाईस बौराणियों ने उनसे कहा, आप "चुल्हे चौकियों में पहुंचिये, ऊपरी मंजिल में पूर्व की ओर झराखे के पास बत्तीस प्रकार के व्यंजन बनाकर रखे हैं"। केसिया बामण भोजन ग्रहण करने के उपरांत नीचे के मंजिल में बनी कंचन नौली (बावड़ी) में पहुंच गया और ईर्ष्यालु बामण ने कंचन नौली में जहर मिला दिया।
    बाइस ऐड़ी भोजन करने के बाद कंचन नौली का पानी पीकर सोने के लिए बाईस दरवाजों वाले महल के आने-अपने कमरों में चले गये सोने के लिए लेटत्स ही सभी भाईयों के सिर चकराने लगे, उल्टियां होने लगी, सभी के कमरे भीतर से बंद थे, एक एक दिन बीतता गया, राजमहल में नगाड़े की गर्जना होनी बंद को गयी और कचहरी भी नहीं चली। प्रजा में हाहाकार मच गया, पर प्रजा में किसी को हिम्मत नही हुई कि क्या करें, राजाओं के महल के दरवाजे तोड़कर भीतर जाकर ऐड़ी राजाओं का हाल जानने की हिम्मत किसी को न पड़ी। एक-दो दिन में ही राजाओं के शरीर में चीटिंयां लग गई, और तीसरे दिन से मक्खियां भिनभिनाने लगी। इस प्रकार सात दिन बीत गये और ऐड़ी भाईयों के शरीर सर्वथा निर्जीव हो गये।
    एक दिन स्वप्न में बड़े व छोटे ऐड़ी राजा अपने दासों - धर्मदास, बिन्नीदास राईदास, बेनीदास, खेकलीदास, मेकलीदास, कालिदास, बीरदास आदि बाईस दासों में से सबसे बड़े दास, धर्मदास को अपनी दशा तथा सभी की मृत्यु की जानकारी देते हैं और बताते हैं कि उन्हें कुछ भी पता नही है कि यह सब किस और कैसे किया। धर्मदास आदर के पात्र तथा प्रजापालक ऐड़ी राजाओं की दुर्दशा की बात स्वप्न में जानकर अन्य दासों से विचार-विमर्श कर ऐड़ी राजाओं का हालचाल जानने और यथाशक्ति जो भी हो सके, करने के विचार से महल में गए, भीतर से बंद मजबूत अर्गलाओं को तुड़वाकर ऐड़ी भाईयों की दशा देखकर दु:खी हो गये। धर्मदास को यह जानने में देर नहीं लगी कि राआओं की ऐसी दशा विष देने से हुई, उन्होंने अपनी शक्ति और ज्ञान के अनुसार राजाओं की निरंतर झाड़-फूंक की, सात-आठ तक अनवरत झाड़-फूंक के बाद ऐड़ी राजाओं की चेतना लौटती सी लगी। लेकिन अब भी धर्मदास को लगा कि विष का पूरा प्रभाव समाप्त करने के लिए संजीवनी बूटी अथवा अन्य कोई औषाधि आवश्यक है। जिनके जानकार सेली सौकान, वाली-भूटान, काहरदेश, लाहुरदेश, बंगाल, गैली गैराड़ में रहते हैं, ऐड़ी राजाओं के साथ रहने वाला उनके कुल पुरोहित का अनाथ बेटा सिद्ध धर्मदास के बताए के अनुसार रंगीली बैराठ से औषधि के जानकार को ले आया, अंतत: धर्मदास के प्रयास से ऐड़ी राजा जीवित हो गये।लम्बे समय तक अचेत अवस्था में रहे बाईस भाई जीवित हो गये परंतु उनका मन टूट गया कि अपने ही लोग षडयंत्र कर रहे हैं।ऐड़ी राजा ने सन्यासी रूप में कांकरघाट काली नदी पार कर कुमाऊं में प्रवेश किया और ब्यानधुरा में तपस्या कर तपोबल से देवत्व प्राप्त किया।यह बात कथनों अनुसार मुग़ल काल के समकालीन की लगती है जब मुग़ल पुरे भारतवर्ष में फैले हुए थे मगर ऐड़ी देव की कृपा से देवभूमि में मुगलों का प्रवेश नहीं हो पाया मुग़लों के साथ युद्ध का वर्ण भी लोककथा में आता है।ऐड़ी का वास ब्यानधुरा (चंपावत) के उच्च शैल शिखर पर था। कलुआ कसाई और तुआ पठान की सहायता से पठानों को इस मंडप का भेद मिल गया और वे सोलह सौ सैनिकों को लेकर यहां आ गए। गुरु गोरखनाथ ने स्वप्न में ऐड़ी को घटना की सूचना दी। ऐड़ी ने जागकर गोरिलचौड़ से अपने वीर गोरिया को बुलाया। ऐड़ी एवं गोरिया ने अपने बावन वीरों के साथ पठानों को वहां से मार भगाया। माल के भराड़े के साथ युद्ध का वर्णन भी है फाग में।यूं तो ऐड़ी देव संपूर्ण उत्तराखंड के पूज्य होने चाहिए जिनकी छत्र छाया में उत्तराखंड मुगलों के आक्रमण से बच पाया मगर जमीनी हकीकत यह है कि मंदिर में कुछ भी विकास नहीं हुआ है।
    आज भी देव शक्ति के रूप में ब्यान्धुरा ऐड़ी साक्षात शक्ति है यहाँ पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो बाँझ जोड़े उम्र के अंतिम पड़ाव तक औलाद का ख्वाब देखते हैं उनकी मनोकामना यहां अवश्य पूरी होती है।

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