Categories: कॉलम

माय नेम इज़ एंथनी गोंसाल्वेज़

प्यारे लाल शर्मा (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल) भले ही यह कहें कि उन्होंने अपने गुरु एंथनी गोंसाल्वेस के प्रति कृतज्ञता स्वरूप एक सस्ते से गाने में अपने गुरू का नाम डलवाया लेकिन बात कुछ जंचती नहीं है.

दिल पर हाथ रखकर कहिये कि तुलसीदास के शिष्य ने ऐसी कोई श्रंद्धांजलि उन्हें दी होती तो क्या आपको मंज़ूर होता?

रवींद्रनाथ टैगोर को ‘माय नेम इस रवींद्रनाथ टैगोर’ कहकर एक बड़े से दुर्गापूजा पंडाल से बाहर आता देखना कैसा लगता? अज्ञेय के लिये ये बात शायद माक़ूल होती लेकिन तब वात्स्यायन की चटपटी पहचान में भी वह खटकती. जो लोग भी अमर अकबर एंथनी की कहानी और उसमें आए इस गाने से परिचित हैं जिसमें एंथनी गोंसाल्वेस का नाम लिया गया, क्या वो कह सकते हैं कि उन्हें इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के 37 साल बाद भी एक स्वप्नदर्शी कम्पोज़र-अरेंजर एंथनी गोंसाल्वेस के बारे वैसा कुछ मालूम हो सका जिसके वो हक़दार हैं?

वैसे तो एंथनी गोंसाल्वेस के शिष्य आर डी बर्मन भी थे लेकिन प्यारेलाल जैसा ओछा फ़ैसला उन्होंने नहीं लिया. पिछ्ले 9 वर्षों में मैं अपने मन को आश्वस्त नहीं कर सका हूं कि माय नेम इज़ एंथनी गोंसाल्वेज़ … गाने ने मशहूर गोवानी म्यूज़ीशियन, विलक्षण अरेंजर एंथनी गोंसाल्वेस को इस पॉपुलर प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिये संगीत प्रेमियों से परिचित कराया.

इसके उलट मेरा मानना है कि इस गाने को सुनते हुए ख़ुद एंथनी गोंसाल्वेस उस फ़िल्म म्यूज़िक की तरफ़ पीठ ही फेरते गये (इस गाने को उन्होंने 35 साल तक झेला होगा) जिससे उन्होंने अपना न सिर्फ़ करियर शुरू किया था बल्कि जिस अद्भुत संगीत संसार में उन्होंने मुंबई में भारतीय और पश्चिमी संगीत के अंतर्घुलन की भव्य प्रस्तुतियां कर दिखाई थीं.

मैं यह भी मानता हूं कि बजाय कोई जिज्ञासा जगाने के, यह गीत एक ‘वास्तविक’ आदमी को ‘फ़िक्शनल’ ही सिद्ध करता गया. कोई अगर एंथनी गोंसाल्वेस के ब्रेनचाइल्ड सिम्फ़नी ऑर्केस्ट्रा ऑफ़ इंडिया के उन ब्रोशर्स को देखे जिनमें उन्होंने क़रीब डेढ सौ भारतीय और विदेशी वाद्यों के साथ अपनी प्रस्तुतियां की थीं तो दांतों तले उंगलियां दबाएगा.

यहां एक और बात मेरे ज़ेहन में आती है, जितना मैं अमिताभ बच्चन को जानता हूं, कि अगर उन्हें यह मालूम होता कि जिस आदमी को उस गीत का खिलंदड़ हिस्सा बनाया जा रहा है, वो कितने सम्मान का हक़दार है, तो शायद वो प्यारेलाल की इस सायास और आनंद बख़्शी की इस लापरवाह स्कीम का हिस्सा न बनते. तो सवाल ये है कि कुछ ही साल पहले तक जीवित रहे इस भारतीय नागरिक और संगीत के चितेरे के साथ हम सब ने मिलकर यह मज़ाक़ क्यों किया?

सैयद मोहम्मद इरफ़ान पिछले दस से भी अधिक वर्षों से राज्यसभा टीवी के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम ‘गुफ्तगू’ के होस्ट हैं. देश में उनके पाए का दूसरा इंटरव्यूअर खोज सकना मुश्किल होगा. संस्कृति. संगीत और सिनेमा में विशेष दिलचस्पी रखने वाले इरफ़ान काफल ट्री से साथ उसकी शुरुआत से ही जुड़े हुए हैं. 

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

1 week ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

2 weeks ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

2 weeks ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

2 weeks ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

2 weeks ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

2 weeks ago