सैंणी के दबाव में किशनी शहर में किरायेदार बन गया

4 years ago

किशनी बचपन से होशियार चालाक बच्चा था, गांव वाले बचु  पदान को कहते भगवान किसी को औलाद दे तो किशनी…

बचपन में गौरेया हमारे जीवन में रची-बसी थी

4 years ago

देहरादून में घर के पीछे दीवार पर जो लकड़ी के घोसले मैंने टाँगे थे उनमें गौरेयों ने रहना स्वीकार कर…

जिन चट्टानों को देख कमजोर दिल सहम जाते हैं वहां पहाड़ की महिलायें घास काटती हैं

4 years ago

घटियाबगड़ में कुछ दुकानें दिखाई दी थीं. इनमें जरूरत भर का सामान भी मौजूद था. यहां गांवों में बनने वाली…

पहाड़ों में जाड़े के जतन

4 years ago

अब ठंड के मौसम में कितना ही जतन करो,ओढ़ो-ढको. बिना आंग तापे बदन सेके, थुरथुराट दूर कहाँ होती. लकड़ी क्वेले…

बड़ी पवित्र और गुणकारी है पहाड़ी हल्दी

4 years ago

बड़ी ही जरुरी, पवित्र और उपयोगी मानी गई हल्दी. बोल भी फूटे:कसो लै यो हलैदियो बोटि जामियो... काचो  हलदी  को…

घुघुती की हमारे लोकजीवन में गहरी छाप है

4 years ago

घुघूती का महत्व देश के अन्य भागों में कितना है कह नहीं सकता किन्तु गढ़वाल-कुमाऊँ में घुघुती की छाप सबके…

सिनला की यात्रा के दौरान घटियाबगड़ में भूस्खलन का भयानक मंजर

4 years ago

हम होंगे सिनला पार एक दिन – 4 दारचूला से एक बार फिर काली नदी के झूला पूल को पारकर…

बड़े होने पर बच्चों के भीतर का फरिश्ता मर जाता है

4 years ago

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 42  (Column by Gayatree arya 42) पिछली किस्त का लिंक: तुम्हारे बारे में…

बागेश्वर के बारातियों का ठगी के शिकार होने का किस्सा

4 years ago

हम होंगे सिनला पार एक दिन – 3 हमारे पास समय था तो नदी पार दारचूला जाने की योजना बनी.…

‘गहन है यह अंधकारा’ की समीक्षा : लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’

4 years ago

औपनिवेशिक मूल्यों की तलछट पर बिछा एक लाचार समाज भारत को आज़ादी तो 1947 में मिल चुकी थी; मगर आज…