देवेन मेवाड़ी

विश्व ओजोन दिवस पर एक दादा का अपनी पोती के नाम ख़त

प्रिय पल्लवी,

तुम्हारा पत्र पाकर मुझे बहुत खुशी हुई. यह जान कर और भी अधिक हर्ष हुआ कि तुम में नई चीजों को सीखने और नई बातों को जानने की ललक है. तुमने लिखा है कि तुम पत्र लिख कर अपने सवालों के जवाब मुझसे पूछा करोगी. यह तो बहुत ही अच्छी बात है मेरी प्यारी पोती! मैं भी तुम्हारे जिज्ञासा भरे पत्र पढ़ कर अपने बचपन के वे दिन याद कर लूंगा, जब मैं भी तुम्हारी तरह तमाम चीजों के बारे में जानना चाहता था.

चलो, अब तुम्हारी इस बार की जिज्ञासा का उत्तर देता हूं अन्यथा तुम कहोगी कि लो! दादा जी तो अपने बचपन के दिन याद करने लगे. लेकिन, एक बात तुम्हें जरूर बता दूं पल्लवी कि विज्ञान की बातों के बारे में मुझे भी तुम्हारी ही तरह बचपन से गहरी रूचि थी. शायद इसीलिए मैं वैज्ञानिक भी बना.

हां, तो तुमने अपने पत्र में लिखा है कि दादाजी, यह ओजोन का कवच क्या होता है? इसे पृथ्वी का सुरक्षा कवच क्यों कहते हैं? पल्लवी, मैं समझ गया, तुम्हें अचानक ‘ओजोन’ की याद क्यों आ गई! तुमने अखबार में पढ़ा होगा कि ओजोन की परत में छेद हो रहा है. वह कमजोर पड़ रही है. यह बड़ी चिंता का विषय है…क्यों मेरा अनुमान ठीक है ना? और, तुम्हें यह भी जरूर पता लग गया होगा कि सिंतबर माह करीब है और 16 सिंतबर का दिन ‘विश्व ओजोन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है!

ओजोन और ओजोन के सुरक्षा-कवच को समझने के लिए तुम्हें पहले वायुमंडल को समझना होगा. जानती हो, वायुमंडल क्या है? तुम मेरे सामने होतीं तो शरारत से मुंह बना कर कह देतीं- ‘क्या दादा जी, मैं इतना भी नहीं जानती क्या कि पृथ्वी के चारों ओर रजाई की तरह वायुमंडल की परत लिपटी है! उसी में तो हम सांस लेते हैं.’ अच्छा, तो यह बताओ पल्लवी कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं- उसमें कौन-कौन सी गैसें पाई जाती हैं?

अरे, मैं तो ऐसे पूछ रहा हूं जैसे तुम सामने ही बैठी हो? हां, तो चलो मैं ही बताता हूं. वायुमंडल में मुख्य रूप से दो गैसें होती हैं- नाइट्रोजन, और ऑक्सीजन. इनमें से नाइट्रोजन करीब 78 प्रतिशत और ऑक्सीजन लगभग 21 प्रतिशत होती है. पर यह तो 99 ही प्रतिशत ही हुआ. बाकी जो एक प्रतिशत है उसमें बहुत ही कम मात्रा में आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, नियॉन, हीलियम, क्रिप्टॉन, जेनॉन और ओजोन नामक गैसें पाई जाती हैं.

इतने बड़े और अनजाने नाम सुन कर घबराना मत. हमें तो अभी बस ओजोन की बात करनी है. तो, पल्लवी यह जो ओजोन है, यह हमारी पृथ्वी से ऊपर करीब 12 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई की परत में पाई जाती है. और, वायुमंडल की वह परत कहलाती है- समताप मंडल या अंग्रेजी में स्ट्रेटोस्फियर.

तुम पत्र पढ़ते-पढ़ते मन में पूछोगी, दादाजी आप तो 12 से 50 किलोमीटर ऊंची परत की बात कर रहे हैं. उससे नीचे और ऊपर क्या है? तो मेरा जवाब है- जिस वायुमंडल को तुम ‘रजाई’ कह रही थीं, उसकी पांच परतें हैं: पृथ्वी की सतह से 12 किलोमीटर ऊपर तक क्षोममंडल या ट्रोपोस्फियर, फिर समताप मंडल या स्ट्रेटोस्फियर जिसमंं ओजोन गैस पाई जाती है, 50 से 80 किलोमीटर तक मध्य मंडल या मीजोस्फियर, 80 से 300 किलोमीटर तक तापमंडल या थर्मोस्फियर और 300 से 700 किलोमीटर तक बहिर्मंडल या एक्जोस्फियर. वहां तक तो हवा बहुत ही हलकी यानी विरल हो जाती है. उसके बाद असीम अंतरिक्ष है.

अच्छा, अब एक बात और अच्छी तरह समझ लो. सूर्य से पृथ्वी की ओर जो प्रकाश आता है, उसमें बड़ी तेज पराबैंगनी यानी अल्ट्रा वायलेट किरणें भी होती हैं. वे अगर सीधी पृथ्वी पर पहुंच जाएं तो उनसे मनुष्यों, जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का जीवन खतरे में पड़ सकता है.

मुझे लग रहा है कि यह पढ़ कर तुम ‘फिक्क्’ करके हंस दोगी. क्योंकि, पिछली बार तब तुम यहां आई थी तो मैंने ही तुम्हें बताया था, सुबह-सुबह सूरज धूप सेंकनी चाहिए. इससे हमारे शरीर में विटामिन ‘डी’ बनता है और हड्डियां मजबूत होती हैं. अभी तुम यहां होतीं तो मुझे जरूर मुंह चिढ़ाती! लेकिन, मेरी प्यारी पोती, सुबह-सुबह वायुमंडल की मोटी परतों को पार करके हमारी धरती तक जो पराबैंगनी किरणें पहुंचती हैं वे हल्की होती हैं और शरीर को लाभ पहुंचाती हैं.

चक्कर में पड़ गई ना? वे ही पराबैंगनी किरणें लाभदायक और वे ही नुकसानदायक! तेज पराबैंगनी किरणों को तो ओजोन की परत समताप मंडल में ऊपर ही रोक लेती है. इसीलिए ओजोन की इस परत को सुरक्षा-कवच कहते हैं. वे प्रचंड पराबैंगनी किरणें अगर सीधी धरती पर आ जाएं तो जीव-जंतु तड़प कर मर जाएंगे और पेड़-पौधे सूख जाएंगे. उनसे धरती पर जीवन नष्ट हो जाएगा.

जानती हो, वैज्ञानिक कई साल से चेतावनी दे रहे हैं कि ओजोन की परत में छेद हो रहा है. वह परत कमजोर पड़ रही है. इसके कारण तेज पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पड़ेंगी. उनसे लोगों को चमड़ी का कैंसर हो सकता है. इसलिए, वे कह रहे हैं, इस परत को बचाओ. सुरक्षा-कवच को मजबूत करो. इस परत को कमजोर करने वाले रसायनों को रोको.

रसायन पढ़ कर तुम जरूर चौंक जाओगी. सोचोगी, आखिर ये कौन-से रसायन हैं? यह भी बता रहा हूं. इन रसायनों को कहते हैं- क्लोरोफ्लुओरोकार्बन. तुम सोचोगी- ‘बाप रे, इतना बड़ा नाम!’ चलो, इसका छोटा नाम याद कर लो- ‘सी एफ सी’. इनके अलावा खेतों में जो उर्वरक डालते हैं उनसे निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड. और, हवाई जहाजों से निकलने वाली गैसों का धुवां. पल्लवी, इन रसायनों के कण ऊपर उठ कर सीधे ओजोन की परत में पहुंचते हैं. वहां पराबैंगनी किरणें इन्हें तोड़ कर क्लोरीन के परमाणु बनाती हैं. और, क्लोरीन के परमाणु ‘ओजोन’ के दुश्मन हैं. वे ओजोन को तोड़ कर ऑक्सीजन में बदलते रहते हैं. क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 1,00,000 अणुओं को तोड़ सकता है! इस तरह ओजोन की परत कमजोर पड़ती जाती है. सबसे अधिक नुकसान सी एफ सी रसायनों से हो रहा है.

तुम सोच रही होगी, ये सी एफ सी रसायन आखिर हैं क्या और आते कहां से हैं? तो, समझ लो ये हम मनुष्यों की ही देन हैं. हमने अपनी सुख-सुविधाएं बढ़ाने के लिए इन्हें स्वयं बनाया है. हम इन रसायनों से अपने फ्रिज और एयरकंडीशनर चला रहे हैं. इलैक्ट्रॉनिक कल-पुर्जों की सफाई कर रहे हैं. हमारी ‘स्प्रे’ करने वाली चीजों में भी ये रसायन होते हैं जैसे हमारे खुशबूदार ‘डीओ’ में.

इन रसायनों का उपयोग हम जितना ही कम करेंगे, ओजोन का सुरक्षा-कवच उतना ही मजबूत रहेगा. तुम सोचोगी, ए.सी. और फ्रिज कैसे चलेंगे? उनके लिए वैज्ञानिक नए रसायनों की खोज कर रहे हैं.

पल्लवी, अब तो दुनिया के सभी देश ओजोन के सुरक्षा-कवच को बचाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि पृथ्वी पर जीवन संकट में न पड़े. अच्छा, ओजोन दिवस स्कूल में तुमने कैसे मनाया, इस बारे में मुझे अपने अगले पत्र में जरूर लिखना. और, प्रश्न तो तुम पूछोगी ही, है ना?

-तुम्हारे प्यारे दादा जी

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वरिष्ठ लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी के संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त आप काफल ट्री पर लगातार पढ़ते रहे हैं. पहाड़ पर बिताए अपने बचपन को उन्होंने अपनी चर्चित किताब ‘मेरी यादों का पहाड़’ में बेहतरीन शैली में पिरोया है. ‘मेरी यादों का पहाड़’ से आगे की कथा उन्होंने विशेष रूप से काफल ट्री के पाठकों के लिए लिखी है, जिसे आप कहो देबी, कथा कहो शीर्षक के अंतर्गत वैबसाइट में पढ़ सकते हैं. .

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Girish Lohani

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