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तुम्हारी मां के नसीब में कई अच्छे पुरुष भी थे

खांटी मर्दों को तो सभी लड़कियां झेलती हैं, पर तुम्हारी मां के नसीब में कई अच्छे पुरुष भी थे!

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – पांचवीं क़िस्त

पिछली क़िस्त का लिंक: बाजार ने हम सबको बिगड़ैल बच्चा बना दिया है

कल रात में पढ़ते समय अचानक से लाइट चली गई थी. बारिश के कारण माचिस की डिब्बी की सारी तीलियां सीली हुई थीं, सो मोमबत्ती जलाने का कोई प्रबंध नहीं हुआ. बीड़ी-सिगरेट कुछ फूंकती नहीं मैं, सो पास में लाइटर भी नहीं था. कुल मिलाकर रौशनी का कोई प्रबंध नहीं था. रौशनी कितनी जरूरी है जिंदगी में, ये बात फिल्म ‘ब्लैक’ देखकर पहली बार इतनी शिद्दत से महसूस हुई थी. तब पहली बार सोचा था कि अंधेरा होने पर आपकी सिक्स बाई सिक्स की आंखों की रौशनी भी किसी काम की नहीं रहती. शरीर का एक-एक अंग हमारी जिंदगी में कितनी बड़ी नेमत है मेरे बच्चे!… और खासतौर से आँखें. लेकिन दुनियादारी में उलझकर हमें प्रकृति की दी हुई इन अनमोल नेमतों, तोहफों का कोई अहसास ही नहीं बचता मेरी जान. ये हमारे खुश रहने की कोई वजह ही नहीं बन पाते कभी भी. जबकि सच यह है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी दौलत हमें स्वस्थ शरीर का सुख नहीं दे सकती. ये सुख सिर्फ और सिर्फ हमारा स्वस्थ शरीर ही हमें दे सकता है.

ओह… मैं भी क्या बोरिंग बातें लेकर बैठ गई, ‘अच्छा स्वास्थ्य’. ये थोड़ा अजीब है, पर ‘अच्छा स्वास्थ्य’ या ‘स्वस्थ शरीर’ की बातों को ज्यादातर लोग बोरिंग बातें ही कहते हैं. मैंने तुम्हें बताया था न मेरी जान कि मेरे सास-ससुर मन ही मन ‘लड़का’ चाहते हैं. कोई दबे मन, तो कोई खुली जबान से यह इच्छा जब-तब जता-बता ही देता है. ऐसे में मैं अक्सर खीजती हूं सोचती हूँ बेटू, कि कितना अच्छा होता यदि एक बच्चेदानी लड़कों के भीतर भी भगवान ने बनाई होती! (हालांकि विज्ञान ने ये भी प्रयोग किया है एक पुरुष) क्या ही बढ़िया होता न पुरुष ही पैदा करता, पुरुष ही पैदा होता! वे भी तो जानते कि क्या होता है बच्चा पैदा करना और उसे पालना! विज्ञान की मदद से हर पुरुष के पेट में एक बच्चादानी फिट कर दी जाए, इतनी औकात नहीं है किसी की! पर विज्ञान ऐसी सुविधा कर भी दे, तो भी कौन माई का लाल बाप का सुख लेने के लिए उस दर्द के समंदर में डूबना चाहेगा? कौन है जो पिता का सुख लेने के लिए साल भर के रतजगे चुनना चाहेगा? कौन सा पुरुष है जो बाप का सुख लेने के लिए दिन-रात का चैन खोना चाहेगा? वो भी तब, जब बैठे-बिठाए, बिन किसी शारीरिक, मानसिक कष्ट के, बिन जीवन में कोई भयंकर बदलाव लाए, बिन दिनचर्या बदले, बच्चे का सुख मिल सकता है. और बच्चे का ऐसा फोकट का सुख भी सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि जितनी बार पिता चाहे उतनी ही बार! (अपवाद हो सकते हैं) तो ऐसे में बच्चे के सुख के लिए दर्द का लंबा ‘यातना शिविर’ पुरुषों को भोगने की भला क्या जरूरत है?

मैं इस वक्त जेएनयू के अपने हॉस्टल के कमरे में मैं पहली बार गाने सुन रही हूं इत्मिनान से. आज ही इंतजाम हो पाया है इसका. तुम्हें पता है मेरी कट्टू, पिछले तीन घंटे से मैं एक ही गाना सुन रही थी. एक सूफी गाना है जिसे कैलाश खैर ने गाया है, ‘नेहरवा हमका ना भावे.’ ये गाना उन कुछ चुनिंदा गानों में से एक है, जिसे मैं घंटों लगातार सुन सकती हूं. यकीन मानो कुछ है इस गाने में जो कानों में जाते ही मुझे अपना दीवाना बना लेता है. गाना सुनते-सुनते फिर अचानक से तुमसे बातें करने का मन हुआ, तो मैंने गाना बंद कर दिया और तुम्हें खत लिखने लगी. संगीत मेरी कमजोरी है मेरी बच्ची. गाने सुनते हुए न मैं पढ़ सकती हूं, न लिख सकती हूं. वैसे आज के समय में अपनी रूह को जिन्दा रखने के लिए संगीत का दीवाना होना जरूरी भी है मेरी जान! मैं चाहूंगी की तुम भी मेरी तरह संगीत की दीवानी बनो और सुरों की रेशमी और सतरंगी दुनिया में खो जाओ.

एक लड़की के रूप में तुम्हारा जीवन किसी भी लड़के की तुलना में कहीं ज्यादा जटिल और चुनौतियों से भरा होगा मेरी बच्ची! लड़कों का जीवन सच में लड़कियों की अपेक्षा कहीं ज्यादा आसान और मस्ती भरा है मेरी गुड़िया… यकीन नहीं होता, तो ड्रेन में रहने वाली उन बच्चियों से पूछ लो! उन मादा भ्रूणों को सिर्फ इसलिए ही नहीं मारा गया कि मां-बाप अपनी पैदा हुई बेटी के लिए दहेज नहीं जुटा सकते थे, या जुटाना नहीं चाहते थे. बल्कि इसलिए भी ऐसा किया जा रहा है, क्योंकि आज के समय में अपनी बेटी को एक सुरक्षित जिंदगी दे पाना मां-बाप के लिए लगभग असंभव हो गया है. ये ख्याल सच में शर्म से डूब मरने लायक है मेरी नन्ही, कि आप अपनी सारी कोशिशों के बाद भी अपनी मासूम सी बेटी को सुरक्षित बचपन नहीं दे सकते! सुरक्षित और सम्मानित जीवन नहीं दे सकते! इस कारण भी इतना माद्दा और ऊर्जा नहीं बची है लोगों में, कि वे आज के समय में सहज ही बेटी पैदा करने की हिम्मत जुटा सकें! लेकिन लड़कियों के लिए इस घोर असुरक्षित समय में भी तुम्हारी मां तो एक बेटी ही चाहती है. मैं इन तमाम चुनौतियों के साथ तुम्हे अपने जीवन में चाहती हूं मेरी बेटी!

हमारे समाज में ज्यादा संख्या में लड़के ही पैदा हो रहे हैं, पर फिर भी सच यही है मेरी बच्ची कि ‘अच्छे पुरुषों’ का अकाल है! ज्यादातर लड़के बड़े होकर ‘खांटी मर्द’ बन जाते हैं, ‘अच्छे पुरुष’ कम ही बचते हैं! एक ‘खांटी मर्द’ और ‘अच्छे पुरुष’ का फर्क जानने के लिए तो तुम्हें जन्म लेना ही होगा मेरी जान. खांटी मर्दों और उनकी मर्दानगी से तो इस धरती की लगभग सारी लड़कियों का पाला पड़ा होगा, लेकिन तुमारी मां के किस्मत में कुछ अच्छे पुरुषों का खूबसूरत साथ भी लिखा था. उनमें से ज्यादातर पुरुष दोस्त के रूप में जीवन में हैं.

तुम जरूर जानना चाहोगी की ‘खांटी मर्द’ और ‘अच्छे पुरुष’ में क्या फर्क होता है? ‘खांटी मर्दों’ के बारे में मैं बस एक ही बात तुम्हें बताती हूँ. खांटी मर्द सामने आते ही कुछ ही पलों में अपनी नजर भर से, या फिर अपने हाव-भाव, शब्दों, बातों या व्यवहार से तुम्हें अहसास दिला देंगे की तुम एक इंसान नहीं एक लड़की हो! ‘लड़की होने का मतलब’ की तुम कोई भोगी जाने वाली, मजे देने वाली चीज हो! लेकिन कोई भी ‘अच्छा पुरुष’ अपनी नजरों, बातों या एक नन्हे से व्यवहार से भी तुम्हें ये नहीं महसूस होने देगा कि तुम एक लड़की/महिला हो! मतलब ये मेरी चिड़िया, कि ज्यादातर मौकों पर लड़कों की सिर्फ ‘एक नजर’ ही तुम्हें बता देगी की वे खांटी मर्द हैं या फिर अच्छे पुरुष हैं! सो तुम्हें उस एक नजर को देखने और पहचानने के लिए इस दुनिया में आना ही होगा… जब तुम मेरे जीवन के ऐसे पुरुषों को देखोगी, जानोगी तो उन्हें देखकर भी खुद ही समझ जाओगी कि ‘खांटी मर्द’ और ‘अच्छे पुरुष’ में क्या फर्क होता है? …और साथ ही ये भी कि एक अच्छे, स्वस्थ समाज के लिए किसकी जरूरत ज्यादा है, ‘खांटी मर्दों’ की या ‘अच्छे पुरुषों’ की?

देखो, बातों-बातों में तुम्हारे जन्म लेने की एक और वजह खुद ही निकल आई. तुम खुश होगी न? हां मैं भी हूँ.

 

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

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Sudhir Kumar

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