उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के आन्दोलन में मसूरी का ख़ास योगदान रहा है. इस आन्दोलन में मसूरी निवासियों के बलिदानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता.
1 सितम्बर को 1994 को खटीमा में हुए बर्बर गोलीकांड के खिलाफ मसूरी में आन्दोलनकारियों मौन जुलूस निकलने की तैयारी में थे.
आन्दोलनकारियों के तय जगह पर इकठ्ठा होने से पहले ही तय जगह से पुलिस द्वारा 5 अनशनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. इस गिरफ़्तारी के खिलाफ आक्रोशित लोग इकठ्ठा होने लगे. सैंकड़ों लोग झूलाघर में जमा हो गए.
मसूरी के हर गली-मोहल्ले से प्रदर्शनकारी इकठ्ठा होने लगे, इनमें भारी तादाद में महिलाएं शामिल थीं.
सुबह-सुबह 5 आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर चुकी पुलिस ने 47 अन्य आन्दोलनकारियों को भी गिरफ्तार कर देहरादून जेल भेज दिया. गिरफ्तार लोगों में महिलाओं की भी काफी संख्या थी. सभी आन्दोलनकारियों को बेरहमी के साथ पीटा गया.
सभी हदों को पार करते हुए कानून व्यवस्था बहाल करने के नाम पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने आन्दोलनकारियों पर गोलियां चला दी. पीएसी द्वारा महिलाओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोली चला दी गयी.
2 सितम्बर 1994 को मसूरी में हुए इस गोलीकांड में 6 आन्दोलनकारी शहीद हुए. दर्जनों आन्दोलनकारी जख्मी हुए और 18 गंभीर रूप से घायल भी हुए.
खटीमा गोलीकांड के बाद मसूरी गोलीकांड ने उत्तराखण्ड आन्दोलन को त्वरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके बाद समूचे राज्य की जनता के बीच आक्रोश और ज्यादा बढ़ गया.
आज भी राज्य की जनता उन शहीदों को याद कर हर साल 2 सितम्बर को उनका स्मरण करती है, उन्हें श्रद्धांजलि देती है.
2 सितम्बर 1994 को मसूरी गोलीकांड के शहीद—
(सभी तस्वीरें सुरेन्द्र सिंह पुण्डीर की पुस्तक ‘मसूरी के शहीद’ से साभार)
25 साल पहले आज ही के दिन हुआ था खटीमा गोलीकांड
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नमन उन शहीदों को, जिन्होंने उत्तराखंड के लिए बलिदान अपना जीवन कर दिया ।