निजी कारणों की वजह से शुरुआत में ही मैं खुद को इस वाकये से अलग कर लेता हूँ. तो वो एक पुलिस चौकी थी जिसमें चार सीसीटीवी कैमरे लगने थे. तीन बाहर और एक अंदर. बाहर के सभी कैमरे लगने के बाद चौकी कार्यालय में ही कंट्रोल यूनिट सेट की गई और तकनीशियन ने इंचार्ज से पूछा कि अंदर वाला कैमरा कहाँ इंस्टाल करूँ? इंचार्ज पहले तो ना-नुकुर करता रहा फिर ज़रूरी काम है कहकर चला गया. Work from Home Contemplation

चौकी कुल जमा एक कमरे की थी. लगा हुआ एक छोटा बरामदा, गेट और कमरे के दरवाजे के बीच, अगर उसे दलान कह सकें तो, दलान, उसी दलान के कोने में एक टिन शेड और बस. तो जान लें कि तकनीशियन ने कैमरा इंस्टॉल किया या नहीं? किया तो कहाँ? और इंचार्ज साब क्यों इधर-उधर हो लिए.Work from Home Contemplation

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काम करते आठ साल हुए थे उसे. ईमानदार, काम से लग कर रहने वाला और ठीक-ठाक सलीकेदार अधिकारी. हफ्ते भर की एक ट्रेनिंग के लिए उसे नामित किया गया. उसने उन दिनों भाई की शादी या कुछ ऐसा ही काम बताकर दूसरे को भेजने की और अगले फेरे में खुद के जाने के लिए अर्जी दी क्योंकि रोटेशन में सभी को जाना था. अर्जी मानी तो गई पर एक चेतावनी भी साथ चिपककर आई स्वीकृति पत्र के. क्या? जान लें?

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सत्ताईस साल से वो उस कार्यालय में काम कर रहा था. छोटे बाबू से प्रधान कार्यालय सहायक तक इसी मेज़, इसी कमरे, इसी चौहद्दी में लगभग रोज़ की आमदरफ्त रही उसकी. अगर ये खेल का मैदान होता तो इसके जाने के बाद शायद चार नम्बर वाली मेज़ हमेशा के लिए खूंटी पर टांग दी जाती. लेकिन रिटायर होने के चार साल पहले उससे पूछा गया कि बिना बताए तीन दिन क्यों गायब रहे और क्यों न आपके ख़िलाफ़…? उसने जवाब दिया, माना नहीं गया अब कार्यवाही प्रचलित है. कार्यवाही का क्या है, चलती रहती है, ज़रूरी तो ये जानना हुआ कि उसने जवाब क्या दिया? जान लें?

अभी रुकिए.

पहले ये जान लें कि जीवन की गुणवत्ता में अग्रणी रहने वाले स्कैंडिनेवियन देशों में से एक है फिनलैंड. ये अपने कर्मचारियों के लिए सबसे शानदार सुविधाएं मुहैया कराने वाले देशों में से है. तमाम अन्य सलूहियतों के साथ वहाँ लागू एक एक्ट के तहत कर्मचारी अपने काम के घण्टों में तीन घण्टे तक का लचीलापन ले सकता है. मतलब अगर आपका कार्यालय दस से पांच बजे तक चलता है तो आप एक से आठ या सात से दो तक भी आकर अपना काम निबटा सकते हैं. अभी हाल ही में कोविड 19 के समय में एक और सुविधा जोड़ी गई है. आप अपना काम करने का स्थान चुन सकते हैं. यानि इस संक्रमण काल में व्यावहारिक स्तर पर ‘वर्क फ्रॉम होम’ को अधिकार के रूप में अपने नागरिकों को देने वाला फिनलैंड सम्भवतः विश्व का पहला देश है.

ये भी जान लें कि जर्मनी में भी ऐसी कुछ योजना लागू होने वाली है. ध्यान रक्खें कि जर्मनी भी अपने कर्मचारियों को ज़िम्मेदार नागरिक मानते हुए बेहतर सुविधाएं देने वाले देशों में से एक है. वहाँ के श्रम मंत्री ने हाल ही में ‘वर्क फ्रॉम होम’ को अधिकार के रूप में लाने का सुझाव दिया है. जल्द ही ‘बुन्देस्ताग’ में प्रस्ताव पेश कर दिया जाएगा.Work from Home Contemplation

जानना तो ये भी चाहिए कि ब्रिटेन, जहाँ की कार्यपालिका के रूप-रंग-स्वाद-गन्ध का भरपूर प्रभाव हमारे यहाँ देखने को मिलता है, वहाँ भी काम के घण्टों को लचीला कर सकने की सुविधा जो पहले छोटे बच्चों वाले कामकाजी अभिभावकों को बच्चों के देखभाल की वजह से मिलती थी अब सभी कर्मचारियों के लिए बढ़ा दी गई है. यहाँ भी काम के घण्टों और स्थान यानि ‘वर्क फ्रॉम होम’ को अपनी सुविधानुसार माँगना एक न्यायिक अधिकार है. अब स्थितियां ऐसी बन रही हैं कि ऐसी माँगे बढ़ रही हैं और सरकार या किसी भी नियोक्ता द्वारा उन्हें नकारने की प्रवित्ति में भी कमी आ रही है.

इतना जानने के बाद ये जानना कितना अद्भुद है कि उस चौकी में कैमरा उसी कमरे के दरवाजे के ऊपर लगाया गया क्योंकि यही उच्च अधिकारियों द्वारा नियत किया गया था. चौकी इंचार्ज इसलिए हिला-हवाली कर रहा था क्योंकि उसके सोने का कमरा भी वही था, खाना खाने का भी और परिवार से फोन पर हाल-चाल बतियाने का भी. हालांकि निजता टेक्निकली  किस चिड़िया का नाम है खुद उसे पता न था.

ये जानना कितना दिलचस्प है कि अनुमति पत्र के साथ गलबहियां डाले जो प्रेमपत्र यानि कि चेतावनी अधिकारी महाशय को प्राप्त हुआ था  उसमें लिखा था कि आपने अपने व्यक्तिगत कार्यों को राजकीय दायित्वों के ऊपर तरजीह दी, अतः…

ये जानना भी कितना विलक्षण है कि उस बुढ़ापे को लुढ़कते आरोपी व्यक्ति ने जवाब दिया कि वो डर गया था. जी हाँ सही पढ़ा. छप्पन साला ढलती उम्र का वो शख़्स डर गया था क्योंकि उसे साँस की बीमारी थी और इस संक्रमण में कहते हैं कि ख़तरा ऐसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को ज़्यादा है. पिछले हफ्ते से उसे रह-रह कर साँस चढ़ जा रही थी और कहीं उसके बच्चे-पोते और साथ वाले न संक्रमित हो जाएं इस डर से वो अपने पुराने परित्यक्त मकान में एकांत वास में चला गया था. बाकी कार्यवाही-वार्यवाही के बाबत तो आप जान ही चुके हैं.Work from Home Contemplation

दरअसल असल जानकारी ये है कि फिनलैंड, जर्मनी, ब्रिटेन और तमाम ऐसे मुल्क, जो इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, में कर्मचारी नागरिक माने जाते हैं और हमारे यहाँ नींबू, जिन्हें जितना निचोड़ो उतना रस निकलता है. 

हमने सवाल-जवाब कर लिए हैं, जांच कर ली है, सज़ाएं सुना दी हैं, वीडियो कैमरे इंस्टॉल कर दिए हैं, उनका मुंह ठीक कर्मचारी की खोपड़ी पर तान दिया है. अब हम सीधे बाईसवीं सदी में प्रवेश करने जा रहे हैं. आप शिकंजी पीना चाहेंगे, अचूक इम्युनिटी बूस्टर है?Work from Home Contemplation

यह भी पढ़ें: बार-बार नहीं आते अरविन्द डंगवाल जैसे थानेदार

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अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

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