वर्ष 1930.
नैनीताल में विमला देवी, जानकी देवी साह, शकुन्तला देवी (मूसी), भागीरथी देवी, पद्मा देवी जोशी तथा सावित्री देवी स्वाधीनता आन्दोलन में बहुत सक्रिय थीं. यही साल था जब विमला देवी ने ‘बीमर’ नाम के एक भवन पर तिरंगा फहराने का कारनामा कर दिखाया था. (Women in Freedom Struggle Uttarakhand )
30 अप्रैल 1930 को नैनीताल में महिलाओं की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. इस बैठक में सभी उपस्थित महिलाओं द्वारा खद्दर पहनने और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में हिस्सेदारी करने का निर्णय लिया गया. (Women in Freedom Struggle Uttarakhand)
अल्मोड़ा में कुन्ती देवी वर्मा, दुर्गा देवी पन्त, भक्ति देवी त्रिवेदी, तुलसी रावत, बच्ची देवी पाण्डे आदि महिलाओं के नेतृत्व में 100 से अधिक महिलाओं का संगठन बना. अल्मोड़े में मोहन जोशी तथा शांतिलाल त्रिवेदी के घायल हो जाने के उपरान्त हुए झंडा सत्याग्रह में कुन्ती देवी वर्मा, बिशनी देवी साह, मंगली देवी वर्मा, भागीरथी वर्मा, जीवंती देवी तथा रेवती देवी की भूमिका उल्लेखनीय रही.
इस सक्रियता का असर यह हुआ कि जनवरी 1931 में बागेश्वर में एक बड़े महिला सम्मलेन का आयोजन हुआ. इस सम्मलेन में पूरे इलाके में महिलाओं की जागरूकता, विदेशी कपड़ों तथा शराब-सुल्फे का विरोध और खादी के प्रचार का निर्णय लिया गया.
विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए कुन्ती देवी वर्मा की अगुआई में महिलाओं का एक दल हल्द्वानी गया. इस दल ने हल्द्वानी की उन सभी दुकानों पर धरना दिया जहां विदेशी वस्त्रों की बिक्री की जाती थी.
स्वन्तन्त्रता संग्राम की आंच के इस तरह महिलाओं तक पसर जाने से अंग्रेज सरकार बौखला गयी थी. पहाड़ की महिलाओं, जिन्हें घरेलू और दब्बू समझा जाता रहा था, के इस तरह आजादी की लड़ाई में कूद पड़ना एक अभूतपूर्व घटना थी. सरकार का दमन चक्र ऐसे में चलना ही था.
इस सिलसिले में उसी महीने सरकार ने कुन्ती देवी वर्मा, मंगला देवी, जीवंती देवी, भागीरथी देवी, रेवती देवी, पद्मा देवी, पनी देवी इत्यादि महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया.
अखबार ‘स्वाधीन प्रजा’ ने अल्मोड़ा से रिपोर्टिंग की कि यह उत्तराखंड में आजादी के सिलसिले में हुई महिलाओं की पहली गिरफ्तारी थी.
(प्रो. शेखर पाठक द्वारा संपादित ‘सरफरोशी की तमन्ना’ के आधार पर.)
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