धारचूला के मेतली गोरीछाल गांव की एक महिला को जंगल में अपना प्रसव कराना पड़ा. धारचूला में मुख्य सड़क से पन्द्रह किमी की दूरी पर एक गांव है गोरीछाल. गोरीछाल गांव मेतली ग्रामसभा काएक गांव है.
हिन्दुस्तान में संतोष आर्यन की रिपोर्ट के अनुसार बुधवार सुबह मेतली ग्रामसभा निवासी रेखा देवी को प्रसव पीड़ा शुरु हुई. इस पर गांव की स्वयं सहायता समूह की महिलायें उन्हें स्ट्रेचर पर सीएचसी धारचूला ले जाने लगी. महिलायें पांच किमी दूर पहुंची तो गर्भवती की प्रसव पीड़ा बड़ गयी. जिसके कारण उन्हें जंगल में ही प्रसव कराना पड़ा. प्रसव कराने के बाद वे जच्चाबच्चा को घर ले आए.
हिन्दुस्तान में इस ख़बर के साथ सीएमओ पिथौरागढ़ का बयान भी पढ़ने लायक है. सीएमओ ऊषा गुंज्याल ने घटना पर कहा कि
बीच रास्ते में प्रसव होना दुर्भाग्यपूर्ण है. गर्भवती महिलाओं को प्रसव से एक माह पूर्व ही अस्पताल आने को कहा जाता है. रही बात एएनएम व आशा की गांव में न जाने की, इसकी जांच कर जरुरी कार्यवाही की जायेगी.
आज पहाड़ में लोग बचे हैं तो यहां की महिलाओं के कारण. पहाड़ में जितने घर पलायन के दंश से बचे हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उन घरों की महिलाओं की है. पहाड़ के घरों में सारा-दारोमदार महिलाओं पर है लेकिन उनके लिये न सड़क है न स्वास्थ्य.
आये दिन हम अपने राज्य के लोगों के बड़े-बड़े पदों में होने की खबरें शेयर करते हैं. शेयर करते हुये हम चाहते हैं कि हम उन पर गर्व करें. बड़े पदों पर नियुक्त कितने ऐसे उत्तराखंड के लोग हैं जिन्होंने अपने गांव के लिये अस्पताल मांगा है कितनों ने सड़क मांगी है. हां यहां आकर मंदिरों में पूजा जरुर की है और उनका निर्माण भी कराया है.
उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट में शिक्षा और स्वास्थ्य पलायन के दो प्रमुख कारण गिनाये हुये साल भर होने को है लेकिन स्थिति जस की तस है.
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बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है