अच्छा दोस्तो, पहले यह बताओ- क्या तुमने कभी कोई परी देखी?
नहीं? लेकिन, मैंने देखी है! चौंक गए ना? जब मैं भी तुम्हारी तरह बच्चा था तो मैंने परी देखी थी. उससे खूब बातें की थीं. और हां, मैं उसके साथ आसमान में भी उड़ा. अपने सपने में!
दोस्तो, परियों की कहानियां पढ़ते-पढ़ते वे मुझे इतनी अच्छी लगने लगीं कि मैं उनकी कल्पना करने लगा. मन करता, काश परी कथाओं की कोई परी मेरे पास भी आती. मैं भी उसे अपने मन की बातें बताता. और लो, वह चली आई, अपने परीलोक से मेरे स्वप्नलोक में.
हां-हां, मैं समझ रहा हूं, तुम क्या कहना चाहते हो. यहीं ना कि इस तरह सपने में तो तुम में से भी कुछ बच्चों ने परियां देखी हैं? ठीक बात है. लेकिन, सपने में ही क्यों? इसलिए दोस्तो कि हम परियों की कल्पना करते हैं और वे हमारे कल्पना लोक से अपने सुंदर पंख फड़फड़ा कर हमारे सपनों में उतर जाती हैं.
मगर, कल्पना लोक में वे कैसे पहुंच गईं?
इसे जानने के लिए तुम्हें मेरे साथ कल्पना की उड़ान भरनी होगी. हमें हजारों वर्ष पीछे अतीत में जाकर अपने पुरखों से मिलना होगा. तो, चलो चलें…
लो, हम पहुंच गए. शाम ढल चुकी है और चारों ओर अंधेरा घिर आया है. उस गुफा के सामने अलाव जल रहा है. आग के चारों ओर खाल के कपड़े पहने दो-चार आदमी, औरतें और बच्चे बैठे हैं. यही हमारे पुरखे हैं यानी आदि मानव. उनमें से एक आदमी हाथों के इशारे से कुछ समझा रहा है. बाकी लोग सुन रहे हैं. शायद अपने दिन भर के सुख-दुःख सुना रहा है. कह रहा है, ऐसा हुआ. अगर वैसा होता तो क्या होता. शायद किसी खूंखार जानवर से अपने बचने की बता रहा है. औरत बच्चों को आग में भुना मांस और कंद-मूल खिला रही है. अब दूसरा आदमी कुछ कहने लगा है. लगता है, अपनी शिकार कथा सुना रहा है.
दोस्तो, लोग कहते हैं कि जब इस तरह आदिमानव जंगलों और गुफाओं में रहता था तो उसके पास साधन नहीं थे. वह पूरी तरह प्रकति पर निर्भर था. उसे घनघारे जंगल में जानवरों का समाना करना पड़ता था. भोजन जुटाना पड़ता था. गुफाओं में छिप कर अपनी रक्षा करनी पढ़ती थी. आंधी-तूफान और वर्षा से बचना पड़ता था. शायद तब उसने सोचा होगा कि काश कोई उसकी मदद करता. उसे जंगली जानवरों से बचाता. उसके लिए भोजन जुटाता. उसे भी चिड़ियों की तरह उड़ने के लिए पंख देता. उसे जगमगाते चांद-सितारों तक पहुंचाता. उसके हाथ में ऐसी जादुई लकड़ी थमा देता जिससे इशारा करने पर कछ भी गायब हो जाता या कुछ भी मिल जाता!
अपने सुख-दुःख में मदद करने और दुष्टों को दंड देने के लिए उसने ‘परियों’ की कल्पना की- लाल परी, नीली परी, हरी परी, सुनहरी परी, छोटी परी, बड़ी परी…यानी तरह-तरह की परियां. जब उसकी कल्पना में परियां उतर आईं तो उसने उनकी कथा अपने दूसरे साथियों को सुनाई. इस तरह उन्हें कल्पना में किसी का सहारा मिल गया. बस, उसी दिन से परियां आकर उसके मन को सहारा देने लगीं. मनोरंजन करने लगीं. तो शायद इस तरह परियों का जन्म हो गया.
हमारे पुरखे यानी आदिमानवों ने कल्पना कर ली कि परियां ‘परीलोक’ से आती हैं. सोचा, वह परीलोक हमारी पृथ्वी से कहीं दूर किसी और लोक में है. दोस्तो, उसे उन्होंने अपनी कल्पना में एक ऐसे सुंदर, हरे-भरे आदर्श लोक के रूप में देखा जहां सब सुखी हैं. वहां कोई भूखा-प्यासा नहीं रहता. सब एक दूसरे की मदद करते हैं. वहां से परियां हमारी धरती पर आती हैं और हमारी मदद करती हैं. उनमें दया और ममता होती है. वे बेसहारा और दुखी बच्चों से प्यार करती हैं. उन्हें दुःख देने वालों को दंड देती हैं. वे सौतेले पिता या सौतेली मां के सताए हुए बच्चों की सहायता करती हैं. उन्हें परीलोक की सैर कराती हैं और ऐसी जादुई छड़ी या पत्थर देती हैं जिससे वे मुसीबतों से बचते हैं.
दोस्तो, यह सब कल्पना की उड़ान थी, केवल कहानी थी. लेकिन, ऐसी कहानी जो बच्चों को दुःखों, परेशानियों से दूर अद्भुत लोक की सैर कराती थी. तुम्हें यह सुन कर शायद अचरज होगा कि पहले तक ऐसी परीकथाएं बड़ों को सुनाई जाती थीं! बच्चे भी उन्हें मन लगा कर सुनते. धीरे-धीरे परीकथाएं बच्चों में अधिक लोकप्रिय हो गईं. वे बच्चों की कहानियां बन गईं.
एक बात और. पहले तक कागज-कलम तो था नहीं, इसलिए ये कहानियां मौखिक रूप से सुनाई जाती थीं. हजारों साल तक ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई गईं. जब आदमी ने लिखना-पढ़ना सीखा, तब तक दुनिया भर में परीकथाओं का विशाल मौखिक भंडार बन चुका था. दुनिया के हर भाग में, हरेक सभ्यता और संस्कृति में उनकी अपनी कल्पना की परी कथाओं ने जन्म लिया. हर देश की परीकथाएं उन देशों की अलग पहचान बन गईं.
दोस्तो, परीकथाओं में का कोई देश-काल नहीं होता. उनका अपना कल्पना लोक होता है. परी कथाओं के पात्र भी काल्पनिक होते हैं. उनमें परियों के अलावा जादूगर होते हैं, बौने और भीमकाय लोग होते हैं. दैत्य और दानव होते हैं. और हां, मनुष्यों की भाषा बोलने वाले पशु-पक्षी भी होते हैं. धीरे-धीरे परी कथाओं में राजा, रानियां, राजकुमार और राजकुमारियां भी आ गईं. हमारे देश की प्राचीन कहानियों में पंखों वाली परियों के बजाय सुंदर अप्सराओं, गंधर्वों और किन्नरों का वर्णन किया गया है.
जानते हो, सबसे पहले परीकथाएं दुनिया के किस देश में सुनी-सुनाई गईं? कुछ लोग कहते हैं, हमारे देश में. हमारे देश में ‘पंचतंत्र’ की कहानियां आज से लगभग 2300 वर्ष पहले पं. विष्णु शर्मा ने सुनाई थीं. वे नीति की कहानियां थीं और उनके पात्र पशु-पक्षी और मनुष्य थे. कुछ लोग कहते हैं कि प्राचीन यूनान के निवासियों ने ईसप की कहानियां कम से कम 2600 साल पहले सुनाईं. मिस्र में दो भाइयों की परी कथा 3300 वर्ष पहले सुनी-सुनाई गई. रुस, चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, अमेरिका और यूरोप के विभिन्न देशों की अपनी परी कथाएं हैं.
दुनिया के हर देश की परी कथाओं में उनकी अपनी कल्पना के चरित्र हैं. उनमें पंखों की मदद से उड़ने वाली परियों के अलावा कई प्रकार के चरित्र हैं. उनमें भयंकर दैत्य और जादूगरनियां हैं. अच्छी और बुरी आत्माएं हैं. आयरलैंड की परीकथाओं के ‘लैप्रेकान’ परियों या बौनों का रूप रखते हैं. वे पकड़े जाने पर खजाने का पता बताते हैं. स्काटलैंड की परीकथाओं के ‘केल्पी’ समुद्री राक्षस हैं. वे नाविकों और यात्रियों का मन भी बहलाते हैं और नाराज हो जाने पर जलपोतों को डुबा देते हैं. आयरलैंड की ही परीकथाओं की ‘पिक्सी’ परियां लोगों को गायब कर देती हैं. दोस्तो, हमारे देश के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र में ‘चांचरियों’ की कहानियां सुनाई देती हैं जो बर्फीले इलाकों में दिखाई देती हैं. कहानी कहने वाले कहते हैं कि वे अप्सराओं के समान सुंदर होती हैं और मनुष्यों को मोहित कर लेती हैं.
वैसे मोहित करने के लिए हमारे देश में अप्सराओं की कल्पना की गई है. वे बहुत संदर बताई जाती हैं और देवताओं के राजा इंद्र के इंद्रलोक में रहती हैं. वे इंद्र के दरबार में नृत्य करती हैं. अनेक कहानियों में उन्हें इंद्र के आदेष से तपस्या में लीन ऋषियों का तप भंग करने के लिए भेजा जाता है. प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि महर्षि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने के लिए मेनका नामक अप्सरा को भेजा गया. मेनका ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम शंकुतला रखा गया.
विश्वामित्र फिर कठोर तपस्या करने लगे तो उनकी तपस्या भंग करने के लिए इस बार रंभा नामक अप्सरा भेजी गई. विश्वामित्र ने उसे दस हजार साल तक पत्थर की शिला बनने का शाप दे दिया. एक और अप्सरा थी- उर्वशी. उसने राजा पुरुरवा के पुत्र को जन्म दिया. और हां, जानते हो, ‘महाभारत’ में तो 45 अप्सराओं का वर्णन किया गया है. लेकिन, अप्सराएं आईं कहां से? प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि ये क्षीर सागर के मंथन में पैदा हुईं. अप्सराएं अपना रूप बदल सकती थीं.
गंधर्वों की कल्पना मनुष्य और पशु के मिले-जुले रूप में की गई है. उनका रूप आधा घोड़े के समान और आधा मनुष्य के समान माना गया है. या, उनके पक्षियों के जैसे पंख और पैरों की कल्पना की गई है. ये संगीत और वाद्य यंत्र बजाने में कुशल बताए गए हैं. इंद्र के दरबार में अप्सराओं के नाचते समय गंधर्व वाद्ययंत्र बजाते हैं.
अच्छा, एक बात और. जानते हो, मनुष्य की इन अन्य लोक की कल्पनाओं को परी कथाओं का नाम किसने दिया? इनका नामकरण किया फ्रांस की एक लेखिका मदाम द’अलनाय ने सन् 1697 में. वे जिस तरह की अन्य लोक की, चमत्कारिक कहानियां लिखती थीं, उन्हें उन्होंने ‘कोंतेज दे फी’ यानी ‘परी कथा’ कहा. लेकिन, परी कथाओं को सहेज-संवार कर सबसे पहले जर्मनी के ग्रिम बंधुओं ने सामने रखा. उन्होंने देखा कि बच्चे और किशोर इन कहानियों को मन लगा कर पढ़ते हैं. इसलिए उन दोनों भाइयों अर्थात् जेकब लुडविग कार्ल ग्रिम और विल्हैम कार्ल ग्रिम ने जर्मनी में दूर-दूर तक जाकर बड़े-बुजुर्गों से परियों की कहानियां सुनीं. उन्हें कागज पर उतारा और फिर परी कथाओं की किताब छाप दी. यह सन् 1812 की बात है. ‘सिंड्रैला’, ‘स्लीपिंग ब्यूटी’ और ‘स्नो ह्वाइट एंड द सेवन ड्वाफ्र्स’ जैसी प्रसिद्ध परी कथाएं उन्हीं की देन हैं.
इसके बाद विश्व भर में आज बच्चों के सबसे प्रिय लेखक हैंस क्रिश्चियन एंडरसन ने ऐसी मजेदार परी कथाएं लिखीं जो अमर हो गईं. हो सकता है तुमने उनकी लिखी परी कथाएं पढ़ी हों. एंडरसन परीकथा लिखकर पहले बच्चों को सुनाते थे. बच्चों के हाव-भाव देख कर उन्हें पता लग जाता था कि कहानी कैसी है. वे अपनी कहानी के बारे में बच्चों की राय भी पूछते थे. ‘राजा के नए कपड़े’, ‘नन्ही जलपरी’, ‘स्नो मैन’ परीकथाएं उन्हीं ने लिखी थीं.
दोस्तो, मैं जानता हूं, परियों की बात सुनते-सुनते तुम्हें ‘एलियन’ जरूर याद आ रहे होंगे! जिस तरह हजारों वर्ष पहले हमारे पुरखों ने ‘परियों की कल्पना की, उसी तरह सौ-दो सौ साल पहले विज्ञान कथा लेखकों ने पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों में भी बुद्धिमान जीवों की कल्पना करना शुरू कर दिया था. उन्होंने ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों में पनपी सभ्यताओं के बारे में तरह-तरह की कल्पनाएं कीं. परी कथाओं की तरह इन कल्पनाओं ने विज्ञान कथाओं को जन्म दे दिया. आज बच्चे सोचते हैं कि क्या पता कभी उन्हें भी फिल्मों के ई.टी. या ‘जादू’ जैसा कोई ‘एलियन’ मिल जाए! जीता-जागता एलियन नहीं तो क्या पता कोई बुद्धिमान मशीन ही कभी धरती पर उतर आए और अपनी परियों जैसी संुदरता से सबका मन मोह ले. क्या पता, वही मशीन-परी बच्चों की दोस्त बन जाए! उनके साथ खेले कूदे, उनसे प्यार करे और उन्हें अपने लोक की सैर कराए. तुम्हारे कल्पना लोक में कोई ऐसी परी सैर करने आए तो उसके बारे में हमें भी लिखना. ठीक है?
लोकप्रिय विज्ञान की दर्ज़नों किताबें लिख चुके देवेन मेवाड़ी देश के वरिष्ठतम विज्ञान लेखकों में गिने जाते हैं. अनेक राष्ट्रीय पुरुस्कारों से सम्मानित देवेन मेवाड़ी मूलतः उत्तराखण्ड के निवासी हैं और ‘मेरी यादों का पहाड़’ शीर्षक उनकी आत्मकथात्मक रचना हाल के वर्षों में बहुत लोकप्रिय रही है.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…