गोविन्द राम काला की शानदार किताब ‘मेमोयर्स ऑफ़ द राज’ के कई अंशों का अनुवाद आप काफल ट्री पर पढ़ चुके हैं. आज पढ़िए अपनी इस पुस्तक में पिथौरागढ़ के मालदार परिवार को लेकर गोविन्द राम काला ने क्या लिखा है. ध्यान रहे गोविन्द राम काला उन दिनों पिथौरागढ़ के एस.डी.ओ. हुआ करते थे (When Dansingh Maldar was fined by Forest Department):
मालदार लोग – ठाकुर देव सिंह बिष्ट और उनके पुत्र दान सिंह – पिथौरागढ़ के सबसे अमीर लोगों में से थे. उनकी समृद्धि में आई चमत्कारिक तेजी का यहाँ ज़िक्र किया जाना चाहिए. ठाकुर देव सिंह बिष्ट एक व्यापारी थे जिनकी कपड़े की दुकान थी. इसके अलावा वे नेपाल के झूलाघाट से घी खरीद कर उसकी सप्लाई रानीखेत, अल्मोड़ा और नैनीताल में किया करते थे. साथ ही वे टनकपुर के रास्ते मैदानी इलाकों में भी माल भेजा करते थे. (When Dansingh Maldar was fined by Forest Department)
घी के व्यापार से पर्याप्त धन कमा चुकने के बाद उनके परिवार ने यह काम छोड़ दिया और जंगलात की ठेकेदारी का काम शुरू किया. धीरे-धीरे उनका यह काम नेपाल और कश्मीर तक फैल गया.
देव सिंह के पुत्र दान सिंह एक चतुर और कुशल व्यापारी थे. उन्होंने जिस चीज को हाथ लगाया वह सोना बन गयी. बीस साल के आसपास की समय अवधि में यह परिवार अकूत सम्पदा इकठ्ठी करने में कामयाब हुआ. बेरीनाग के नजदीक स्थित चौकोड़ी में उन्होंने एक चाय-बागान और डेयरी का निर्माण किया और स्थानीय जनता की भलाई के लिए एक अस्पताल भी बनवाया.
इन उपलब्धियों के लिए ठाकुर देव सिंह बिष्ट को राय बहादुर का खिताब दिया गया. उन्होंने मिस्टर रॉबर्ट्स नाम के एक टी-प्लान्टर से बेरीनाग के आसपास उपजाऊ भूमि का एक बहुत बड़ा टुकड़ा खरीदा. मिस्टर रॉबर्ट्स संपत्ति बेचकर केन्या चले गए थे. इसके अलावा इस परिवार के स्वामित्व में नैनीताल से तीन किलोमीटर दूर स्थित ब्रेवरी के इलाके की सारी इमारतें भी हैं. उन्होंने नैनीताल में डिग्री कॉलेज के निर्माण हेतु दान देने के अलावा पिथौरागढ़ में शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना के लिए उदारतापूर्वक धन देकर सहयोग किया.
ठाकुर दान सिंह बिष्ट को मृत्यु उस समय उठा ले गयी जब वे अपने करियर के चरम पर थे लेकिन उनके द्वारा स्थापित की गयी नजीर कुमाऊँ वालों को प्रेरित करती रहेगी बिजनेस में जिनका रेकॉर्ड परम्परागत रूप से दयनीय रहा है.
इसी किताब में गोविन्द राम काला एक और जगह दान सिंह मालदार का ज़िक्र करते हैं:
मिस्टर सेल (1933 में कुमाऊं के डिप्टी कमिश्नर जे. एफ़. सेल) कि एक खराब आदत थी कि वे अफसरों के बीच झगड़ा करवाके के शौक़ीन थे. जिले के मशहूर लकड़ी-ठेकेदार ठाकुर दान सिंह के एजेंट ने एक जगह पर पेड़ों का अवैध कटान किया था जिसकी रिपोर्ट मुझे दी गयी थी. मैंने कानूनगो को मुआयना करने और रपट देने का आदेश दिया. उसने बताया कि 4000 रुपये के पेड़ काटे गए थे. मैंने इस तथ्य से मिस्टर सेल को अवगत कराया और यह भी रेखांकित किया कि वन अधिनियम के तहत हम 500 रुपयों से अधिक के मुआवजे की मांग नहीं कर सकते. उन दिनों श्री धर्मवीर, आईसीएस बारामंडल के एसडीओ थे जबकि मैं पिथौरागढ़ का. उन्होंने इन कागजों को श्री धर्मवीर के पास भेज दिया जिन्होंने फाइल पर लिखा, “मेरी समझ में नहीं आता कि श्री काला के भीतर ऐसा अटपटा प्रस्ताव देने की हिम्मत कैसे आई.”
फाइल मेरे पास आई तो जाहिर है मैं श्री धर्मवीर के शब्दों से झुंझला गया. उन दिनों मिस्टर सेल जौलिंगकौंग दर्रे की यात्रा पर गए हुए थे. जब वे लौट कर असकोट आये तो मैं उनसे मिला. मैंने उनसे साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि दो अफसरों को लड़वाने की उनकी नीति बहुत श्लाघ्नीय नहीं कही जा सकती. और यह भी कि वे कानून तोड़ने वालों से 4000 रुपये वसूल नहीं कर सकते. उस समय के वन कानूनों के अंतर्गत यह मामला अंततः ठाकुर दान सिंह बिष्ट पर 500 रुपयों का जुर्माना लगाकर निबटाया गया.
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