विश्व भर में जलवायु परिवर्तन का हो हल्ला मचा हुआ है, जहां पहले नदियां बहती थी वहां सूखा पड़ा हुआ है. बर्फ़ से लदे रह चांदनी रात में चमकने वाले पहाड़ अब काले पड़ गए हैं पर विश्व अभी भी प्रदूषण फैलाने के आरोप-प्रत्यारोप में लगा हुआ है. पर्यावरण के नाम पर करोड़ों रुपए स्वीकृत तो किए जा रहे हैं पर वह ख़र्च कहां होते हैं किसी को नही पता, हममें से बहुतों को यही पता नही है कि प्रदूषण के कारण क्या-क्या हैं और उसके परिणाम क्या मिल रहे हैं. ऐसे ही एक कारण की पड़ताल करती यह रिपोर्ट:
(Water Report by Himanshu Joshi)
वर्ष 2019 की एक खबर थी कि उत्तराखंड राज्य जल नीति-2019 के मसौदे को मंजूरी दी गई है. राज्य में शुरू होने वाली यह जल नीति प्रदेश में उपलब्ध सतही और भूमिगत जल के अलावा हर वर्ष बारिश के रूप में राज्य में गिरने वाले 79,957 मिलियन किलो लीटर पानी को संरक्षित करने की कवायद है. जल नीति में राज्य के 3,550 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले 917 हिमनदों के साथ ही नदियों और प्रवाह तंत्र को प्रदूषण मुक्त करने और लोगों को शुद्ध पेयजल और सीवरेज निकासी सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रावधान किया गया है.
शायद इस नीति से एक साल में थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ना शुरू हुआ होगा जिससे प्रभावित हो वर्ष 2020 में पीआईबी द्वारा दी गई एक सूचना के अनुसार केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को लिखे पत्र में आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड को 2023 तक ‘हर घर जल राज्य’ बनाने में पूरा सहयोग देगी.
जल शक्ति मंत्री ने पत्र में बताया था कि उत्तराखंड को हर घर में नल से जल पहुंचाने की इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए इस वित्त वर्ष में केंद्र की ओर से 362.57 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है. यह राशि वर्ष 2019-20 में इस कार्य के लिए दी गई 170.53 करोड़ के दोगुने से भी अधिक है. पत्र में बताया गया कि इस अभियान के लिए राज्य सरकार के पास इस समय इस अभियान के लिए 480.44 करोड़ की बड़ी राशि उपलब्ध है जिसमें राज्य सरकार का अंशदान और पिछले वर्ष उपयोग न लाई जा सकी राशि शामिल है.
(Water Report by Himanshu Joshi)
इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए उत्तराखंड सरकार ने बजट 2020-21 में 1165 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. 1165 करोड़ रुपये की लागत से प्रदेश के लोगों को पीने का साफ पानी मिल सकेगा.
करोड़ों रुपये लगा साफ पानी उपलब्ध कराने वाली बात का अगर आपको एक बार के लिए भरोसा हो भी जाए तो आज आप पहाड़ों में जाकर वास्तविक स्थिति देख अपना विचार पलट सकते हैं.
नैनीताल जिले में उत्तराखंड के नौलों को पुनर्जीवित करने के लिए पीपुल्स साइंस इंस्टिट्यूट देहरादून की टीम ‘जल स्वराज़ अभियान’ के तहत ‘जीवन मांगल्य ट्रस्ट उत्तराखंड, गुजरात’ के साथ काम कर रही है. पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के रिसर्च टीम मेम्बर इकबाल एहमद बताते हैं कि यहां के नौलों में पीएच और टीडीएस ठीक है पर हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों की तरह ही यहां नौलों के पानी में जो मुख्य समस्या दिख रही हर वह फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के पाए जाने की है.
फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया कुल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का एक उप-समूह है. वे लोगों और जानवरों की आंतों और मल में बड़ी मात्रा में दिखाई देते हैं. फेकल कोलीफॉर्म के बारे में गूगल सर्च करने पर पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए चिंतित दिखते और करोड़ों खर्च करने वाले भारत से जुड़ी ज़्यादा खबरें नही दिखती, जितने भी सर्च रिज़ल्ट आते हैं उनमें ज्यादा अमरीका के हैं. उसमें ही एक जगह यह सवाल मिला कि अगर मेरे पानी में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया या ई. कोलाई की पुष्टि हो जाए तो क्या होगा?
जिसका जवाब था पानी की व्यवस्था में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया या ई. कोलाई की पुष्टि हाल ही में मल संदूषण का संकेत देती है, जो पानी का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए तत्काल स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है. स्वास्थ्य आपात स्थिति का जवाब देना राज्य के स्वास्थ्य विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है. सभी जल उपयोगकर्ताओं को सचेत करने के लिए 24 घंटे के भीतर एक “स्वास्थ्य परामर्श” जारी किया जाएगा कि पानी की आपूर्ति से जुड़ा स्वास्थ्य जोखिम है. ज्यादातर मामलों में, पीने और खाना पकाने के लिए उबला हुआ या बोतलबंद पानी के उपयोग की सिफारिश की जाएगी. एक नोटिस ग्राहकों को समस्या ठीक करने के लिए की जा रही कार्रवाइयों के बारे में सूचित करेगा और यह भी बताएगा कि कब तक समस्या का समाधान होने की संभावना होगी. विभाग जल्द से जल्द व्यवस्था का निरीक्षण कर पेयजल व्यवस्था की समस्या के समाधान में सहयोग करेगा. संभावित संदूषण स्रोतों को खोजने और खत्म करने के लिए और अधिक पानी के नमूने लिए जाएंगे, स्वास्थ्य परामर्श तब तक प्रभावी रहेगा जब तक स्थिति का समाधान नहीं हो जाता और पानी पीने के लिए सुरक्षित नहीं हो जाता.
(Water Report by Himanshu Joshi)
यह सवाल जवाब पढ़ने के बाद मुझे भारत की वह तस्वीर याद आती है जिसमें बिना वस्त्र गरीब बच्चे होते हैं और पश्चिमी लोग अपने भारत भ्रमण के दौरान उसे ‘Poor India’ कैप्शन के साथ साझा करते हैं. दूषित पानी पीने की वज़ह से बीमार बच्चों को पहले तो उसकी सही वज़ह मालूम नही रहती होगी और अगर चल भी जाए तो हमारी स्वास्थ्य सेवा उसे कितनी जल्दी ठीक करती होंगी.
फेकल कोलीफॉर्म प्रसार को रोकने के उपायों पर इकबाल एहमद कहते हैं कि सबसे जरूरी है कि वाटर रिचार्ज वाली जगहों पर शौंच न करी जाए और जानवरों को भी वहां से दूर ही रखा जाए. सेप्टिक टैंक के साथ बनने वाले सोख्ता गड्ढ़ों को भी वाटर रिचार्ज वाली जगह नहीं बनाना चाहिए.
जहां एक ओर सरकार के करोड़ों खर्च करने पर भी ख़त्म होते नौलों पर बसावट का विस्तार भारी है वहीं दूसरी तरफ जल प्रदूषण जैसी जानकारियों को जन के साथ साझा करते पीएसआई और जीवन मांगल्य ट्रस्ट जैसी संस्थाए अपना काम कर रही हैं और जल बचाने का अभियान जारी रखे हुए हैं.
पानी के प्रदूषण को जांचने के साथ ही उन्होंने पहाड़ों में चाल-खाल बनाने का कार्य भी शुरू किया है. उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से पानी रोकने के लिए बनाए जाने वाले तालाबों को चाल व खाल कहते हैं, इनकी वजह से जमीन में नमी बनी रहती है.
(Water Report by Himanshu Joshi)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
टनकपुर में रहने वाले हिमांशु जोशी ने यह लेख काफल ट्री की ईमेल आईडी पर भेजा है. हिमांशु से उनकी ईमेल आईडी himanshu28may@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.
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