Featured

पचास लाख पेड़ लगाने वाले मसीहा का जाना

कल यानी बीते शुक्रवार को उत्तराखंड के ‘वृक्ष मानव’ (Tree Man) के नाम से विख्यात श्री विश्वेश्वर दत्त सकलानी (Vishweshwar Dutt Saklani) का देहांत हो गया. उनके परिजनों की मानें तो उन्होंने अपने सार्थक जीवनकाल में कोई पचास लाख पेड़ रोपे.

उन्होंने अपना पहला पौधा कुल आठ साल की आयु में रोपा था. बाद में अपने भाई की और फिर अपनी पत्नी की मृत्यु के दुःख से उबरने के उपक्रम के रूप में उन्होंने वृक्षारोपण करना शुरू किया. टेहरी गढ़वाल के रहने वाले इस जांबाज शख्स ने छियानबे वर्ष की आयु में अपनी अंतिम साँसें लीं.

सकलानी जी के प्रयासों को उनकी दूसरी पत्नी ने भरपूर सहयोग दिया. इसके अलावा वे स्थानीय लोगों को पर्यावरण के संरक्षण और वृक्षारोपण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सचेत कराती रहती थीं. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हाथों उन्हें 1986 का इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र सम्मान मिला.

श्री विश्वेश्वर दत्त सकलानी का फोटो: इन्डियन एक्सप्रेस से साभार

उनके सुपुत्र संतोष स्वरुप सकलानी ने इन्डियन एक्सप्रेस को बताया – “उनकी दृष्टि करीब दस साल पहले चली गयी थी. पेड़ों की पौध रोपते-रोपते उन्हें धूल और कीचड़ के कारण आई हैमरेज हो गया था.” देहरादून के राजभवन में प्रोटोकॉल अफसर संतोष स्वरुप सकलानी के अनुसार उनके पिता ने पौधों में ग्राफ्टिंग की तकनीक अपने चाचा से सीखी थी.

युवा सकलानी

विश्वेश्वर दत्त सकलानी के नौ बच्चे थे – चार बेटे और पांच बेटियाँ. अपने बड़े भाई के मरने के बाद वे दिन का लंबा समय पेड़ लगाने में बिताया करते थे. “हमारी माताजी का देहांत 1958 में हुआ. यह हमारे पिताजी के लिए दूसरी त्रासदी थी. इसके बाद उनके भीतर वृक्षारोपण का जैसे जूनून सवार हो गया.” संतोष स्वरुप सकलानी ने आगे बताया.

हालांकि उनके कर्मक्षेत्र का दायरा उनके गृह जनपद तक ही सीमित रहा लेकिन टेहरी गढ़वाल जिले के उनके गाँव सुजरगाँव के आसपास का जंगल उनके प्रयासों से बहुत सघन हो गया था. उनके पुत्र इस बात से चिंतित हैं कि उनके पिता की लगाई धरोहर अब धीरे-धीरे लोगों की लापरवाही के कारण बिखरती जा रही है.

भावविह्वल संतोष स्वरुप सकलानी ने कहा – “वे अक्सर कहते थे कि उनके नौ नहीं पचास लाख बच्चे हैं. अब मैं उन्हें जंगलों में खोजा करूंगा.”

(इन्डियन एक्सप्रेस में छपी खबर के आधार पर)

यह भी पढ़ें: एक मिसाल है जंगली का जंगल
भीमताल का फ्रेडी सैप

 

 

 

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

3 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

6 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago