विन्देश्वर का ऐड़ाद्यो महादेव मंदिर
– धरणीधर पाण्डे
यह मंदिर अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर कस्बे से लगभग 23 किमी. दूर बाँज व बुराँश के घने जंगलों के बीच स्थित है. इस मंदिर में गोलूछीना, पथरिया-मनान तथा सोमेश्वर-लोध तीन अलग-अलग मार्गों से भी पहुँचा जा सकता है. सड़क मार्ग पूरे मंदिर तक है जिसका डामरीकरण होना शेष है.
स्थानीय मान्यता के अनुसार प्राचीन समय में इस स्थान पर भूमि लिंग था. यह समस्त क्षेत्र जंगलात के अंतर्गत आता था। पहले यहाँ बड़े-बड़े पेड़ थे जो कि अब कट चुके हैं.
इस मंदिर की स्थापना आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व ब्रह्मलीन गुरु महाराज श्री 108 महन्त नागा बाबा महादेव गिरी द्वारा की गयी थी तथा यही उनकी तपोस्थली भी रही. यह स्थान समुद्रतल से लगभग 7766 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. यहाँ के मंदिर समूहों में भगवान शिव, पवन पुत्र हनुमान, भैरव तथा महादेव गिरी महाराज का मंदिर विशेष दर्शनीय है साथ ही एक धर्मशाला का निर्माण कार्य प्रगति पर है जिसमें तेरह विशाल कक्ष विभिन्न प्रयोजनों के लिये बनाये गये हैं. मंदिर में दर्शनार्थियों के रहने व भोजन की निःशुल्क व्यवस्था की जाती है. प्रतिवर्ष यहाँ श्रावण शुक्ल पक्ष की दशमी से भादो कृष्ण पक्ष की पंचमी तक भगवत पुराण कथा का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं तथा प्रसाद ग्रहण कर अपने को धन्य समझते हैं. भक्तों को यहाँ प्रसाद के रूप में हलुवा व दूध दिया जाता है. यहाँ ऐड़ोकेर, चमुवाकेर तथा अन्य स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिर भी विद्यमान हैं जिनका अपना विशेष महत्व है.
वर्तमान समय में महन्त श्री देवनारायण गिरी महाराज सम्पूर्ण मंदिर परिसर की व्यवस्था देखते हैं. मंदिर परिसर को भव्य रूप प्रदान करने में देवनारायण गिरी महाराज का अपूर्व योगदान रहा है. महाराज का जन्म कत्यूर (गरुड़) में हुआ था. महादेव गिरी महाराज के ब्रह्मलीन होने के उपरान्त (लगभग 1967 ई.) देवनारायण गिरी महाराज इस स्थान का कायाकल्प करने में संलग्न हैं. महाराज की स्मरण शक्ति अद्भुद है. जिससे एक बार परिचित हो जाते हैं पुनः उसकी आवाज से उसे पहचान लेते हैं. महाराज जन्मांध थे लेकिन जो ख्याति व सिद्धि महाराज ने आध्यात्मिक व धार्मिक क्षेत्र में प्राप्त की वह जन्मांध व्यक्ति के लिये असंभव सी प्रतीत होती है. ऐड़ाद्यो जाने वाला प्रत्येक तीर्थ यात्री यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य व आध्यात्मिक वातावरण से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता है. स्थानीय जनता के अतुलनीय सहयोग से यह स्थान उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में अपना विशेष महत्व रखता है. विभिन्न अवसरों पर बाहर से आये हुए विद्वान यहाँ शास्त्रार्थ करते हैं तथा जनहितार्थ यज्ञ व अनुष्ठान आयोजित किये जाते हैं. इस अवसर पर नित्य भंडारे का आयोजन किया जाता है.
(हुक्का क्लब की स्मारिका ‘पुरवासी’ के अंक 17 से साभार)
प्रकृति के वैभव के बीचोबीच है ऐड़ाद्यो का मंदिर
वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
बागेश्वर के बाघनाथ मंदिर की कथा
जब नन्दा देवी ने बागनाथ देव को मछली पकड़ने वाले जाल में पानी लाने को कहा
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…