गाँव की चौपाल पर एक छोटा सा टीवी लगा था. टीवी और जगह भी लगे थे ,पर वे एंटीने वाले थे. चौपाल का टीवी छतरी वाला था. छतरी वाला टीवी जब से गाँव में आया, पूरे गाँव का माहौल ही बदल गया. छतरी की छत्रछाया ने गाँव वालों को गरीबी, सूखा, ओला, पाला, हैजा, फोड़े, फुंसी सब से निजात दिला दी. जो काम नीली छतरी वाला नहीं कर पाया, वो काम सफ़ेद छतरी ने कर दिया. सफेद छतरी, नीली छतरी और नीली छतरी वाले, दोनों पर भारी थी. (Satire by Priy Abhishek)
अजी छतरी क्या थी, नेमत थी-नेमत! जनता और प्रधान, दोनों के लिये. बताते हैं प्रधान ने जनता से वादा किया था कि जो तुम मुझे वोट दोगे, तो मैं तुम्हें छतरी वाला टीवी दूँगा. उस समय प्रधान के चुनाव में खड़े अन्य प्रत्याशियों ने उसका खूब उपहास किया था. उन प्रत्याशियों ने राजनीति की पारम्परिक धर्म-जाति वाली लीक पर चलना ही उचित समझा. चुनाव नज़दीक आने लगे और सरगर्मियां तेज हो गईं.
सभी के पास अपनी-अपनी जीत के आंकड़े थे. इतने वोट पण्डितों के, इतने लोधियों के, तीन घर यादवों के, पाँच घर मल्लाहों के ,जाटवों का भी कुछ वोट मिलेगा, बस जीत गए चुनाव. इधर अपना प्रधान एक ही बात कहता, “गाँव वालों ! मैं आप से पूछता हूँ- आस-पास के सब गाँवो में छतरी वाला टीवी लग गया, पर अपने गाँव में आज तक क्यों नहीं लगा?” फिर वह ज़ोर से ताली बजाता, “इसका जिम्मेदार कौन है? कौन है इसका ज़िम्मेदार?” फिर एक पल को रुकता. भावुक हो जाता, “भाइयों-बहनों वर्तमान प्रधान को इस बात का जवाब देना होगा कि क्यों इतने साल हमें छतरी वाली टीवी नहीं दी गई?” फिर वह जनता की ओर उँगली करके पूछता, “क्या आपको छतरी वाला टीवी चाहिये?” दूसरी ओर उँगली करता,”चाहिये?” जनता ज़ोर से बोलती, ”हाँ!” “तो बोलिये चौकी वाले बाबा की जय!” “जय!”
उसकी अदा निराली थी. वह भाव को अभाव और अभाव को भाव बना देने वाला बाजीगर था. वह हवा में हाथ घुमाकर कहता – तुम अपना रंज-ओ-ग़म, अपनी परेशानी मुझे दे दो. और जनता सारे दुख-दर्द भूल जाती. वह बातों की बंसी बजाता और जनता गोकुल की गायों की तरह उसकी तान पर बंधी उसके पीछे चली आती. उसके वादों के सदके में व्यक्ति उसे अपना लोकतंत्र, अपनी स्वतंत्रता, अपने अधिकार सब सौंप देता. उसके अभिनय पर अपना बुद्धि-विवेक न्यौछावर कर देता. शास्त्रों में जिसे आप्त व्यक्ति कहा गया है, गाँव वालों के लिये वह वही था. उसका एक-एक वचन लोगों के लिये वेद वाक्य के तुल्य था. वे एक नायक चाहते थे, उन्हें मसीहा मिल गया था. उनकी मुक्ति का मार्ग दिखाने वाला मसीहा.
चुनाव सम्पन्न हुए. अपना प्रधान भारी बहुमत से जीता. एकतरफा. जाति-धर्म के सारे समीकरण ध्वस्त हो गए. लोगों ने छतरी वाले टीवी के लिये वोट दे दिया था. अब सबको इंतज़ार था कि कब गाँव में वो छतरी वाला टीवी लगेगा. और कुछ ही दिनों में मित्रो कम्पनी का टीवी चौपाल पर लगा दिया गया.
टीवी पर एक से एक रंगारंग कार्यक्रम आते. कभी कोई फ़िल्म, तो कभी गानों का फरमाइशी प्रोग्राम. टीवी सभी के लिये निःशुल्क था. नियम के मुताबिक़ शाम को चार घण्टे के लिये टीवी प्रसारण किया जाता. गाँव वाले पूरे परिवार के साथ चौपाल पर आ जमते और प्रसारण का आनंद उठाते. कुछ दिनों तक तो ठीक चला, फिर एक दिन भूरा शहर से लौट कर आया.
भूरा ने बताया, “ये पिरोगराम तो कुछ नाही है. सबेरे वाले पिरोगराम देखोगे तो सब भूल जाओगे.“ अब गाँव वाले उन कार्यक्रमों के बारे में सोचते रहते. कैसे होते होंगे सुबह के पिरोगराम? क्या शाम से भी अच्छे होते होंगे? एक अजीब सी बेचैनी उनके अंदर बैठ गई. उन्होंने प्रधान से माँग की, “टीवी का समय बढाया जाय. हम सुबह भी टीवी देखना चाहते हैं.“ प्रधान ने बहुत ना-नुकुर की. गाँव वाले, यदि सुबह टीवी न चलाया गया तो आंदोलन करने की धमकी देने लगे. फिर एक दिन रजनेस टीवी देखने चौपाल पर आया और वहीं उसे मिर्गी आ गई.
गाँव वालों उसे डिस्पेंसरी में दिखाने दौड़े. पर न तो वहाँ पर डॉक्टर थे, न कम्पाउंडर, और न ही दवाई. डॉक्टर तो कभी-२ आते दर्शन देने. सब ने मिल कर प्रधान से शिकायत की. प्रधान के कहा, “साथियों ये सब बीमारियां पुराने वाले प्रधान ने पैदा की हैं. सोने की चिड़िया जैसे हमारे गाँव को उसने क्या से क्या बना दिया. आप लोग मुझे कुछ समय दीजिये.“ उसने गाँव वालों से वादा किया और सुबह एक घण्टे के लिये टीवी प्रसारण शुरू कर दिया. मिर्गी से अकड़े रजनेस को प्रधान जी का जूता सुंघा कर इलाज के लिये शहर ले जाया गया.
सुबह का टीवी, शाम के टीवी से ज़्यादा मज़ेदार था. धार्मिक कार्यक्रम, फ़िल्मी गीत, बच्चों के लिये कार्टून. और शाम को फिल्में तो आती ही थीं. तीन महीने खुशी-खुशी कट गए. फिर एक दिन सत्तो काकी बीमार हो गईं. सरकारी दवाखाने की हालत तो सभी को पता थी. हालत अब बद से बदतर हो गई थी. अब केवल कुकुर ही नहीं, त्यक्त गाय और मुक्त सांड भी दवाखाने के अहाते में आश्रय पाने लगे. और अंदर के कमरे में नौजवानों के लिए दवा-दारू तो नहीं ,दारू-दवा की व्यवस्था अवश्य होने लगी. सब प्रधान के घर फिर पहुँच गए. उनमें अचानक ही ये भाव आया कि ये प्रधान गाँव के लिये कुछ नहीं कर रहा. वे सब क्रोधित थे. प्रधान हाथ जोड़ कर घर से बाहर आया.
उसने कहा,”गांव वालों मैं सब प्रयास कर के हार गया हूँ. कोई मेरा साथ नहीं दे रहा. मैं दुश्मनों से घिरा हुआ हूँ. आपके लिये अकेला खड़ा हूँ. इस गाँव के लिये अकेला खड़ा हूँ. मेरे दुश्मन मुझे ख़तम करना चाहते हैं.“ गाँव वालों की आँखों में आँसू आ गए.
फिर उसने कहा,”आपके लिये मैंने दिन-रात एक कर दिया पर सरकारी दवाखाने के नाकारा कर्मचारी और डॉक्टर मेरी सुनने को तैयार ही नहीं हैं.” आँसू पोंछते हुए वो भर्राई हुई आवाज़ में बोला, “आप लोगों की तकलीफ़ को देखते हुए मैंने मित्रो कम्पनी से बात की है. वो जिसने चौपाल पर टीवी लगवाई थी, वही कम्पनी. वे लोग आपके लिये गांव में एक अस्पताल बनवाएंगे. ऐसा अस्पताल जो आस-पास के किसी गांव में नहीं होगा.” यह कहते हुए उसने दोनों हाथ हवा में उठा दिये. उसकी जय-जयकार होने लगी. चौपाल पर टीवी का प्रसारण दोपहर में भी शुरू हो गया. Satire by Priy Abhishek
दोपहर में महिलाओं के लिये विशेष धारावाहिक आते थे. जिन में सास-बहू, ननद-भौजाई के जटिल रिश्तों का विश्लेषण किया जाता था. लोगों को पुनर्जन्म, सूक्ष्म शरीर, तांत्रिक अनुष्ठानों और इन सब के पारिवारिक रिश्तों में उचित उपयोग के लिये कहानी के माध्यम से मार्गदर्शन दिया जाता था. लोगों का समय अच्छे से कटने लगा. सत्तो काकी स्वर्ग सिधार गईं.
एक दिन प्रधान ने चौपाल में कहा,”गाँव वालों आप सब से मैंने वादा किया था कि गाँव के बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा यहीं गाँव में मिलेगी. तो अब आपके लिये मित्रो पब्लिक स्कूल खोला जा रहा है. जहाँ बहुत कम फीस में आप अपने बच्चों को ऐसे स्कूल में भेज सकेंगे, जैसा स्कूल आस-पास के किसी गाँव में उपलब्ध नहीं है.” उसने फिर दोनों हाथ हवा में उठाए और नारा लगाया, “बोलो चौकी वाले बाबा की जय!” सब गाँववालों ने उसका साथ दिया, “जय!” चौपाल का टीवी अब दिन भर चलने लगा. दिन अच्छे से गुज़र रहे थे. फिर एक दिन रात को जब टीवी का प्रसारण बंद हुआ, गांव वाले प्रधान के घर के बाहर जमा हो गए. (Satire by Priy Abhishek)
भयभीत प्रधान घर से बाहर निकला. बाहर अच्छी-खासी भीड़ थी. उसने फिर हाथ जोड़ लिये. गाँव वालों ने कहा, “तुमने जो अस्पताल खुलवाया था..” “हाँ,हाँ,” प्रधान बहुत ध्यान से सुन रहा था. “वहाँ इलाज तो बहुत अच्छा है, पर वो लूटता बहुत है. एकदम चोर कम्पनी है.” “अच्छा ऐसा है क्या?” प्रधान को बहुत क्रोध आया. फिर उसने गाँव वालों से निवेदन किया कि उसे कुछ समय दिया जाय. वह उस कम्पनी को सबक सिखायेगा. टीवी का प्रसारण अब रात में भी शुरू कर दिया गया. Satire by Priy Abhishek
रात में टीवी पर व्यस्कों के कार्यक्रम आते थे. गाँव के युवा रात भर कार्यक्रम देखते और दिन भर सोते. फिर एक दिन चौपाल पर प्रधान आया और बोला, “साथियों चौकी वाले बाबा के आशीर्वाद से अब आप सभी लोगों का इलाज निःशुल्क होगा.” “निःशुल्क?” “मतलब मुफ़्त होगा,मुफ्त!” “मुफ़्त इलाज? वो कैसे प्रधान जी?” किसनू बोला. “अरे अब तुम लोगों का बीमा किया जा रहा है. हर महीने सिर्फ दो सौ रुपये दो और दो लाख तक का इलाज बिल्कुल मुफ़्त होगा. बोलो चौकी वाले बाबा की जय!” उसने अपने दोनों हाथ हवा में उठाते हुए कहा. “जय! जय!” गाँव वालों ने भी जयकारा लगाया. मित्रो बीमा कम्पनी उनका स्वास्थ्य बीमा करने लगी. नए चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. प्रधान ने वादा किया था कि यदि इस बार चुनाव जीता तो हर घर में छतरी वाला टीवी लगवाया जाएगा. (Satire by Priy Abhishek)
प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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