उत्तराखंड के चमोली जिले में नीति घाटी में बसा एक गांव है द्रोणगिरी. द्रोणगिरी चमोली की जोशीमठ तहसील में आता है. इस गांव के लोग साल में केवल छः महीने ही यहां रहते हैं बाकी छः महीने कम ऊंचाई वाली जगहों पर आ जाते हैं.
(Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat)
वर्तमान में कीड़ा जड़ी या यारसा गम्बू के लिये लोकप्रिय द्रोणगिरी गांव अपने पौराणिक महत्त्व के लिये भी खूब जाना जाता है. इस गांव के संबंध में मान्यता है कि रामायण में लक्ष्मण मूर्छा के समय संजीवनी प्रसंग में हनुमान द्वारा लाई गयी संजीवनी बूटी यहीं से लाई गयी थी.
द्रोणगिरी गांव में आज भी हनुमान का नाम नहीं लिया जाता है. गांव में होने वाली तीन दिन की रामलीला में भी ऐसे किसी भी प्रसंग का मंचन नहीं होता जिसमें हनुमान का जिक्र होता हो.
(Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat)
मान्यता है कि द्रोणगिरी गांव के आराध्य देवता पर्वत देवता हैं. त्रेतायुग में लक्ष्मण को शक्ति लगने के बाद जब हनुमान द्रोणगिरी गांव में पहुंचे तो वहां के लोगों से संजीवनी बूटी के विषय में पूछा. गांव वालों ने हनुमान की किसी प्रकार सहायता नहीं की. हनुमान अत्यंत उदास होकर गांव वालों से पूछते रहे पर उन्होंने कोई जानकारी न दी. तब रात्रि के समय गांव की एक बुढ़िया ने हनुमान को ऊँगली से इशारा कर संजीवनी बूटी का पता दिया.
जब हनुमान उस स्थान पर गये तो उन्हें संजीवनी बूटी की पहचान न हो सकी. गांव वालों से हनुमान को किसी भी प्रकार की मदद की उम्मीद न थी सो उन्होंने द्रोणपर्वत का दाहिना हिस्सा तोड़ दिया और अपने साथ ले गये.
गांव वाले बुढ़िया पर बहुत नाराज हुए और पर्वत देवता की पूजा में महिलाओं की उपस्थिति प्रतिबन्धित कर दी. आज भी गांव में जब पर्वत देवता का पश्वा किसी के शरीर उतरता है तो उसकी दाई भुजा पुर्णतः निष्क्रिय होती है. पश्वा हनुमान की गलती के बारे में आज भी गांव के लोगों को बताता है. यही कारण है कि आज भी नीति घाटी के इस गांव में हनुमान प्रतिबंधित हैं.
(Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat)
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