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उत्तराखंड की लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ने किया था यह शानदार कारनामा

नॅशनल ज्योग्राफिक द्वारा अपनी बहादुरी के लिए सम्मानित भारतीय नौसेना की लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ने साल 2018 में एक ऐसा कारनामा अंजाम दिया था जिसने देश भर में उनका बड़ा नाम किया. नाव से पूरी दुनिया की साहसिक यात्रा करने निकले केवल महिलाओं के एक अभियान का नेतृत्व किया था उन्होंने.  (Vartika Joshi Pride of Uttarakhand)

मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के धूमाकोट के गाँव स्यालखेत से सम्बन्ध रखने वाली वर्तिका जोशी का परिवार ऋषिकेश में रहता है. उनके माता-पिता, डॉ अल्पना जोशी और प्रो. पी. के. जोशी दोनों अध्यापन से जुड़े हुए हैं.

1991 में जन्मीं वर्तिका की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई श्रीनगर गढ़वाल के सेंट थेरेसा स्कूल से हुई. उन्होंने एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक और आईआईटी दिल्ली से नेवल कंस्ट्रक्शन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. 2010 में उन्होंने बतौर नेवल आर्कीटेक्ट भारतीय नौसेना ज्वाइन की. विशाखापत्तनम में अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने न्यूक्लियर सब-मैरीन ‘अरिहंत’ के डिजायन पर काम किया. (Vartika Joshi Pride of Uttarakhand)

समुद्र के प्रति उनका प्रेम उन्हें अपने साथियों से अलग बनाता था और उन्होंने वर्ष 2014 में रियो दे जेनेरियो से केपटाउन तक के एक साहसिक मिशन में हिस्सा लिया.

अगले साल उन्होंने जबरदस्त ट्रेनिंग की क्योंकि उन्हें देश के प्रतिष्ठित नारी शक्ति मिशन के अंतर्गत होने वाले एक ऐसे मिशन का कमांडर नियुक्त किया गया जिसमें उन्होंने केवल महिला सहकर्मियों के साथ पूरी दुनिया का चक्कर लगाना था. ‘नाविका सागर परिक्रमा’ नामक इस अभियान में देश के इतिहास में पहली बार केवल छः महिलाओं ने इस उपलब्धि को हासिल किया. वर्तिका की अगुवाई में गयी बाकी सदस्यों के नाम थे – लेफ्टिनेंट कमांडर पी स्वाति, लेफ्टिनेंट एस. विजया देवी लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या बोडापति, लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल और लेफ्टिनेंट पायल गुप्ता. (Vartika Joshi Pride of Uttarakhand)

इस अभियान में उन्होंने आईएनएसवी तारिणी नाम की एक 55 फुट लम्बी नाव का इस्तेमाल किया और समुद्र में 254 दिन गुजारे.

वर्तिका को उनकी इस उपलब्धि के लिए अनेक सम्मान दिए जा चुके हैं. भारतीय नौ सेना की लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी को भारतीय नौ सेना ने नौ सेना मेडल से भी सम्मानित किया.

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बचपन की ओर यात्रा का अनूठा और ऐतिहासिक दस्तावेज है नेत्रसिंह रावत की किताब ‘पत्थर और पानी’

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