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उत्तरायण होते ही बच्चे मांझा सूतना शुरू कर देते

सदियों से इंसान के मन में मुक्त नीले आकाश में उड़ने की चाह बनी रही. पतंगबाजी ने उसकी इस उदात्त इच्छा को पूरा किया. (Patangbaji Column By Lalit Mohan Rayal)

किसी दौर में पेंच लड़ाना नवाबी शौक में गिना जाता रहा. बादशाह-नवाब-अमीर, राजे-रजवाड़े पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन कराते थे. ये आयोजन सामाजिक सौहार्द, उत्सवधर्मिता के प्रतीक होते थे.

हिंदी सिनेमा में पतंगबाजी को खूब दिखाया गया. चित्रगुप्त के संगीत से सजा भाभी फिल्म का गीत,  चली चली रे पतंग मेरी चली रे… किसे याद नहीं.

फिल्म याराना में पतंगबाजी के कई दृश्य हैं, जो हास्य उकेरने में पूरी तरह कामयाब रहे. देहाती बिशन (अमिताभ बच्चन) दावा करता है कि पतंगबाजी में हम बड़े-बड़े तुर्रम खानों को धूल चटा लेते हैं. यहाँ तक कि वह जब ग्लाइडर से उड़ता है, तो उसे भी ‘बड़ी पतंग’ कहता है.

गुलशन नंदा के उपन्यास से प्रेरित फिल्म ‘कटी पतंग’ बहुत कामयाब हुई. आशा पारेख के छद्म बहू बनकर उहापोह भरे जीवन को फिल्म के केंद्र में रखा गया था. समाज में उसकी स्थिति ‘कटी पतंग’ जैसी हो जाती है, जिसे लंपट लूट लेना चाहते हैं.

ऐश्वर्या राय अभिनीत ‘हम दिल दे चुके सनम’ में गुजराती संस्कृति के रुझान वाली पतंगबाजी पर रंग-बिरंगा गीत फिल्माया गया.

उत्तरायण होते ही बच्चे मांझा सूतना शुरू कर देते थे. चरखी-डोरी, रंग-बिरंगी पतंगे. बच्चे टोलियों में बँट जाते. पूरे सीजन पतंगबाजी चलती.

यूपी बोर्ड के सेकेंडरी एजुकेशन के सिलेबस में रस्किन बॉन्ड की एक कहानी थी- काइट मेकर, जिसमें बुजुर्ग हो चुका महमूद अतीत में अपने पतंग बनाने के हुनर को बयां करता है. उसे इस बात का मलाल रहता है कि अब वह दौर नहीं रहा, लेकिन मन रखने के लिए वह कभी-कभी पोते के लिए पतंग बना लेता है.

कितनी खूबसूरत ये तस्वीर है ये कश्मीर है, ये कश्मीर है

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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Sudhir Kumar

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