उच्चतम न्यायालय ने आज पंचायत चुनाव में दो से अधिक संतान वालों को उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव में शिरकत करने के फैसले के खिलाफ उत्तराखंड सरकार की अपील पर आज सुनवाई की. उत्तराखंड सरकार की अपील पर सुनवाई करने के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
उत्तराखंड सरकार को हाई कोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से भी करारा झटका लगा है. पंचायत चुनाव की नामांकन प्रक्रिया जारी होने के कारण सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने की पुरजोर अपील की. लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने के आग्रह को निरस्त करते हुए आगे सुनवाई जारी रखने का आदेश दिया.
याचिकाकर्ता जोत सिंह बिष्ट की पैरवी करते हुए अधिवक्ता आयुष नेगी ने पक्ष रखते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश से चुनाव प्रक्रिया बाधित नहीं हो रही है. इस स्थिति को देखते हुए उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने की कोई जरुरत नहीं दिखाई देती है.
माननीय उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते हुए इस मामले की सुनवाई जारी रखने का निर्देश दिया. उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से राज्य में पंचायत चुनाव लड़ने के इच्छुक 2 से अधिक बच्चों के माता-पिता को चुनाव में भागीदारी के अवसर राज्य सरकार ने छीन लिए थे वे बहाल ही रहेंगे. राज्य सरकार द्वारा 2 से अधिक बच्चों के माता-पिता के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गयी थी. जिसके खिलाफ नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी. उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को उलट दिया था.
राज्य सरकार जून में पंचायती राज संशोधन एक्ट 2019 लेकर आई थी. राज्यपाल की मंज़ूरी के बाद इस एक्ट को राज्य में तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया था. इस एक्ट से सबसे बड़ा असर यह हुआ था कि दो से ज़्यादा बच्चे वाले चुनाव नहीं लड़ सकते थे.
इस पंचायती राज एक्ट को कांग्रेस उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट, मनोहर लाल, मोहन प्रसाद काला समेत कई लोगों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय का वह फैसला जिसे उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखते हुए त्रिवेंद सरकार के अरमानों पर पानी फेर दिया – उत्तराखंड में अब दो से ज्यादा बच्चे वाले प्रत्याशी भी पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे
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ग़लत फ़ैसला लिया कोर्ट ने । आज भारत को जनसंख्या नियंत्रण की गंभीर आवश्यकता है ।