पलायन का असर उत्तराखण्ड पंचायत चुनावों पर भी

पलायन का असर उत्तराखण्ड के ग्राम पंचायत चुनावों में साफ़ दिखाई दे रहा है. कई ग्रामीण क्षेत्रों में चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी तक नहीं मिल रहे हैं.

दैनिक हिन्दुस्तान की रपट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. कुमाऊं में ग्राम पंचायत सदस्य के पड़ के लिए कुल 26,155 पदों में से 13,797 में ही नामांकन हो पाए हैं. ऐसी स्थिति में कुमाऊं की ग्राम पंचाट के 12,358 पद खाली रह जाने की संभावना है.

कुल पर्वतीय जिलों में से अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में हालात ज्यादा खराब हैं. अल्मोड़ा में सबसे ज्यादा, 5468 पंचायत सदस्य और पिथौरागढ़ में 2227 पदों पर वर्तमान में अभी तक कोई नामांकन नहीं हुआ है.

इसकी वजह योग्य लोगों का पलायन कर राज्य से बाहर चला जाना है. उम्मीदवारी की शर्त पूरी करने वाले ज्यादातर लोग रोजगार और बुनियादी ढाँचे के अभाव में गाँवों से दूर जा चुके हैं. इन गांवों में रह गए लोग उम्मीदवारी के नियमों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, पंचायत एक्ट में संशोधन के बाद नयी शर्तों को पूरा कर पाना और भी असंभव हो गया है.

इससे पहले कई सीटों पर अप्रवासी उत्तराखंडियों को उम्मीदवार बनाये जाने की ख़बरें सुर्खियाँ बटोर चुकी हैं.

कुल मिलाकर राज्य में पलायन की स्थिति इतनी गंभीर हो गयी है कि लोकतंत्र का बुनियादी ढांचा तक खतरे में है. इसके बावजूद अब तक की सरकारों ने पर्वतीय जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी और रोजगार आदि के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनायी है. पलायन रोकने की अनुष्ठानिक और कागजी कार्रवाइयों के अलावा कोई ठोस पहल कहीं नहीं दिखाई देती.

कुल मिलकर पर्वतीय राज्य की जिस अवधारणा के साथ उत्तराखण्ड राज्य की लड़ाई लड़ी गयी थी वह धरातल से कोसों दूर ही है. राज्य के नीति नियंताओं के पास पर्वतीय जिलों के लिए कोई विजन ही नहीं है. पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों का अभाव इसी का नतीजा है. 

काफल ट्री डेस्क  (इनपुट-हिन्दुस्तान दैनिक)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago