उत्तराखंड में शिशु लिंगानुपात में लगातार गिरावट देखी जा रही है. नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड देश का सबसे खराब शिशु लिंगानुपात वाला राज्य बन गया है. नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्यों के आंकड़ों बताया कि उत्तराखंड का शिशु लिंगानुपात देश में सबसे खराब है.
(Uttarakhand Lowest Child Sex Ratio)
2015-16 में उत्तराखंड में शिशु लिंगानुपात एनएचएफएस 4 के मुताबिक 888 था. एसडीजी सर्वेक्षणों के मुताबिक 2018 में अनुपात गिरकर 850 और उसके बाद अगले साल 841 हो गया था. वहीं इस बार साल 2021 में ये अनुपात 840 है, जिसकी वजह से उत्तराखंड सबसे खराब लिंगानुपात वाला राज्य बन गया है यानी राज्य में प्रति 1000 बालकों पर सिर्फ 840 बालिकाएं जन्म ले रही हैं.
रजिस्ट्रार जनरल और भारत के जनगणना कमिश्नर की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में कहा गया था कि उत्तराखंड में शिशु लिंगानुपात 2021 में 800 के आसपास पहुंच जाएगा. मानवाधिकार के एशियन केंद्र ने तब “उत्तराखंड में बालिका भ्रूण हत्या की स्थिति” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें राज्य की स्थितियों को चिंताजनक बताया गया था. 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तराखंड में शिशु लिंगानुपात 890 था. पिछले दस साल में यह अनुपात और गिर चुका है.
(Uttarakhand Lowest Child Sex Ratio)
इस रिपोर्ट के बाद राज्य महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रेखा आर्य ने स्पष्टीकरण देते हुये कहा कि राज्य में चल रही ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना के प्रभावी क्रियान्वयन से जन्म के समय लिंगानुपात में लगातार सुधार हो रहा है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य के पांच जिले बागेश्वर, अल्मोड़ा, चम्पावत, देहरादून व उत्तरकाशी देश के 50 सर्वाधिक लिंगानुपात वाले जिलों में शामिल हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष 2017-18 में जन्म के समय लिंगानुपात 922 था। यानी, प्रति हजार बालकों पर इतनी बालिकाओं का जन्म हो रहा था. वर्ष 2018-19 में यह आंकड़ा बढ़कर 938 और वर्ष 2019-20 में 949 पहुंच गया.
(Uttarakhand Lowest Child Sex Ratio)
–काफल ट्री डेस्क
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