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उत्तराखंड विधानसभा में ‘भू-कानून’ पर हुई 2018 की पूरी बहस पढ़िये

पिछले कुछ दिनों से सोशियल मीडिया पर उत्तराखंड के लिए एक सशक्त भू-कानून की मांग को लेकर एक कैम्पेन चलाया जा रहा है. अलग-अलग वीडियो, फोटो और पोस्ट के माध्यम से राज्य भर में अलग-अलग हिस्सों से लोग अपनी बात कह रहे हैं. वर्तमान में जो भू-कानून लागू है उसे वर्ष 2018 में विधानसभा में पारित किया गया था. यहां पढ़िये विधानसभा में विधेयक रखे जाने के दिन कांग्रेस और भाजपा विधायकों के बीच हुई पूरी बहस :
(Uttarakhand Land Reform Act 2018)

मद संख्या-17

श्री प्रकाश पन्तः- श्रीमन् मैं आपकी अनुज्ञा से प्रस्ताव करता हूँ कि उत्तराखण्ड ( उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950)( अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) विधेयक, 2018 पर विचार किया जाये.

श्री प्रकाश पन्त :- माननीय अध्यक्ष जी, यह जो विधेयक माननीय सदन के संज्ञानार्थ रखा गया है. इसमें उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम अनुकूल एवं उपान्तरण आदेश 2001 संशोधन विधेयक 2018 के रूप में आपके विचारार्थ रखा है श्रीमन् इस विधेयक में जो महत्वपूर्ण तथ्य है, वह धारा 143 है, उसके बाद 143(क) इसके साथ प्रावधानिक किया गया है. इस धारा का मैं उल्लेख कर दूगां कि धारा 143(क) के बाद के भी होते हुए किसी भूमिधर द्वारा अपनी भूमि का प्रयोग औद्योगिक प्रयोजन करने के आदेश संक्षम प्राधिकारी की अनुमती प्राप्त होते ही, वह भूमि अथवा धारा 154 के अन्तर्गत औद्योगिक परियोजन हेतु क्रय की गयी भूमि धारा 143 के अन्तर्गत समव्यय औद्योगिक आशय से प्रख्यापित हुई मानी जायेगी.

इसमें विशेष तौर पर एक तथ्य यह भी संज्ञान में लाना है कि औद्योगिक परियोजनः शब्द के अर्थ में चिकित्सा, स्वास्थ्य और शैक्षिक परियोजना भी शामिल है और इसके आधार पर हमको यह असुविधा हो रही थी कि हमको 143 कराने के बाद भी हमको औद्योगिक परियोजना के लिए काफी इंतजार करना पड़ता था. उसके चलते विशेष तौर पर हमारा सर्विस सेक्टर हॉस्पिटैलिटी सेक्टर है, जो यहाँ आकर चिकित्सा केन्द्र खोलना चाहते हैं जो शिक्षा के केन्द्र खोलना चाहते हैं और जो शैक्षणिक परियोजना से कोई बड़ा प्रोजेक्ट लगाना चाहते हैं, तो उनको अत्यन्त असुविधा थी इसके चलते हमने इसमें धारा 143(क) इसमें सम्मलित की है और इसमें जो एक धारा 154 जो मूल अधिनियम के अनंत है.

उस धारा 154 में धारा 2 का प्रतिस्थापन किया है. यह प्रतिस्थापन हमने मुख्य रूप से किया है कि तत्त समय पर्वतीय भौमिक अधिकार सम्बन्धित किसी अन्य विधि के उपबन्द के अधिन रहते हुए राज्य सरकार अपने सामान्य विशेष आदेश द्वारा यदि उसकी सहमती से ऐसा आन्तरण औद्योगिक परियोजन के लिए किया गया है, या एक पंजीकृत सहकारी समिति या ज्ञानउत्तर परियोजना के लिए स्थापित संस्था के पक्ष में किया गया है. जिसके पास उसकी आवश्यकताओं के लिए प्रर्याप्त भूमि नहीं है. अथवा यह आंतरण जन साधारण के हित में किया गया है तो धारा एक में स्वीकृत सीमा से अधिक आंतरण करने का अधिकार प्रदान करेगी, लेकिन श्रीमन् इसमे भी जो हमने स्पष्टीकरण दिया है कि यह आंतरिक अवयस्क है उस बालक या बालिका के माता पिता भी इसमें माने जाएगें इस तरह से कुल मिलाकर के औद्योगिक प्रयोजना का तात्पर्य उत्तराखण्ड राज्य के जिला पिथौडागढ़, उत्तरकाशी, चमौली, चम्मपावत, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, पौडी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, अलमोडा का सम्पूर्ण भाग और जिला देहरादून के विकासनगर, डोईवाला, सहसपुर, रायपुर विकासखण्ड को छोडकर अन्य सभी पर्वतीय बाहुल्य विकासखण्डों नैनिताल के हल्द्वानी और रामनगर विकासखण्ड को छोडकर अन्य सभी पर्वतीय बाहुल्य विकासखण्डों के अन्तर्गत भूमि की क्रय से सम्मबन्धित है. इसके आधार पर श्रीमन् जनता की जो मांग है कि हमारे जो पर्वतीय क्षेत्र है जहाँ इन्डस्ट्रीज जानी चाहिए, जहाँ यह हॉस्पिटैलिटी इन्डस्ट्रीज जानी चाहिए सर्विस सेक्टर जहाँ जाना चाहिए ताकि वहाँ रोजगार सिर्जन हो सके राज्य के अंदर हमारे आर्थिक संशाधन बढ़ सके. इस उददेश को लेकर के यह छोटा सा संशोधन विधेयक दो धाराओं के मूल संशोधन को लेकर के आपके संज्ञानार्थ प्रस्तुत है इसलिए इसको सर्व सम्मति से अनुमति देने की कृपा करें.

श्रीमती इन्दिरा हृदेयेश :- मान्यवर, इसमें आपने हल्द्वानी और रामनगर का भावर इलाका क्यों नहीं सम्मलित किया?

श्री प्रकाश पन्त :- मान्यवर, क्योंकि भावर इलाका तो औद्योगिक क्षेत्र में पहले से ही विकसित है जो औद्योगिक क्षेत्र में अल्प विकसित है उन क्षेत्रों को इसके अन्तर्गत लिया गया है.

श्री मनोज रावत :- माननीय अध्यक्ष जी, अभी संसदीय कार्य मंत्री जी, बता रहे थे जनता की मांग पर आप पहले अध्यादेश के रूप में लाये है इसको और अब विधेयक रूप में ला रहे हैं. माननीय मंत्री जी, आप आंदोलन से उभरे हुए नेता हैं जब उत्तराखण्ड आंदोलन हो रहा था तो यहाँ के लोग जमीन की लड़ाई को भी महत्वपूर्ण इश्यू बना रहे थे. और यह उत्तराखण्ड में पहली बार नहीं हुआ, उत्तराखण्ड राज्य का गठन जो हुआ है इसी कारण से हुआ है कि हमारे लोगों को भय था कि यहाँ की भूमियां हमसे छिनी ना जाए किसी न किसी प्रयोजन से देश के संविधान ने भी व्यवस्थाएं कर रखी है.
(Uttarakhand Land Reform Act 2018)

आर्टिकल 370 जम्मू कश्मीर के निवासियों को पूरे अधिकार देता है. आर्टिकल 371 उत्तर पर्व के लोगों को देता है सैड्यूल 6 में रखे गये हैं और हिमाचल प्रदेश के यशस्वी राजनेताओं ने अपने प्रदेश की भूमी को बचाने के लिए हिमचल प्रदेश टेन्डेन्सी एडं लेण्ड रिर्पोम एक्ट 1972 में धारा 118 का प्राविधान किया और इस सदन में आज मुझे बड़ा अफसोस हो रहा है कि इस महत्वपूर्ण संशोधन को जिसके बाद उत्तराखण्ड के निवासियों की 518 जमीनें छीन लेने का पूरा षड़यंत्र कर दिया गया है, पूरी ताकत दे दी है धनपतियों को, कि इस जमीन को ले लें, और उनको भूहीन बना कर अपनी ही जमीन पर मजदूर बनाने का ये षड़यंत्र है. माननीय अध्यक्ष जी, 2003 में पंडित नारायण दत्त तिवारी जी प्रथम निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री थे और उत्तराखण्ड आन्दोलन में लोगों की आशंका को जानते हुए उन्होंने इस चीज को भऑप लिया था कि उत्तराखण्ड में भविष्य में बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा होगा जमीन का, तो वह इस एक्ट में संशोधन लाये थे. मान्यवर, आपसे पहले माननीय तिवारी जी इस एक्त में संशोधन का प्रस्ताव लाये थे और तिवारी जी साथ-साथ विकास को भी जानते थे तो तिवारी जी ने इस चीज को देखने के लिए कहीं एकतरफा एक्ट न आ जाये, तो उस समय इसके लिए बहुगुणा कमेटी बनी थी, प्रभावों का आंकलन करने के लिए, और जब एक्ट लाये थे उस समय एक्ट की जो भूमिका थी, भूमिका में कहा गया था कि उन्हें बड़े पैमाने पर कृषि भूमि की खरीद फारोख्त, अकृषि कार्यों और मुनाफाखोरी किये जाने की शिकायतें मिल रही थी.

प्रदेश की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को देखते हुए असामाजिक तत्वों द्वारा कृषि भूमि के उदार कय विक्रय नीति का लाभ उठाया जा सकता है. अतः कृषि भूमि के उदार कय विक्रय को नियंत्रित करने और पहाड़ वासियों की आर्थिक स्थाईत्व तथा विकास के लिए सम्भावनों का माहौल बनाये जाने के लिए यह कानून लाया जाना जरूर है. मान्यवर, 2003 में जो अध्यादेश द्वारा जो संशोधन हुआ कि 500 वर्ग मीटर तक की बिना अनुमति के अकृषक भूमि आप नहीं खरीद सकते थे. तिवारी जी ने इस अधिनियम में 152-क, 154-3, 154-4, 154-1, 154-4-2 जोड़ी और बंदिशें भी लगायी. इसके बाद 2008 में खण्डूड़ी साहब का कार्यकाल आया. प्रदेश में वह दौर ऐसा था कि जिसमें सदन में बैठे राजनेता, सदन के बाहर बैठे सामाजिक लोग, पत्रकार, पत्र-पत्रिकायें हर समय यही इश्यू उठाती थी कि ये आशंका है कि जमीन की खरीद फरोख्त न हो और सदन में गैरसैण के मामले में मंत्री जी और सरकारों ने बयान दिये हैं. यह भी बहुत महत्वपूर्ण इश्यू है कि गैरसैण में विकास इस लिए नहीं हो पा रहा है कि जमीन की खरीद फरोख्त पर रोक है. बार-बार यह कहा जाता है कि वहाँ प्रापर्टी डीलर जमीन न खरीद लें, यह आशंकायें होती रहती थी, यह समाज के बीच चर्चा का विषय था.

माननीय अध्यक्ष जी, यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है, अभी लोग समझ नहीं रहे हैं कि ये क्या कर रहे हैं. 143-क इसमें जो जोड़ी जा रही है और 154 में धारा-2 जो जोड़ी जा रही है. यह उत्तराखण्ड के निवासियों के जमीनों को हड़पने का एक षड़यंत्र है. जहाँ तक माननीय मंत्री जी कह रहे हैं कि उद्योग स्थापित होने हैं. माननीय मंत्री जी मेरे जिले की सूची प्राप्त कर लीजिए जो आप लोगों के द्वारा औद्योगिक क्षेत्र बनाया गया है, उसमें किस-किस व्यक्ति ने उद्योग के नाम पर आज तक जमीनें ली हैं और वह व्यक्ति कौन है, उस व्यक्ति ने क्या उद्योग लगाया है तो आपके पैरों के नीचे की जमीन खिसक जायेगी, जब आप उन व्यक्तियों के बारे में जानना चाहेंगे. मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता हूँ. माननीय अध्यक्ष जी, 2008 में जो आप एक्ट लाये और पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूड़ी जी ने एक्ट में जो संशोधन किये, उसको आपने चुनाव में मुद्दा बनाया. तब आप लोग कह रहे थे कि कानून दॉत और नक बिहीन है, यह कानून क्या रक्षा कर पायेगा पर्वतीय लोगों की भूमि की, और 2012 में आपने उसी के दम पर चुनाव लड़ा, तब आपका यही नारा था कि खण्डूड़ी जी का कानून, खण्डूड़ी जी का लोकायुक्त.

श्री अध्यक्ष :- माननीय मनोज जी कृपया थोड़ा संक्षेप कीजिए. अभी बहुत मदें हैं.

श्री मनोज रावत :- मान्यवर, मैंने दो इश्यू उठाये हैं.
(व्यवधान)

श्री प्रकाश पन्त :- मान्यवर, आपने जो सवाल उठाए हैं, मैं उसका जवाब आपको दे रहा हूँ. आपने न तो प्रवर समिति का प्रस्ताव लगाया है, जो विषय रखा है, उसमें कोई आपका सवाल हो तो मैं उसका जवाब देता हूँ. जो विषय माननीय मनोज जी ने उठाए हैं. मुझे उनकी मानवता को देख कर ठेस पहुँची है, मैं सोचता था कि उनका आइक्यू लेवल इतना अच्छा है कि आप पकड़ लेते होंगे आपने धारा 143 क मैने पड़ा उसको आपने नहीं, मैने कहा यह धारा 154 के तहत पूर्व में ऐसा होता था. आद्यौगिक प्रयोजन के लिए क्रय करने की प्रक्रिया थी जिसके कारण पर्वतीय क्षेत्रों में कोई भी उद्योग आते नहीं थे. हमने धारा 143 क जोड़ा इसमें यह प्रावधान किया इसमें परन्तुक जोड़ा है, जिसमें यह कहा गया जो साढ़े बारह एकड़ से नीचे की भूमि है, उसके लिए जिलाधिकारी उसका प्रोजेक्ट देखेंगे और उसकी अनुमति देंगे अगर सारे बारह एकड़ से अधिक है तो उसे राज्य सरकार विधिवत अनुमति देगी लेकिन जिस प्रोजेक्ट के लिए उसने जमीन के लिए आवेदन किया और वह प्रोजक्ट जमीन के लिए आवेदन किया और मंजूरी दी गई जैसा आपने कहा वहाँ औद्योगिकी प्रयोजन के लिए लिया है और कुछ और कार्य कर रहा है. उस हालात को हमने इस परन्तुक में जोड़ा है और परन्तुक मे हमने जोड़ा है जैसे भी स्थितियों के द्वारा भूमि क्रय करने की दी गई अनुमति की शर्तों का पालन न करने अथवा किसी शर्तों की उल्लंघन करने पर अथवा जिस प्रयोजन हेतु भूमि क्रय की गई है, उस पर अन्यथा कुछ और प्रयोग करने पर अन्तरण शून्य हो जायेगा और धारा 167 के परिणाम उत्पन्न हो जायेंगे अर्थात ट्राजेक्शन जीरो हो जायेगी और वह भूमि राज्य सरकार में निहित हो जायेगी. जैसा किसी ने कहा मैं यहाँ स्कूल प्रोजेक्ट लगाना चाहता हूँ, अभी तक तो उसको 250 वर्ग मीटर भूमि मिलती थी और वह जमीन उसको मिलती थी मकान बनाने के लिए अब मकान बनाने के लिए नहीं बल्कि प्रोजेक्ट लगान के लिए होगी अगर अधिक बड़ा प्रोजक्ट लगाते हैं तो उसकी अनुमति राज्य सरकार से लेनी पड़ेगी और हमारी लगातार मानीटरिंग होगी. मैं आप सभी से आग्रह कर रहा हूँ आप सभी भी मानीटरिंग करे.
(Uttarakhand Land Reform Act 2018)

श्री मनोज रावत :- मान्यवर, मेरा सवाल यह था जो आज तक के हम तीन-चार हेक्टेयर के औद्योगिक अवस्थापना बनाई है, उन पर उद्योग स्थापित नहीं कर पाये.

श्री प्रकाश पन्त :-मान्यवर, हम यह भी कार्य करेंगे जनता ने हमें इसलिए ही बैठाया है.

श्री मनोज रावत :- मान्यवर, जमीन बेचने के लिए नहीं बैठाया है.

श्री प्रकाश पन्त :- मान्यवर, सम्मानित भाषा का प्रयोग करें. यह गम्भीर मुद्दा है. यह राज्य के आर्थिकी से जुड़ा प्रश्न है. हम यह विषय पूरी संवेदनशीलता ले रहे हैं. मैं तो चाह रहा था कि आपका भी सहयोग मिलता आखिर पर्वतीय क्षेत्र पर रोजगार नहीं मिल रहा है, रोजगार केवल इंडस्ट्री के माध्यम से मिल सकता है एवं सार्वजनिक उपक्रम, प्राईवेट दे सकते हैं, उनको ले जाने के लिए हमे तो कोई प्रबंधन तो करना पड़ेगा 250 मीटर पर क्या रोजगार लगायेंगे.

श्री प्रकाश पन्त :- मान्यवर, हमें कोई प्रबंधन तो करना होगा, ये 250 मीटर पर क्या रोजगार लगायेंगे. यदि रोजगार लगायेंगे तो से स्कूल खोलेंग, हेल्थ टूरिज्म लगेगा, इसके साथ ही हमारे यहां पर पलायन रूकेगा. यह तभी संभव है, जब हम उनको कुछ सुविधाएं देंगे. यदि आपका दृष्टिकोण ही खराब हो तो हम क्या करें.
(भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सभी माननीय सदस्य अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गये और एक साथ अपनी-अपनी बात कहने लगे, जिससे सदन में घोर व्यवधान उत्पन्न हुआ.)

श्री प्रीतम सिंह :- मान्यवर, पलायन कैसे रूकेगा.
(घोर व्यवधान)

श्री मनोज रावत :- मान्यवर, हम नौकर बन जायेंगे.
(घोर व्यवधान)

श्री अध्यक्ष :- मेरा सभी माननीय सदस्यों से अनुरोध है, कृपया अपना आसन ग्रहण करें.
(घोर व्यवधान के मध्य)

श्री अध्यक्ष :- प्रश्न यह है कि उत्तराखण्ड (उत्त प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) विधेयक, 2018 पर विचार किया जाय.

(प्रश्न उपस्थित किया गया और स्वीकृत हुआ.)
(Uttarakhand Land Reform Act 2018)

खण्डशः विचार

श्री अध्यक्ष :- प्रश्न यह है कि खण्ड-2, खण्ड-1, प्रस्तावना और शीर्षक इस विधेयक के अंग माने जाय.
(प्रश्न उपस्थित किया गया और स्वीकृत हुआ.)

श्री मनोज रावत :-मान्यवर, यह पहाड़ की भूमि को बेचने का षडयंत्र है.
(घोर व्यवधान)

श्री प्रीतम सिंह :- मान्यवर, यह सरकार पहाइ की जमीन के साथ खिलवाड़ करने का कार्य कर रही है, इसलिए हम सदन का बहिर्गमन कर रहे हैं.
(घोर व्यवधान)

(भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सभी माननीय सदस्य एक साय अपनी-अपनी बात कहते हुए सदन से बाहर चले गये.)
(Uttarakhand Land Reform Act 2018)

काफल ट्री डेस्क

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