सोशियल मीडिया की दुनिया में बर्फबारी देखकर हर किसी का दिल सैलानी बनकर पहाड़ में रहने का होता है. बर्फबारी का जादू ही कुछ ऐसा है. एक तरफ बर्फबारी सैलानियों को तो खूब मजा देती है लेकिन पहाड़ के आम लोगों के लिये बर्फबारी के बाद के दिन किसी सजा से कम नहीं होते. मेहनतकश पहाड़ियों को जीने के लिये और मेहनत करनी होती है.
(Uttarakhand in Winters)
छोटे बच्चों को ठण्ड से बचाना बड़ा मुश्किल काम है. बर्फ में खेलने के लिये उनको खूब सारे कपड़े पहनाना और खेलने के बाद तापने को आग का इंतजाम. भयंकर ठण्ड में आग जलाने का काम किसी नौसिखिये के बस की बात नहीं. वैसे पहाड़ी सर्दियों का इंतजाम पहले से करके रखते हैं. पहाड़ी घरों में ठण्ड के मौसम के लिये लकड़ियों और भोजन की पर्याप्त जुगत रहती है. ठण्ड में अपनी जुगत के जानवरों का भी खूब ख्याल रखना हुआ.
बर्फ गिरने पर नलों का पानी जम जाता है और नौले जाने में फिसलने का डर भी हुआ. ऐसे में पहले एक दो दिन तो बर्फ को ही कनस्तर में डालकर गर्म किया जाता है. आग का एक चूल्हा तो इसी गर्म कनस्तर के लिये चाहिये आज की भाषा में कहा जाये तो यह पहाड़ियों का देसी गीजर हुआ. दो जग पानी निकालो और दो जग डालो. बिजली आने के बारे में हफ्ते भर तक तो सोचना ही नहीं हुआ.
(Uttarakhand in Winters)
बर्फबारी के बाद ऐसे खाने की ही जुगत करनी हुई जो शरीर को भीतर से गर्मी दे. भांग डली सब्जी इस ठण्ड से लड़ने में सबसे कारगार हुई. मड़वे का गर्म हलवा भी बर्फबारी के दिनों आम पहाड़ियों के भोजन का एक जरुरी हिस्सा हुआ. खीर, खिचड़ी, जौला आदि जिसकी भी तासीर गरम होती उसे खूब बनाया जाता. घी दूध की धिनाली भोजन को और स्वादिष्ट बनाने वाली हुई. फिर चबाने के लिये अखरोट के दानों के साथ च्यूडों का कोई तोड़ न हुआ. इस सब के साथ आमा-बूबू के आण काथ की महफ़िल अब बीते जमाने की बात हो चुकी हैं.
सैलानियों के लिये तो बर्फबारी केवल खुशियां लाती हैं लेकिन आम पहाड़ियों के लिये बर्फबारी एक चुनौती भी लाती है जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी पहाड़ी सहज न केवल स्वीकारता है बल्कि अपने जीवन को उन्हीं चुनौतियों के अनुसार ढालता है. पहाड़ियों का यही जीवन उन्हें दुनिया की सबसे जीवट कौम का हिस्सा बनाता है.
(Uttarakhand in Winters)
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